फिल्मों के बारे में ऐसी बातें जो कोई नहीं करता

वीडियो: फिल्मकार अनुभव सिन्हा मुंबई को क्रूर भी मानते हैं और बहुत कुछ देने वाला भी. उनके एक छोटे शहर से बम्बई तक के सफर, फिल्म थिएटर से ओटीटी मंच तक की यात्रा, सिनेमा, कला और उनके तजुर्बों को लेकर उनसे द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज की बातचीत.

श्याम बेनेगल: समानांतर सिनेमा की प्रखर आवाज़

श्याम बेनेगल सिनेमा और कैमरे के माध्यम से बेनेगल ने जीवन को बड़ी शिद्दत से जीया. उन्होंने फिल्मों को बनाने का एक तय फॉर्मूला के विपरीत यथार्थवादी रास्ता चुना. इतना ही नहीं उन्होंने सिने ट्रेंड को बदला, जहां हाशिए का समाज सिनेमा के केंद्र में आया.

जिसने सिनेमा की नई भाषा को रचा

श्याम बेनेगल हर बार एक नए विषय के साथ सामने आते थे. 'जुनून' (1979) जैसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाली फ़िल्म के तुरंत बाद उन्होंने 'कलयुग' (1981) में महाभारत को आधार बनाकर आधुनिक दुनिया में रिश्तों की पड़ताल की और फिर 'मंडी' (1983) में कोठे के जीवन का प्रामाणिक चित्रण किया.

सूरज के सातवें रथ पर सवार होकर चले गए श्याम बेनेगल, भारतीय गणतंत्र का सपना हुआ लुप्त

श्याम बेनेगल उस पीढ़ी के सिनेकर्मी थे जिसने आज़ाद भारत के उभरते सपनों के बीच सांस ली. एक समतावादी, लोकतांत्रिक जीवन-पद्धति का सपना, एक धर्मनिरपेक्ष-जातिविहीन मूल्य-संहिता का सपना, नेहरू की कविता और गांधी की करुणा का सपना. उनके निधन के साथ उस युग के एक सपने का भी अंत हो गया.

कलाकार जो करता है उस पर यक़ीन करो, बजाय उसके जो वो अपनी कला के बारे में कहे

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: ब्रिटिश चित्रकार डेविड हाकनी का कथन है कि कलाकार काफ़ी पकी उमर तक जी सकते हैं क्‍योंकि वे अपने शरीर के बारे में ज़्यादा नहीं सोचते. हाथ, हृदय और आंख कंप्यूटर से अधिक जटिल हैं.

वो बच्चा जो दीना में छूट गया, वो शायर जो दिल्ली में जवान हुआ…

पुस्तक अंश: गुलज़ार के गीतों और फिल्मों ने कई पीढ़ियों को संस्कार दिया है, हिंदी सिनेमा के भीतर शास्त्रीयता की संभावना को जीवित रखा है. यतीन्द्र मिश्र ने अपनी किताब में इस बेजोड़ कलाकार की आत्मा को बड़ी बारीकी से अंकित किया है.

अंधे युग में हिंदी सिनेमा

वीडियो: पिछले दस सालों में देश की राजनीति के साथ हिंदी सिनेमा में भी अहम बदलाव देखने को मिले हैं. जहां एक ख़ास तरह के सिनेमा को आसानी से फंडिंग आदि मिल रही है, वहीं उद्योग के कई प्रतिभाशाली लोगों, विशेषकर वो जो भाजपा की विचारधारा से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते, के सामने मुश्किलें आ रही हैं. इस बारे में अभिनेता सुशांत सिंह से बात कर रहे हैं द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज.

भाषा पर ध्यान देना चौकन्ना काम है, वह प्रचलित सामान्यीकरणों के सहारे नहीं हो सकता

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदी में ऐसा आलोचनात्मक माहौल बन गया है कि भाषा को महत्व देना या कि उसकी केंद्रीय भूमिका की पहचान करना, उस पहचान को ब्योरों में जाकर सहेजना-समेटना अनावश्यक उद्यम मान लिया गया है.

