तीस्ता सीतलवाड़ को 2002 के गुजरात दंगों के मामलों में ‘निर्दोष लोगों को फंसाने’ के लिए कथित तौर पर सबूत गढ़ने के लिए जून में गिरफ्तार किया गया था. बीते 30 जुलाई को अहमदाबाद की एक सत्र अदालत ने मामले में सीतलवाड़ तथा पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार की जमानत याचिकाएं खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें यह जांचना होगा कि क्या उसे कैद की जरूरत है.
बिलक़ीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिजनों की हत्या के 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई के ख़िलाफ़ याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपियों ने जो किया, उसके लिए उन्हें सज़ा मिली. सवाल यह है कि क्या वे सज़ा माफ़ी के हक़दार हैं और क्या यह माफ़ी क़ानून के मुताबिक़ दी गई.
बिलक़ीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या के 11 दोषियों की समयपूर्व रिहाई के ख़िलाफ़ एक याचिका टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और एक अन्य याचिका माकपा नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ की पूर्व प्रोफेसर व कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा ने दाख़िल की है.
सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज सुजाता मनोहर साल 2003 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सदस्य थीं, जब आयोग ने बिलक़ीस बानो गैंगरेप मामले में हस्तक्षेप किया था. उन्होंने कहा कि हम महिलाओं को सशक्त बनाना चाहते हैं पर उनके लिए पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करते. यह सज़ा माफ़ी उनकी सुरक्षा को लेकर सही संदेश नहीं देती है.
अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच में दर्ज हुई एफआईआर में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ पर आरोप है कि उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ अन्य मंत्रियों, अफसरों और राज्य सरकार को बदनाम करने की साज़िश रची थी. बीते 30 जुलाई को हाईकोर्ट उन्हें ज़मानत देने से इनकार कर चुका है.
गुजरात से कांग्रेस के तीन मुस्लिम विधायकों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वह केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य सरकार को वर्ष-2002 बिलक़ीस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में उम्रक़ैद के सज़ायाफ़्ता 11 दोषियों की रिहाई के ‘शर्मनाक फैसले’ को वापस लेने का निर्देश दें.
साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलक़ीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के 11 दोषियों की रिहाई पर अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने कहा है कि यह क़दम न्याय का उपहास है और सज़ा से मुक्ति के उस पैटर्न का हिस्सा है, जिसका भारत में अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा के आरोपी लाभ उठाते हैं.
बिलक़ीस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में 11 लोगों को साल 2008 में उम्रक़ैद की सज़ा सुनाने वाले जज जस्टिस यूडी साल्वी ने उन्हें रिहा किए जाने के क़दम की निंदा करते हुए सवाल उठाया है कि दोषियों को गुजरात सरकार की 1992 में बनी क्षमा नीति के तहत रिहा किया गया है अगर सरकार द्वारा 2014 में बनी वर्तमान क्षमा नीति का पालन किया जाता तो ये दोषी रिहा नहीं हुए होते.
सुप्रीम कोर्ट से बिलक़ीस बानो मामले के 11 दोषियों की सज़ा माफ़ी रद्द करने का आग्रह करते हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत इन हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा है कि इस तरह का निर्णय हर उस बलात्कार पीड़िता को हतोत्साहित और प्रभावित करेगा जिन्हें न्याय व्यवस्था पर भरोसा करने को कहा जाता है.
बिलक़ीस बानो के बलात्कार के 11 दोषियों की सज़ा माफ़ करने वाली सरकारी समिति का हिस्सा रहे गोधरा से भाजपा विधायक सीके राउलजी ने एक साक्षात्कार में कहा कि उन्हें नहीं पता कि जेल से रिहा किए गए दोषी अपराध में शामिल थे या नहीं और यह संभव है कि उन्हें फंसाया गया हो.
15 अगस्त को गुजरात की भाजपा सरकार ने अपनी क्षमा नीति के तहत बिलक़ीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के लिए उम्रक़ैद की सज़ा काट रहे 11 दोषियों को रिहा कर दिया था.
बिलक़ीस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिजनों की हत्या के 11 दोषियों की सज़ा माफ़ करने वाली समिति के चार सदस्य भाजपा से जुड़े थे, जिनमें दो विधायकों के अलावा पूर्व पार्षद और गोधरा अग्निकांड मामले के गवाह मुरली मूलचंदानी शामिल थे. उस मामले में उनकी गवाही को कोर्ट ने झूठा क़रार दिया था.
बिलक़ीस बानो की वकील द्वारा जारी बयान में उन्होंने गुजरात सरकार से उनके बलात्कार के दोषियों की समयपूर्व रिहाई के फ़ैसले को वापस लेने और बिना डर और शांति से जीने का उनका अधिकार लौटाने की अपील की है. उन्होंने सवाल किया, 'क्या एक औरत को मिले इंसाफ़ का यही अंत है?'
सावरकर ने अपनी किताब '6 गौरवशाली अध्याय' में बलात्कार को राजनीतिक हथियार के तौर पर जायज़ ठहराया था. आज़ाद होने के बाद एक अपराधी ने कहा भी कि उन्हें उनकी राजनीतिक विचारधारा के कारण दंडित किया गया. वे शायद यह कहना चाह रहे हों कि उन्होंने कोई जुर्म नहीं किया था, मात्र सावरकर की राजनीतिक विचारधारा लागू की थी.
गुजरात सरकार द्वारा इसकी क्षमा नीति के तहत बिलक़ीस बानो के सामूहिक बलात्कार के दोषियों की सज़ा माफ़ होने और रिहाई के बाद बेहद मायूस बिलक़ीस का कहना है कि अब उनके पास न सब्र बचा है और न ही हिम्मत. वे यह लड़ाई हार गई हैं.