हर बार चुनावों से पहले मीडिया के मैनेजमेंट से छनकर बढ़ती ग़रीबी, ग़ैर-बराबरी, बेरोज़गारी व महंगाई वगैरह के कारण सरकारों के प्रति आक्रोश व असंतोष की जो बातें सामने आ जाती हैं, क्या वे सही नहीं हैं? मतदाताओं की सरकारों से इस 'संतुष्टि' को कैसे देखा जाए?
चुनाव के दौरान ‘फ्रीबीज़’ के वादे के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में मांग की गई है कि निर्वाचन आयोग को चुनाव पूर्व अवधि के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ़्त सौगात का वादा करने से रोकने के लिए प्रभावी क़दम उठाने का निर्देश दिया जाए.
वीडियो: देश के विमर्श में अब मतदाता शब्द कम प्रचलित है और इसकी जगह 'लाभार्थी' ने ले ली है. क्या यह बदलाव देश के नागरिकों के लिए ख़ुश होने की वजह है या उनके अधिकारों के लिए ख़तरा? पब्लिक पॉलिसी विशेषज्ञ यामिनी अय्यर से बात कर रहे हैं द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज.
भोपाल से प्रकाशित बच्चों की मासिक पत्रिका 'चकमक' हिंदी की अब तक की इकलौती 'बाल विज्ञान पत्रिका' है. इसका एक स्तंभ है- 'क्यों क्यों '. इसमें बच्चों से हर महीने एक सवाल पूछा जाता है और अगले महीने उसके जवाब प्रकाशित किए जाते हैं.
कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने कहा है कि कर्नाटक सरकार द्वारा राज्य में शुरू की गई गृह लक्ष्मी योजना ‘भाजपा निर्मित महंगाई पर सबसे बड़ा हमला’ है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को कल्याणकारी योजनाओं को ‘रेवड़ी’ कहकर अपमानित नहीं करना चाहिए. उन्हें विशेषकर महिलाओं से माफ़ी मांगनी चाहिए और एक समयसीमा बतानी चाहिए कि वह महंगाई पर कब लगाम लगाएंगे.
कर्नाटक के चित्रदुर्ग ज़िले में एक सरकारी स्कूल के शिक्षक ने सरकार के मुफ्त में सामान और सुविधा देने के वादों पर सवाल खड़े किए थे, जिसमें कहा गया था कि सरकार की ओर से मुफ्त वादों के चलते राज्य पर हमेशा क़र्ज़ बढ़ जाता है.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की पूर्व संध्या पर केआर पेट विधानसभा में कथित तौर पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने ग्रामीणों को लुभाने के लिए साड़ियां और चिकन बांटा. ग्रामीणों के यह लेने से इनकार के बाद कार्यकर्ता इसे उनके घर के सामने छोड़ आए. इससे नाराज़ ग्रामीणों ने इसे स्थानीय भाजपा नेता के घर के सामने फेंक दिया.
हाल ही में कल्याणकारी नीतियों की आड़ में नकदी बांटने की प्रथा आम हो गई है, ख़ासकर चुनाव के समय. निष्पक्ष चुनाव कराने में ‘फ्रीबीज़’ बांटने को एक बड़ी चुनौती के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. अगर इस मुद्दे पर काबू नहीं पाया गया तो इससे राज्यों पर वित्तीय बोझ पड़ेगा.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि विवाद की प्रकृति और पहले की सुनवाइयों में पक्षों द्वारा दी गईं दलीलों पर विचार करते हुए मामले को यथासंभव जल्द सूचीबद्ध किया जाएगा.
गोदरेज इंडस्ट्रीज के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक नादिर गोदरेज ने कहा, ‘मुझे लगता है कि देश को बांटना बंद कर इसे एकजुट करने की कोशिश करनी चाहिए. मुझे भरोसा है कि सरकार भी आर्थिक वृद्धि के लिए इसे ज़रूरी मानती है, हमें इस पर ध्यान देना चाहिए.’
भारतीय मध्यवर्ग अक्सर ग़रीबों को दी जाने वाली मुफ़्त सुविधाओं/कल्याणकारी योजनाओं की आलोचना करता है, लेकिन मुफ़्त सुविधा या फ्रीबी और कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर तब जटिल हो जाता है जब राजनीतिक दल अपने-अपने हित के हिसाब से व्याख्याएं पेश करते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मुफ़्त की रेवड़ी' वाले बयान के बाद जहां हर तरह के अर्थशास्त्री सब्सिडी के गुण-दोषों की जटिल बारीकियों को समझने के लिए मजबूर हो गए हैं, वहीं मोदी के लिए इस मुद्दे को खड़ा कर पाना ही उनकी कामयाबी है.
तमिलनाडु के सत्तारूढ़ दल द्रविड़ मुनेत्र कषगम ने सुप्रीम कोर्ट में दर्ज 'मुफ्त सुविधाओं' (फ्रीबीज़) से संबंधित याचिका में पक्षकार बनने का आग्रह करते हुए नरेंद्र मोदी सरकार के शुरुआती तीन सालों में अडानी समूह के 72,000 करोड़ रुपये के क़र्ज़ माफ़ करने की बात कही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने लोगों को वोट के लिए मुफ़्त उपहार देने को 'रेवड़ी संस्कृति' क़रार देते हुए कहा था कि यह देश के विकास के लिए बहुत ख़तरनाक है. अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पूछा है कि आम नागरिकों को मुफ़्त शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली देने में ग़लत क्या है?
सुप्रीम कोर्ट को सौंपे अपने एक हलफनामे में भारतीय निर्वाचन आयोग ने कहा है कि वह उन राजकीय नीतियों और फैसलों का नियमन नहीं कर सकता, जो किसी विजेता पार्टी द्वारा सरकार बनाए जाने पर लिए जाते हैं.