Environment Minister Prakash Javdekar

पर्यावरण अधिसूचना को 22 भाषाओं में अनुवाद कराने के ख़िलाफ़ दायर केंद्र की याचिका ख़ारिज

केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट के 30 जून के उस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि सरकार पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 के ड्राफ्ट का संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई 22 भाषाओं में अनुवाद करवाकर इसका ख़ूब प्रचार करे.

‘जिन परियोजनाओं में पर्यावरणीय मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं, उनमें वन्यजीव स्वीकृति ज़रूरी नहीं’

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने राज्यों को लिखे पत्र में कहा है कि जिन राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों को इकोलॉजी की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र के तौर पर अधिसूचित नहीं किया गया है, पर जहां पर्यावरणीय मंज़ूरी आवश्यक है, उनके दस किलोमीटर के दायरे की परियोजनाओं के लिए वन्यजीव मंज़ूरी की ज़रूरत होगी.

विवादित पर्यावरण अधिसूचना का 22 की बजाय सिर्फ तीन भाषाओं में अनुवाद, कई राज्यों से नहीं मिला जवाब

दिल्ली हाईकोर्ट ने 30 जून को आदेश जारी कर कहा था कि केंद्र पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना-2020 के ड्राफ्ट का संविधान की आठवीं अनुसूची में दी गई 22 भाषाओं में अनुवाद करवाकर इसका खूब प्रचार-प्रचार किया जाए, ताकि विभिन्न वर्गों के लोग इसे समझकर अपनी राय दे सकें.

‘विवादित नए पर्यावरण क़ानून से हिमालयी क्षेत्रों में विनाशकारी नतीजे सामने आएंगे’

हिमालयी क्षेत्रों की पर्यावरण संस्थाओं ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना-2020 का विरोध करते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की है.

‘अगर केंद्र नए पर्यावरण क़ानून का मसौदा क्षेत्रीय भाषा में प्रकाशित नहीं करता, तो रोक लगाएंगे’

कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा केंद्र सरकार ने विवादित पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना के मसौदे को क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित करने का निर्देश दिया गया था. केंद्र ने इसका अनुपालन करने से मना कर दिया है, जिस पर हाईकोर्ट ने नाराज़गी जताई है.

दिल्ली पुलिस ने यूएपीए का हवाला देकर पर्यावरण क़ानून के ख़िलाफ़ कैंपेन चला रही वेबसाइट बंद कराई

मोदी सरकार की विवादित पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना वापस लेने की मांग कर रही वेबसाइट को ब्लॉक करने का आदेश देते हुए दिल्ली पुलिस ने कहा था कि उनकी गतिविधियां देश की अखंडता के लिए ठीक नहीं हैं. अब पुलिस का कहना है कि यूएपीए वाला नोटिस ‘ग़लती’ से चला गया था.

पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 का विरोध क्यों हो रहा है

विवादित पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 के ज़रिये व्यापार सुगमता के नाम पर मोदी सरकार पर्यावरण को गंभीर ख़तरा पहुंचाने का रास्ता खोल रही है और हमेशा से ही पर्यावरण को बचाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नागरिकों को ही फ़ैसला लेने के अधिकार से बाहर कर रही है.

कोर्ट ने 10 दिन में केंद्र से विवादित पर्यावरण अधिसूचना को 22 भाषाओं में प्रकाशित करने को कहा

दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कहा गया था कि पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना, 2020 सि​र्फ़ अंग्रेज़ी और हिंदी में प्रकाशित किया गया है, जबकि इसका असर पूरे देश पर और कई उद्योगों पर होगा और पूरे देश से राय मांगी गई है. पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि नई अधिसूचना पर्यावरण विरोधी और हमें समय में पीछे ले जाने वाला है.

अदालत ने पर्यावरण संबंधी विवादित अधिसूचना पर सुझाव देने की समयसीमा बढ़ाकर 11 अगस्त की

इस विवादास्पद अधिसूचना में कुछ उद्योगों को सार्वजनिक सुनवाई से छूट देना, उद्योगों को सालाना दो अनुपालन रिपोर्ट के बजाय एक पेश करने की अनुमति देना और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में लंबे समय के लिए खनन परियोजनाओं को मंज़ूरी देने जैसे प्रावधान शामिल हैं. सरकार ने सुझाव के लिए 30 जून तक का समय दिया था.

पर्यावरण प्रभाव आकलन पर आपत्ति लेने के लिए समय बढ़ाने की मांग, कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा

याचिकाकर्ता ने कहा है कि चूंकि कोविड-19 महामारी के चलते अभी भी बड़े शहरों में लॉकडाउन है, जिसके कारण यहां कि जनता अधिसूचना पर राय नहीं भेज पा रही है. इसके अलावा पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना को सिर्फ़ अंग्रेज़ी भाषा में प्रकाशित किया गया है, जिससे एक बड़ी आबादी वैसे ही राय देने के दायरे से बाहर हो जाती है.

ज़्यादातर लोगों ने मोदी सरकार से नए पर्यावरण क़ानून को वापस लेने की मांग की है: दस्तावेज़

प्रस्तावित पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना में जिन विवादास्पद संशोधनों का प्रस्ताव किया गया है, उनमें कुछ उद्योगों को सार्वजनिक सुनवाई से छूट देना, उद्योगों को सालाना दो अनुपालन रिपोर्ट्स के बजाय एक रिपोर्ट देने की अनुमति देना और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में लंबे समय के लिए खनन परियोजनाओं को मंज़ूरी देने जैसे प्रावधान शामिल हैं.

नए पर्यावरण क़ानून पर जनता से राय लेने की समयसीमा बढ़ाने के मांग जावड़ेकर ने ख़ारिज कर दी थी

आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि जनता द्वारा भेजे गए सुझावों के आधार पर पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने टिप्पणियां भेजने की समयसीमा 60 दिन बढ़ाने की मांग की थी, लेकिन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसे सिर्फ 20 दिन बढ़ाया.

जावड़ेकर के बयान पर डब्ल्यूएचओ ने कहा, प्रदूषण की वजह से स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बीते शुक्रवार को संसद में कहा था कि किसी भी भारतीय अध्ययन से नहीं दिखता कि प्रदूषण का लोगों के जीवन और स्वास्थ्य पर असर पड़ता है.

दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर हुई संसदीय समिति की बैठक से गायब रहे गौतम गंभीर और शीर्ष अधिकारी

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति पर चर्चा के लिए संसदीय समिति की बैठक में 28 में से महज चार सांसदों ने हिस्सा लिया. समिति में शामिल दिल्ली से भाजपा के एकमात्र सांसद गौतम गंभीर इंदौर में भारत और बांग्लादेश के बीच चल रहे टेस्ट मैच में कमेंटरी करते देखे गए.

मोदी की रैली के लिए पेड़ काटने के विरोध पर पर्यावरण मंत्री बोले, पहले क्यों नहीं थी जागरूकता

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैली के लिए पेड़ों को काटे जाने पर इतना बवाल क्यूं? पूर्व में भी प्रधानमंत्रियों और अन्य नेताओं की रैलियों के लिए पेड़ काटे जा चुके हैं. मुझे हैरत है कि पहले इस प्रकार की कोई जागरूकता क्यूं नहीं थी.