ग्राउंड रिपोर्ट: यूपी-बिहार सीमा पर पश्चिम चंपारण के वाल्मीकिनगर विधानसभा क्षेत्र के गंडक नदी के किनारे बसे आखिरी धूमनगर गांव के कुछ टोले केवल नावों के सहारे जुड़े हैं. ग्रामीणों का कहना है कि लंबे समय से पुल बनाने की मांग उठने के बावजूद प्रशासन की तरफ से कोई सुनवाई नहीं है.
ग्राउंड रिपोर्ट: आज़ादी के बाद कोसी की बाढ़ से राहत दिलाने के नाम पर इसे दो पाटों में क़ैद किया गया था और अब लगातार बनते तटबंधों ने नदी को कई पाटों में बंद कर दिया है. इस बीच सुपौल, सहरसा, मधुबनी ज़िलों के नदी के कटान में आने वाले गांव तटबंध के लाभार्थी और तटबंध के पीड़ितों की श्रेणी में बंट चुके हैं.
ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार के सुपौल ज़िले के निर्मली विधानसभा क्षेत्र में कोसी नदी के सिकरहट्टा-मंझारी तटबंध पर बसे पिपराही गांव से गुज़र रही धारा में कम पानी होता था, पर बीते कई सालों से बारह महीने इतना पानी रहता है कि बिना नाव के पार नहीं किया जा सकता है. इस साल मई से सितंबर के बीच यहां पांच बार बाढ़ आ चुकी है.
पंजाब भजापा के महासचिव मालविंदर सिंह कांग ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा देते हुए कहा कि मेरी अंतर्रात्मा मुझे पार्टी में रहने की अनुमति नहीं दे रही है. पार्टी नेतृत्व किसानों की बात सुनने को तैयार नहीं है.
ग्राउंड रिपोर्ट: पश्चिम चंपारण ज़िले के लक्ष्मीपुर रमपुरवा गांव के सीमाई पांच टोले के पांच सौ से अधिक ग्रामीण गंडक नदी की बाढ़ और कटान से हुई व्यापक तबाही के बाद फिर से ज़िंदगी को पटरी पर लाने की जद्दोजहद में लगे हैं. अस्तित्व के संकट जूझ रहे इन टोलों में चुनावी कोलाहल की गूंज नहीं पहुंची है.
लोकसभा में सांसदों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया कि वर्ष 2019-20 में पूरे देश के 114.295 लाख हेक्टेयर फसल प्रभावित हुई, जिसमें बिहार में बाढ़ से प्रभावित कुल फसल 2.61 लाख हेक्टेयर थी.
एनसीआरबी के मुताबिक, साल 2019 में देश भर के कुल 10,281 किसानों ने आत्महत्या की थी. इसमें से 3,927 किसान आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र के हैं. आंकड़ों के अनुसार, पिछले कई वर्षों में राज्य में हर साल 3500 से अधिक किसान अपनी जान दे देते हैं.
पिछले साल भी गन्ने की पेराई शुरू होने से पहले चीनी मिलों पर गन्ना किसानों के बकाया थे लेकिन वह रकम इतनी अधिक नहीं थी. साल 2018-19 में राज्य मिलों पर गन्ना किसानों का 4,941 करोड़ रुपये बकाया था.
विशेष रिपोर्ट: बीते दिनों कृषि विधेयकों के देशव्यापी विरोध के बीच मोदी सरकार ने रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की और इसे 'ऐतिहासिक' कहते हुए किसानों को लाभ होने दावा किया. हालांकि राज्यों द्वारा भेजी गई उत्पादन लागत रिपोर्ट बताती है कि यह एमएसपी कई राज्यों की उत्पादन लागत से भी कम है.
मंडी यार्ड का होना सुनिश्चित करेगा कि उसके दायरे के बाहर किसी भी खरीद को अवैध माना जाए, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम क़ीमतें न मिले और राज्य को उसका मंडी शुल्क मिलता रहे.
केंद्र सरकार का दावा है कि इस क़ानून से कृषि क्षेत्र में निजी और प्रत्यक्ष निवेश में बढ़ोतरी होगी तथा कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास होगा, जिससे किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे. वहीं विरोध कर रहे किसानों और विपक्ष का कहना है कि इससे सिर्फ़ जमाखोरों को लाभ होगा.
अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि केंद्र सरकार ने किसानों के लिए एमएसपी की गारंटी सुनिश्चित करने से इनकार किया, साथ ही वह पंजाबी और सिखों से जुड़े मुद्दों पर लगातार असंवेदनशीलता दिखा रही है. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने इस कदम को अकाली दल की राजनीतिक मजबूरी बताया है.
वीडियो: दिल्ली के रावता नाम के गांव के किसानों के 700 एकड़ खेत इस साल गुड़गांव से आने वाले गंदे पानी की वजह से डूब चुके हैं. गांव के किसानों का कहना है कि ये समस्या पिछले 15 साल से बनी हुई है. कृषि विधेयकों को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शन के बीच इन किसानों की समस्या पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है.
किसान के प्रतिरोध में सिर्फ किसान रहें, मजदूर प्रतिरोध में सिर्फ मजदूर, दलितों के विरोध में सिर्फ दलित, यह भी अत्याचार को बनाए रखने का एक तरीका है. यह विरोध का संप्रदायवाद है. सत्ता इसलिए कहती है कि किसान का विरोध तब अशुद्ध है जब उसमें छात्र और व्यापारी शामिल हों.
इस बार बिहार सरकार द्वारा किसानों से सात लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि इसकी तुलना में सरकार ने महज़ 0.71 फीसदी गेहूं खरीदा है.