'भारत विरोधी दुष्प्रचार' और फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाने के आरोप में बीस यूट्यूब चैनल और दो वेबसाइट ब्लॉक किए जाने के कुछ दिनों बाद सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि सरकार देश के ख़िलाफ़ ‘साजिश रचने’ वालों के विरुद्ध इस तरह की कार्रवाई जारी रखेगी.
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने कहा कि ये चैनल और वेबसाइट 'पाकिस्तान से संचालित एक समन्वित दुष्प्रचार नेटवर्क' से संबंधित हैं तथा 'भारत से संबंधित विभिन्न संवेदनशील विषयों के बारे में फ़र्ज़ी ख़बरें फैला रहे हैं.'
कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा खंभा है, लेकिन यह धीरे-धीरे अपनी विश्वसनीयता और अखंडता खो रहा है. समिति ने कहा कि भारतीय प्रेस परिषद और समाचार प्रसारण एवं डिजिटल मानक प्राधिकरण जैसे मौजूदा नियामक निकायों के प्रभाव सीमित हैं, क्योंकि उनके पास अपने निर्णयों को लागू करने की शक्ति नहीं है.
कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग के प्रमुख रोहन गुप्ता ने कहा कि कई रिपोर्ट आ चुकी हैं कि फेसबुक के ज़रिये फैलाए जा रहे नफ़रत भरे संवाद और सामग्री, फ़र्ज़ी ख़बरों को रोकने के लिए कारगर प्रयास नहीं किए गए. इस तरह की सामग्री कम होने की बजाय बढ़ गई है. हमारी फेसबुक से मांग है कि वह इसकी स्वतंत्र जांच कराए.
एनसीआरबी के मुताबिक़, साल 2020 में फेक न्यूज़ के 1,527 मामले रिपोर्ट किए गए, जो साल 2019 में आए 486 और साल 2018 के 280 मामलों की तुलना में काफ़ी अधिक हैं.
मद्रास हाईकोर्ट ने फेक न्यूज़ और फ़र्ज़ी पत्रकारों की समस्या से निपटने के लिए 19 अगस्त को तमिलनाडु सरकार को तीन महीने के भीतर प्रेस परिषद के गठन का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने इस प्रस्तावित परिषद को व्यापक अधिकार दिए हैं, जिसमें राज्य के प्रेस क्लबों, पत्रकार संघों या यूनियन को मान्यता देने का अधिकार भी शामिल है. पत्रकार संगठनों का कहना है कि इससे प्रेस की स्वतंत्रता बाधित हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वेब पोर्टल किसी भी चीज़ से नियंत्रण नहीं होते हैं. ख़बरों को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है और यह एक समस्या है. अंतत: इससे देश का नाम बदनाम होता है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिल्ली में तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम और कोविड-19 के प्रसार पर इसके प्रभाव को लेकर फ़र्ज़ी और सांप्रदायिक खबरें प्रसारित करने के ख़िलाफ़ दाख़िल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने एक व्याख्यान के दौरान कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि लोकतंत्र में कोई राष्ट्र राजनीतिक कारणों से झूठ में लिप्त नहीं होगा. वियतनाम युद्ध में अमेरिका की भूमिका ‘पेंटागन पेपर्स’ के प्रकाशित होने तक सामने नहीं आई थी. कोरोना वायरस के संदर्भ में भी हमने देखा है कि दुनियाभर में देशों द्वारा संक्रमण दर और मौतों के आंकड़ों में हेरफेर करने की कोशिश की प्रवृत्ति सामने आई है.
मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर का मामला. आरोप है कि बीते 19 अगस्त को उज्जैन में मुहर्रम के मौके पर एक कार्यक्रम के दौरान कुछ लोगों ने पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए थे. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का कहना है कि फ़र्ज़ी ख़बर के आधार पर ‘क़ाज़ी साहब ज़िंदाबाद’ को ‘पाकिस्तान ज़िदाबाद’ बताकर कई लोगों पर मुक़दमे दायर हो गए हैं. मध्य प्रदेश पुलिस को कार्रवाई करने के पूर्व वास्तविकता का पता लगा लेना
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विधानसभा की शांति एवं सौहार्द्र समिति की ओर से जारी समन के ख़िलाफ़ फेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष तथा प्रबंध निदेशक अजित मोहन की याचिका ख़ारिज करते हुए यह टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि दिल्ली फरवरी 2020 जैसे दंगे दोबारा नहीं झेल सकती. फेसबुक ने जहां लोगों को आवाज़ दी है, वहीं हमें इस तथ्य को भी नहीं भूलना चाहिए कि यह विध्वंसकारी संदेशों और विचारधाराओं का मंच भी बन गया है.
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के ‘रॉयटर्स इंस्टिट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म’ द्वारा किए सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत में पुराने प्रिंट ब्रांड और सरकारी प्रसारक दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो अधिक भरोसेमंद हैं, जबकि प्रिंट मीडिया, सामान्य तौर पर समाचार चैनलों की तुलना में अधिक भरोसेमंद माने गए.
भाजपा ने इंडिया टुडे के पत्रकार अभ्रो बनर्जी के फोटो का इस्तेमाल करते हुए दावा किया वह पश्चिम बंगाल के सीतलकुची में मारे गए उनके पार्टी कार्यकर्ता मानिक मोइत्रा हैं. बाद में भाजपा ने अपनी सफाई में कहा कि पत्रकार की तस्वीर गलती से वीडियो में शामिल हो गई.
सोशल मीडिया पर सुमित्रा महाजन के निधन की अफ़वाह के संबंध में मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में अज्ञात आरोपी के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया है. कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी महाजन के निधन की ग़लत ख़बर अपने ट्विटर खाते पर साझा कर दी थी. बाद में उन्होंने ये ट्वीट डिलीट कर माफ़ी मांगी है.
फैक्ट चेक: अप्रैल के पहले हफ़्ते में मीडिया द्वारा एक अध्ययन के हवाले से दावा किया गया कि हार्वर्ड स्टडी ने अन्य राज्यों की तुलना में प्रवासी संकट को अधिक प्रभावी ढंग से संभालने के लिए यूपी सरकार की सराहना की है. पड़ताल बताती है कि हार्वर्ड ने ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया.
फैक्ट चेक: विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में यूपी सरकार के कोविड-19 प्रबंधन को अग्रणी बताने का दावा किया गया. यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने इसका खंडन करते हुए कहा कि ये कोई तुलनात्मक अध्ययन नहीं था बल्कि यूपी सरकार के अफसरों के साथ मिलकर राज्य की कोविड-19 की तैयारी और इसे संभालने संबंधी व्यवस्थाओं पर तैयार की गई रिपोर्ट थी.