धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक को बीते 30 नवंबर को उत्तराखंड विधानसभा द्वारा पारित किया गया था. इसमें ग़ैर-कानूनी धर्मांतरण को संज्ञेय और ग़ैर-जमानती अपराध बनाने के लिए अधिकतम 10 साल के कारावास की सज़ा का प्रावधान है.
उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के पुरोला गांव का मामला. पुलिस ने बताया कि एक पक्ष पर जबरन धर्म परिवर्तन कराने और दूसरे पर हमला करने का आरोप लगाया गया है. दोनों पक्षों की ओर से मामले में एफ़आईआर दर्ज कर जांच की जा रही है.
लड़कियां अपनी मर्ज़ी से जीना चाहती हैं. अपनी मर्ज़ी से रिश्ते बनाना चाहती हैं. इसके लिए उन्हें भागना न पड़े अपने लोगों से, ऐसा समाज बनाने की ज़रूरत है. जब तक वह न बने, तब तक इन औरतों को अगर बचाया जाना है तो उनके परिवारों से, बाबू बजरंगी जैसे गुंडों से और बजरंग दल जैसे हिंसक संगठनों से. लेकिन अब इस सूची में जोड़ना पड़ेगा कि उन्हें राज्य से भी बचाने की ज़रूरत है.
इस साल मार्च में विधानसभा में पारित धर्म परिवर्तन संबंधी विधेयक को मंत्रिमंडल के मंज़ूरी देने के बाद नियमों को अधिसूचित किया गया है. इसके तहत ज़िलाधिकारियों को किसी भी धर्मांतरण को मंज़ूरी देने से पहले एक सार्वजनिक नोटिस प्रकाशित करना होगा और इच्छित धर्मांतरण को लेकर आपत्तियां आमंत्रित करनी होंगी.
बीते दिनों नरेंद्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए एक हलफ़नामे में कहा है कि 'धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में अन्य लोगों को किसी विशेष धर्म में परिवर्तित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है.'
इस मामले में याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से ‘डरा-धमकाकर, उपहार या पैसों का का लालच देकर’ किए जाने वाले कपटपूर्ण धर्मांतरण को रोकने के लिए कठोर क़दम उठाने का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया है. इससे पहले शीर्ष अदालत ने कहा था कि जबरन धर्मांतरण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा कर सकता है.
केरल युक्तिवादी संघम ने सुप्रीम कोर्ट में भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा धर्मांतरण के मुद्दे पर लगाई गई याचिका में हस्तक्षेप करने के लिए आवेदन दिया है. संगठन का कहना है कि उपाध्याय की जनहित याचिका ‘सोशल मीडिया फॉरवर्ड, यूट्यूब वीडियो और वॉट्सऐप चैट’ पर आधारित है. इसमें किए गए दावों का कोई विश्वसनीय तथ्यात्मक आधार नहीं है
सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका के जवाब में गुजरात सरकार द्वारा पेश हलफ़नामे में यह कहा गया है. इससे पहले बीते माह केंद्र सरकार ने भी इसी मामले में एक हलफ़नामा दायर करते हुए शीर्ष अदालत से यही बात कही थी. केंद्र ने कहा था कि इस तरह की प्रथाओं पर क़ाबू पाने वाले क़ानून समाज के कमज़ोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं.
तमिलनाडु लोक सेवा आयोग के एक उम्मीदवार ने आयोग के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसके तहत उसे परीक्षा में ‘पिछड़ा वर्ग (मुस्लिम)’ न मानते हुए ‘सामान्य श्रेणी’ का माना गया था. याचिकाकर्ता का तर्क था कि चूंकि वह धर्मांतरण के पहले ‘सबसे पिछड़े वर्ग’ से ताल्लुक रखता था, इसलिए धर्मांतरण के बाद उसे इसके तहत लाभ मिलना चाहिए था.
उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक-2022 में जबरन धर्म परिवर्तन के दोषियों के लिए तीन साल से लेकर 10 साल तक की सज़ा का प्रावधान किया गया है. अपराध करने वाले को अब कम से कम पांच लाख रुपये की मुआवज़ा राशि का भुगतान भी करना पड़ सकता है, जो पीड़ित को दी जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपने हलफ़नामे में कहा है कि धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार निश्चित रूप से किसी व्यक्ति को धोखाधड़ी, जबरदस्ती या प्रलोभन के ज़रिये धर्मांतरित करने का अधिकार नहीं देता है. इस तरह की प्रथाओं पर काबू पाने वाले कानून समाज के कमज़ोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं.
मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 की धारा 10 के अनुसार, किसी व्यक्ति को धर्म परिवर्तन करने से पहले ज़िला प्रशासन को सूचित करना होता है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इस प्रावधान के उल्लंघन को लेकर उसके अगले आदेश तक दंडात्मक कार्रवाई न करने का निर्देश दिया है.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में फैसला लिया गया कि 2018 में बनाए गए उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम को वर्तमान परिवर्तित परिस्थितियों के मद्देनज़र और अधिक सशक्त बनाने की ज़रूरत है. परिणामस्वरूप जबरन धर्मांतरण के लिए अब 10 साल क़ैद की सज़ा का प्रावधान किया गया है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध पत्रिका द ऑर्गनाइज़र ने अपने हालिया अंक की कवर स्टोरी में ई-कॉमर्स दिग्गज अमेज़ॉन पर भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में धर्मांतरण के लिए फंडिंग मुहैया करने का आरोप लगाया है. कंपनी ने इन आरोपों का खंडन किया है.
एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि गृह मंत्री अमित शाह ने सभी राज्यों के सहायक ख़ुफ़िया ब्यूरो के साथ बैठक की थी, जिसमें अधिकारियों को निर्देश दिए गए कि वे प्रत्येक राज्य में अवैध प्रवासियों की पहचान करें और उन्हें गिरफ़्तार करके उनके देश निर्वासित करें.