आपराधिक न्याय प्रणाली स्वयं सज़ा हो सकती है: सुप्रीम कोर्ट

शीर्ष अदालत उस मामले में फैसला दे रही थीं, जहां एक व्यक्ति पर साल 1993 में उनकी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा था. कोर्ट ने निचली अदालतों को ऐसे मामलों में पति और उसके रिश्तेदारों के ख़िलाफ़ क़ानूनी निष्कर्ष निकालने के प्रति आगाह किया, जहां किसी महिला ने शादी के सात साल के भीतर आत्महत्या की हो.

नए आपराधिक क़ानून- नागरिक सुरक्षा या पुलिस राज

भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को बदलने के लिए लाए गए तीन विधेयक मूल रूप से पुराने क़ानूनों के प्रावधानों की ही प्रति है पर इन नए क़ानूनों में कुछ विशेष बदलाव है जो इन्हें ब्रिटिश क़ानूनों से भी ज़्यादा ख़तरनाक बनाते हैं.

केंद्र की राज्यों को पैरोल पर रिहा क़ैदियों की निगरानी के लिए ट्रैकिंग डिवाइस के उपयोग की सलाह

गृह मंत्रालय की ओर से जारी एक अधिनियम में सुझाव दिया गया है कि आवाजाही और गतिविधियों की निगरानी के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग डिवाइस पहनने की शर्त पर क़ैदियों को जेल से छुट्टी दी जा सकती है. क़ैदी द्वारा किसी भी उल्लंघन पर इसे रद्द कर दिया जाएगा और भविष्य में ऐसी किसी भी छुट्टी के अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा.

हमारी अपराध न्याय प्रणाली स्वयं एक सज़ा हो सकती है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट 13 साल पुराने एक मामले पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें पंजाब के एक छात्र को आत्महत्या के लिए उकसाने को लेकर तीन लोगों के ख़िलाफ़ आरोप तय किए गए थे. आरोपियों को बरी करते हुए कोर्ट ने कहा कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली स्वयं एक सज़ा हो सकती है, इस मामले में वास्तव में ऐसा ही हुआ है.

लोग लगातार जांच एजेंसियों, सत्ता और पुलिस के डर के साए में जी रहे हैं: कपिल सिब्बल

पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि धर्म पूरी दुनिया, ख़ासतौर पर भारत में एक हथियार बन गया है. आज भारत में नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने में शामिल लोग एक खास विचारधारा का हिस्सा हैं. पुलिस उनके ख़िलाफ़ कुछ भी करने को तैयार नहीं है क्योंकि वे सभी सहयोगी हैं.

विपक्ष सिकुड़ रहा है, राजनीतिक विरोध का शत्रुता में बदलना स्वस्थ लोकतंत्र नहीं है: सीजेआई रमना

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना राजस्थान के जयपुर में शनिवार को विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए थे. इस दौरान उन्होंने भारतीय जेलों में बढ़ती विचाराधीन क़ैदियों की संख्या पर भी राय व्यक्त करते हुए कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में पूरी प्रक्रिया एक तरह की सज़ा है, भेदभावपूर्ण गिरफ़्तारी से लेकर ज़मानत पाने तक और विचाराधीन क़ैदियों को लंबे समय तक जेल में बंद रखने की समस्या पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है.

मानवाधिकार आयोग पैनल ने आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधारों की धीमी गति पर चिंता जताई

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के ‘आपराधिक न्याय प्रणाली पर कोर समूह’ ने कहा कि यह महसूस किया गया कि मामलों के निस्तारण में विलंब विचाराधीन और सज़ायाफ़्ता क़ैदियों के मानवाधिकार का उल्लंघन है. जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि न केवल सुनवाई में देरी होती है, बल्कि किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने वाले अदालत के आदेशों को लागू करने में भी सालों लग जाते हैं, जो चिंता का विषय है.

किसी को फ़र्ज़ी केस में फंसाकर उसकी ज़िंदगी ख़राब कर देना इतना आसान क्यों है

ग़लत तरीके से बिना गुनाह के एक लंबा समय जेल में गुज़ारने वाले लोगों द्वारा झेली गई पीड़ा की जवाबदेही किस पर है? क्या यह वक़्त नहीं है कि देश में पुलिस प्रणाली और अपराध न्याय प्रणाली को लेकर सवाल खड़े किए जाएं?