बंगनामा: लकड़ी की सीढ़ी चढ़ता विकास

दुमंजिला पंचायत भवन के निर्माण में जब सरकारी राशि पूरी खर्च हो गई और छत पर बने कमरों तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनाने का पैसा नहीं बचा, तो लकड़ी की नसैनी टिका दी गई. बंगनामा स्तंभ की चौदहवीं क़िस्त.

नहीं का मुक़ाम

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अगर हम मनुष्य हैं, भारतीय लोकतंत्र के नागरिक हैं और अपने राष्ट्रीय आप्तवाक्य ‘सत्यमेव जयते’ पर विश्वास करते हैं, अगर अब लग रहा है कि संविधान और उसके बुनियादी मूल्यों स्वतंत्रता-समता-न्याय-बंधुता को बचाना है तो हम चुपचाप नहीं रहें.

चुनावी मुद्दों में बेरोज़गारी प्रमुख, 55% ने माना पिछले पांच सालों में भ्रष्टाचार बढ़ा: सीएसडीएस-लोकनीति

सीएसडीएस-लोकनीति द्वारा जनता के बीच चुनावी मुद्दों को लेकर किए गए एक सर्वे में लोगों ने बेरोज़गारी, महंगाई और विकास को 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक तीन मुद्दे माना है.

पहाड़ों में विकास के नाम पर जो कुछ हो रहा है, क्या वह टिकाऊ है?

मानसून के दौरान पहाड़ों पर साल दर साल आने वाली त्रासदी पहाड़ से बाहर रह रहे लोगों के लिए भले ही हताहतों की संख्या या एक ख़बर भर हो, लेकिन पहाड़ में रहने वालों और वहां की पारिस्थितिकी के लिए ये सुरक्षित भविष्य बनाने की एक पुकार है. क्या सरकारें इसे सुन पा रही हैं?

‘बस्तर के आम लोग विकास चाहते हैं पर वे उस विकास के पक्षधर नहीं हैं जो सरकार चाहती है’

साक्षात्कार: बस्तर में चल रहे संघर्ष और दमन पर समाजशास्त्री और दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर नंदिनी सुंदर की किताब 'द बर्निंग फ़ॉरेस्ट: इंडियाज़ वॉर इन बस्तर' का हिंदी अनुवाद हाल में आया है. क्षेत्र के हालात को लेकर विस्तृत शोध और सलवा जुडूम पर लड़ी गई कानूनी लड़ाई को लेकर उनसे बातचीत.

विकास के ‘गुजरात मॉडल’ के आदर्श और सफल होने के दावों में कितनी सच्चाई है?

वीडियो: भारी बारिश की वजह से अहमदाबाद से लेकर जूनागढ़ में फेल हुए बुनियादी ढांचे ने राज्य की 'मॉडल' व्यवस्था के दावों पर सवाल खड़े किए हैं. विकास के इस कथित आदर्श में क्या समस्याएं हैं जो इसे सफल होने से रोकती हैं?

अवध के पूर्वी द्वार की ‘कभी ज़मीं, कभी आसमां नहीं मिलता’ वाली नियति कब बदलेगी?

अवध की बलरामपुर रियासत गंगा-जमुनी तहज़ीब का पूर्वी द्वार कही जाती थी. 1997 में कुछ क्षेत्रों को मिलाकर इसे ज़िला बनाया गया तो रहवासियों ने विकास के सपने देखे. पर अब हाल यह है कि 2021 में नीति आयोग द्वारा जारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक में यह देश का सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाला चौथा ज़िला रहा.

अब धर्म, सत्ता, कॉरपोरेट और मीडिया के चार पाटों के बीच पिस रही है अयोध्या

'मुख्यधारा' के मीडिया को अयोध्या से जुड़ी ख़बर तब ही महत्वपूर्ण लगती है, जब किसी तरह की सरकारी दर्पोक्ति या सनसनीखेज़ बयान उससे जुड़ा हो. यह पुलिस उत्पीड़नों या अपराधियों के खेलों की ही अनदेखी नहीं कर रहा, बल्कि उसे हज़ारों घरों, दुकानों, पेड़ों आदि की बलि देकर ‘भव्य’ बनाई जा रही अयोध्या की यह ख़बर देना भी गवारा नहीं कि गरीबों का यह तीर्थ अब जल्दी ही उनकी पहुंच से बाहर होने वाला है.

गुजरात में बीते दो वर्षों के दौरान 1,359 परिवारों को बीपीएल सूची में जोड़ा गया

गुजरात की भाजपा सरकार ने बीते 21 मार्च को गुजरात विधानसभा में उठाए गए कई सवालों के जवाब में ये आंकड़े प्रस्तुत किए हैं. इस दौरान अमरेली ज़िले में सबसे अधिक 425 परिवार बीपीएल सूची में शामिल किए गए हैं.

योगी के उत्तर प्रदेश में निवेश के दावे; कितनी सच्चाई, कितने हवा-हवाई

वीडियो: हाल ही में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुए ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किए गए निवेश के दावों पर वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान का नज़रिया.

इस बार का बजट चालाकी से अपने असली इरादों को जनकल्याण के परदे में छिपाता है

बजट 2023-24 का लोकलुभावनवाद यह है कि यह दिखने में तो समाज के हर वर्ग, चाहे वे स्त्रियां हों, जनजातियां, दलित, किसान या फिर सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम, को कुछ न कुछ देने की बात करता है, लेकिन घोषणाओं का तभी कोई अर्थ होता है, जब हर किसी के लिए लिए पर्याप्त फंड का आवंटन भी हो.

पूर्व नौकरशाहों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर ग्रेट निकोबार द्वीप पर ‘अवांछित विकास’ रुकवाने को कहा

राष्ट्रपति ने बीते मानवाधिकार दिवस पर पूरे जीव जगत और उनके निवास स्थान का सम्मान करने की बात कही थी. कॉन्स्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप के बैनर तले 87 पूर्व सिविल सेवकों ने उन्हें इस कथन की याद दिलाते हुए लिखा है कि आपके ऐसा कहने के बाद भी सरकार देश के प्राचीनतम प्राकृतिक आवासों में से एक को नष्ट करने के लिए पूरी तरह से तैयार है.

जोशीमठ: हिमालय ने दरककर ‘विकास’ का भंडाफोड़ कर दिया है

‘विकास’ का यह कौन-सा मॉडल है, जो जोशीमठ ही नहीं, पूरे हिमालय क्षेत्र में दरार पैदा कर रहा है और इंसान के लिए ख़तरा बन रहा है? सरकारी ‘विकास’ की इस चौड़ी होती दरार को अगर अब भी नज़रअंदाज़ किया गया, तो पूरी मानवता ही इसकी भेंट चढ़ सकती है.

आरएसएस महासचिव ने देश में बेरोज़गारी और आय में विषमता पर चिंता जताई

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि हमें इस बात का दुख होना चाहिए कि 20 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा से नीचे हैं और 23 करोड़ लोग प्रतिदिन 375 रुपये से भी कम कमा रहे हैं. ग़रीबी हमारे सामने एक राक्षस-जैसी चुनौती है. यह महत्वपूर्ण है कि इस दानव को ख़त्म किया जाए.

भारतीयों को ‘तानाशाही ग़ुरूर’ के चलते एकता को कमज़ोर नहीं होने देना चाहिए: मनमोहन सिंह

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लिखे एक आलेख में कहा कि विभाजनकारी राजनीति तात्कालिक फ़ायदा भले पहुंचाए लेकिन यह देश की प्रगति में बाधा खड़ी करती है.

1 2 3