सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें आरोप लगाया गया है कि कोरोना महामारी की शुरुआत के समय तबलीग़ी जमात के आयोजन को लेकर मीडिया का एक वर्ग मुस्लिमों के ख़िलाफ़ सांप्रदायिक वैमनस्य फैला रहा था. मीडिया का बचाव करते हुए केंद्र की ओर से कहा गया है कि याचिकाकर्ता बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलना चाहते हैं.
पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. एक पड़ताल में साल 2018 से अब तक 30 से अधिक ऐसी वेबसाइट और चैनल्स सामने आए हैं, जो असत्यापित और पक्षपाती सामग्री के साथ फ़ेक न्यूज़ चलाते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी. लोकुर ने एक कार्यक्रम में कहा कि बोलने की आज़ादी को कुचलने के लिए सरकार फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाने के आरोप का तरीका भी अपना रही है. कोरोना के मामलों और इससे संबंधित अव्यवस्थाओं की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर फेक न्यूज़ देने के आरोप लगाए जा रहे हैं.
एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के अनुसार जेलों में बंद दलित, आदिवासी और मुस्लिमों की संख्या देश में उनकी आबादी के अनुपात से अधिक है, साथ ही दोषी क़ैदियों से ज़्यादा संख्या इन वर्गों के विचाराधीन बंदियों की है. सरकार का डॉ. कफ़ील और प्रशांत कनौजिया को बार-बार जेल भेजना ऐसे आंकड़ों की तस्दीक करता है.
जम्मू कश्मीर प्रशासन ने बीते दिनों राज्य की नई मीडिया नीति को मंज़ूरी दी है, जिसके तहत प्रशासन प्रकाशित-प्रसारित सामग्री की निगरानी करेगा और यह तय करेगा कि कौन-सी ख़बर ‘फेक, एंटी सोशल या एंटी-नेशनल रिपोर्टिंग’ है. प्रेस काउंसिल ने इस बारे में प्रशासन से जवाब मांगा है.
दो जून को जारी जम्मू कश्मीर की नई मीडिया नीति के अनुसार, सरकार अख़बारों और अन्य मीडिया चैनलों पर आने वाली सामग्री की निगरानी कर यह तय करेगी कि कौन-सी ख़बर 'फेक, एंटी सोशल या एंटी-नेशनल' है. ऐसा पाए जाने पर संबंधित संस्थान को सरकारी विज्ञापन नहीं दिए जाएंगे, साथ ही उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी.
साइबर कानून के जानकार और फेक न्यूज का पता लगाने वाले विशेषज्ञों ने इस क़दम पर चिंता जताते हुए कहा है कि इससे सरकार के लिए ग़ैरक़ानूनी निगरानी के रास्ते खुल जाएंगे और इसका इस्तेमाल लोगों को परेशान करने में हो सकता है.
वीडियो: भाजपा प्रवक्ता नवीन कुमार द्वारा वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ पर फ़र्ज़ी ख़बर फैलाने का आरोप लगाया गया है. वहीं, बेंगलुरु में एमनेस्टी इंटरनेशनल के पूर्व निदेशक आकार पटेल पर सोशल मीडिया पर ‘भड़काऊ’ पोस्ट करने का मामला दर्ज किया गया है. इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का नज़रिया.
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजय किशन कौल ने बीते रविवार को मद्रास बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन लेक्चर में ये बातें कहीं.
फैक्ट चेक: सुप्रीम कोर्ट में 28 मई को प्रवासी मज़दूरों के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाए क़दमों का ब्योरा देते समय सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक पुरानी घटना का ज़िक्र करते हुए ऐसा इशारा किया था कि मज़दूरों की परेशानियों को दिखाते लोग गिद्धों की तरह हैं. पड़ताल बताती है कि यह घटना असल में हुई ही नहीं, यह एक झूठा वॉट्सऐप मैसेज है.
पश्चिमी दिल्ली से भाजपा के सांसद प्रवेश सिंह वर्मा ने 14 मई को नमाज़ अदा करते लोगों का एक वीडियो साझा करते हुए लॉकडाउन के उल्लंघन की बात कही थी. पुलिस के इसे ग़लत बताने के बाद वर्मा ने अपना पोस्ट डिलीट कर दिया.
अंडमान निकोबार के एक स्वतंत्र पत्रकार जुबैर अहमद ने ट्विटर पर स्थानीय प्रशासन से पूछा था कि कोविड-19 के मरीज़ से फोन पर बात करने पर लोगों को क्वारंटीन क्यों किया जा रहा है. पुलिस का कहना है कि वे ग़लत जानकारी फैला रहे थे.
जम्मू के दूध उत्पादक गुज्जर समुदाय का कहना है कि दिल्ली में हुए तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम में शामिल कई लोगों के कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद से उन्हें इससे जोड़कर 'नफ़रत भरा अभियान' चलाते हुए कहा गया कि वे संक्रमण ला रहे हैं इसलिए उनसे दूध न खरीदा जाए.
एक समाचार चैनल द्वारा महाराष्ट्र के आवास मंत्री जितेंद्र आव्हाड और उनकी बेटी के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की कथित तौर पर फ़र्ज़ी ख़बर प्रसारित की गई थी. महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने डीजीपी को पत्र लिखकर कार्रवाई का निर्देश दिया है.
अमेरिकी इतिहास से जुड़ा एक पन्ना बताता है कि मीडिया और बुद्धिजीवियों के एक वर्ग द्वारा समर्थित जातिवादी और सांप्रदायिक ज़हर लंबे समय से राजनीति का खाद-पानी है.