मिसोजिनीज़: जोन स्मिथ की ये किताब समाज में पसरे स्त्रीद्वेष को उघाड़कर रख देती है

पुस्तक समीक्षा: 1989 में इंग्लैंड की पत्रकार जोन स्मिथ द्वारा लिखी गई 'मिसोजिनीज़' जीवन के हरेक क्षेत्र- अदालत से लेकर सिनेमा तक व्याप्त स्त्रीद्वेष की पड़ताल करती है. भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें, तो स्त्रीद्वेष की व्याप्ति असीमित दिखने लगती है.

दुष्प्रचार वाली फिल्मों से लड़ने का एकमात्र तरीका कलाकारों का आवाज़ उठाना है: नसीरुद्दीन शाह

दिग्गज अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि कट्टरता और दुष्प्रचार फैलाने के लिए बनाई गई फिल्मों से लड़ने का एकमात्र तरीका कलाकारों का बोलना है. हालांकि उन्होंने अफ़सोस जताया कि बहुत से कलाकार ऐसा करने को तैयार नहीं हैं.

किसी पुराने सिनेमाघर के बंद होने पर उसके साथ हज़ारों यादें भी दफ़्न हो जाती हैं

मुंबई के सबसे बड़े थिएटरों में से एक इरोज़ को मल्टीप्लेक्स और रिटेल आउटलेट में तब्दील किए जाने की सूचना है और इस बात से इसके चाहने वाले ख़ुश नहीं हैं.

नानकमत्ता फिल्म फेस्टिवल: सिनेमा को स्कूली शिक्षा से जोड़ने का अनूठा प्रयोग

उत्तराखंड के एक छोटे-से क़स्बे नानकमत्ता के एक स्कूल में छात्रों को परंपरागत शिक्षा के साथ-साथ सिनेमा को एक पढ़ाई के ही एक नए माध्यम के रूप में जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है.

किताब पढ़ने की आदत से एक्टर में परिपक्वता आती है: श्रीकांत वर्मा

वीडियो: आंखों देखी, दम लगा के हईशा और लाल सिंह चड्ढा जैसी फ़िल्मों के साथ-साथ पंचायत, मिर्ज़ापुर और ब्रीद: इनटू द शैडोज जैसी वेब-सीरीज़ में अभिनय कर चुके अभिनेता श्रीकांत वर्मा से उनके जीवन, रंगमंच, सिनेमा और ओटीटी पर उनके अनुभव और यात्रा के बारे में बातचीत.

‘पठान’ फिल्म विवाद के बाद केंद्रीय मंत्री बोले- बहिष्कार संस्कृति से माहौल ख़राब होता है

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि अगर किसी को किसी फिल्म से कोई दिक्कत है तो उसे संबंधित सरकारी विभाग से बात करनी चाहिए जो मुद्दे को फिल्म निर्माताओं के साथ उठा सकता है. कभी-कभी माहौल बिगाड़ने के लिए कुछ लोग पूरी तरह जानने से पहले ही उस पर टिप्पणी कर देते हैं.

पाकिस्तानी फिल्म ‘द लेजेंड ऑफ मौला जट्ट’ की भारतीय रिलीज़ अनिश्चितकाल के लिए स्थगित

पाकिस्तानी फिल्म ‘द लेजेंड ऑफ मौला जट्ट’ 30 दिसंबर को भारत में रिलीज़ होनी थी, लेकिन सूत्रों के अनुसार इसे विभिन्न वर्गों के विरोध के डर से स्थगित कर दिया गया. 13 अक्टूबर को रिलीज़ हुई फ़वाद ख़ान और माहिरा ख़ान अभिनीत बिलाल लशारी की यह फिल्म पाकिस्तान में काफ़ी सफल रही है.

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