गुजरात दंगों के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका से संबंधित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को लेकर भारत में चल रहे विवाद के बीच जर्मनी के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा है कि भारत का संविधान मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता को स्थापित करता है. इसमें प्रेस और भाषण की स्वतंत्रता भी शामिल हैं. जर्मनी पूरी दुनिया में इन मूल्यों के लिए खड़ा है.
सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 में निहित मौलिक अधिकारों को लेकर मूल सोच यह है कि इन्हें केवल राज्य के ख़िलाफ़ लागू किया जा सकता है, लेकिन समय के साथ यह बदल गया है.
जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को लिखे एक पत्र में आरोप लगाया कि 2019 के बाद से जम्मू कश्मीर के प्रत्येक निवासी के मौलिक अधिकारों को मनमाने ढंग से निलंबित कर दिया गया है और विलय के समय दी गई संवैधानिक गारंटी को अचानक असंवैधानिक रूप से निरस्त कर दिया गया.
11 जुलाई 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों के आयोजन पर अंतरिम रोक लगा दी थी. पीठ ने इस पर प्रतिक्रिया देने के लिए चार प्रमुख दलों- भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा को नोटिस जारी किया था, लेकिन नौ साल बाद भी न तो किसी दल ने और न ही मुख्य चुनाव आयुक्त ने अदालत में कोई जवाब दाख़िल किया है.
गुजरात में अहमदाबाद नगर निगम ने अपनी सीमा के भीतर आने वाले एकमात्र बूचड़खाने को जैन धर्म के पर्यूषण पर्व के दौरान बंद करने का आदेश दिया था, जिसके ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी.
छत्तीसगढ़ पुलिस ने ग्रामीणों की हत्या पर एफआईआर तब दर्ज की थी, जब उनके परिजनों ने याचिका दायर की, फिर उसने विसंगतियों से भरी जानकारियां दीं, याचिकाकर्ताओं को गवाही दर्ज होने से पहले हिरासत में लिया गया, फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर विश्वास करते हुए न्याय के लिए उस तक पहुंचे लोगों को दंडित करने का फैसला दिया.
दिल्ली दंगों के मामले में सितंबर 2020 से उमर ख़ालिद हिरासत में हैं, जिसकी निंदा करते हुए दार्शनिक नॉम चोमस्की ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि ख़ालिद के ख़िलाफ़ एकमात्र सबूत जो प्रस्तुत किया गया है वह यह है कि वे बोलने और विरोध जताने के अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग कर रहे थे, जो एक स्वतंत्र समाज में नागरिकों का मौलिक अधिकार है.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एल. नागेश्वर राव ने कहा कि सरकार का कर्तव्य सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय देश के सभी नागरिकों को सुनिश्चित करना है और शीर्ष अदालत नागरिकों को याद दिलाती है कि कोई भी क़ानून से ऊपर नहीं है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक अधिकारों के बारे में जब तक सार्वजनिक चर्चा नहीं होगी और जागरूकता नहीं आएगी, तब तक लोकतंत्र नहीं आएगा.
केरल हाईकोर्ट ने कोविड-19 टीकाकरण प्रमाण-पत्रों से प्रधानमंत्री की तस्वीर हटाने की मांग करने वाली याचिका को रद्द करने आदेश के ख़िलाफ़ दायर अपील को खारिज़ करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री को कोविड-19 टीकाकरण पर संदेश देने का पूरा अधिकार है और उनकी तस्वीर को विज्ञापन नहीं माना जा सकता.
यौनकर्मियों को राशन मुहैया कराने को लेकर दिए गए निर्देश का पालन न करने पर कोर्ट ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा कि गरिमा का अधिकार एक मौलिक हक़ है जो देश के प्रत्येक नागरिक को उसके व्यवसाय की परवाह किए बिना दिया जाना चाहिए.
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान ख़ुर्शीद की किताब पर रोक लगाने की याचिका ख़ारिज करते हुए की थी. फ़ैसले के विस्तृत आदेश में कोर्ट ने कहा कि असहमति का अधिकार जीवंत लोकतंत्र का सार है. संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर सिर्फ किसी के लिए अप्रिय होने की आशंका के आधार पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती.
केरल हाईकोर्ट ने कोविड-19 टीकाकरण प्रमाण-पत्र से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर हटाने के अनुरोध वाली एक याचिका पर केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने को कहा है. याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि उन्होंने टीके की दो खुराक के लिए भुगतान किया था, उनके टीकाकरण प्रमाण-पत्र पर प्रधानमंत्री की तस्वीर मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस रवींद्र भट्ट ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि सरकारों को मौलिक अधिकारों का सम्मान करने वाली संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए, ये उनकी ज़िम्मेदारी भी है. उनकी सहायक भूमिका के अभाव में आबादी का एक बड़ा वर्ग भेदभावपूर्ण प्रथाओं और अन्याय का सामना कर सकता है और ज़्यादातर लोगों को जाति, ग़रीबी, धर्म आदि के आधार पर ये सब भुगतना पड़ सकता है.
अदालत दिल्ली दंगे के दौरान हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही थी. इस मामले में पहले ही पांच लोगों को ज़मानत मिल चुकी है. हाईकोर्ट ने कहा कि यह हमारे संविधान में निहित सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है कि एक आरोपी को मुक़दमे के लंबित रहने के दौरान सलाखों के पीछे रहने दिया जाए.
दिल्ली हाईकोर्ट ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल की हत्या के लिए अभियोजन का सामना कर रहे पांच आरोपियों को ज़मानत देते हुए कहा कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि विरोध करने और असहमति जताने का अधिकार एक ऐसा अधिकार है, जो लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में मौलिक दर्जा रखता है.