कर्नाटक: टीपू सुल्तान पर आधारित किताब पर अदालत ने रोक लगाई

तत्कालीन मैसूर साम्राज्य के शासक टीपू सुल्तान पर आधारित कन्नड़ भाषा में लिखित किताब ‘टीपू निजा कनसुगालु’ की बिक्री पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा गया था कि इसकी सामग्री मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ है और इसके प्रकाशन से बड़े पैमाने पर अशांति फैलने व सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा होने की आशंका है.

इतिहास की रणभूमि

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: भारत में इस समय विज्ञान की लगातार उपेक्षा और अवज्ञा हो रही है. इस क़दर कि वैज्ञानिक-बोध को दबाया जा रहा है. यह ज्ञान मात्र की अवमानना का समय है: बुद्धि, तर्क, तथ्य, संवाद, असहमति आदि सभी हाशिये पर फेंके जा रहे हैं.

जम्मू कश्मीर में आतंकवाद, पाकिस्तान नेहरू की ग़लतियों का परिणाम: भाजपा

जम्मू कश्मीर के भारत में विलय की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर भाजपा नेताओं द्वारा देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को निशाना बनाने पर कांग्रेस ने कहा कि ‘वॉट्सऐप नर्सरी’ वाले भाजपा नेता फिर से इतिहास पढ़ें और पूर्व प्रधानमंत्रियों पर आरोप लगाने के बजाय अपने शासनकाल का हिसाब दें.

75 साल पहले गांधी ने जिसे अनहोनी कहा था, वह आज घटित हो रही है

गांधी ने लिखा था कि कभी अगर देश की 'विशुद्ध संस्कृति' को हासिल करने का प्रयास हुआ तो उसके लिए इतिहास फिर से लिखना होगा. आज ऐसा हो रहा है. यह साबित करने के लिए कि यह देश सिर्फ़ हिंदुओं का है, हम अपना इतिहास मिटाकर नया ही इतिहास लिखने की कोशिश कर रहे हैं.

जगतार सिंह ग्रेवाल: पंजाब और सिख समुदाय का अतीत और विविधताएं दर्ज करने वाले इतिहासकार

स्मृति शेष: इतिहासकार जेएस ग्रेवाल अपने काम में मध्यकालीन भारत और विशेष रूप से पंजाब की सामाजिक विविधता और सांस्कृतिक बहुलता को रेखांकित करते रहे. इसके अलावा उन्होंने सिख इतिहास से जुड़े दुर्लभ ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का जो संकलन-संपादन किया, वह इतिहास के अध्येताओं के लिए प्रेरणादायी है.

बीडी चट्टोपाध्याय: पूर्व मध्यकालीन भारत के अप्रतिम इतिहासकार

स्मृति शेष: ऐसे समय में जब भारतीय इतिहास और संस्कृति की बहुलता को एकांगी बना देने के लिए पूरा ज़ोर लगाया जा रहा हो और जब ‘वन नेशन’ जैसे नारों को उछालकर देश की वैविध्यपूर्ण संस्कृति को समरूप बनाने के प्रयास हो रहे हों, बीडी चट्टोपाध्याय सरीखे इतिहासकारों का कृतित्व और भी प्रासंगिक हो उठता है.

तमिलनाडु: पेरियार विश्वविद्यालय की एमए इतिहास की परीक्षा में पूछे गए जाति संबंधी सवाल पर विवाद

सेलम ज़िले के पेरियार विश्वविद्यालय में एमए इतिहास के दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा के प्रश्न-पत्र में पूछा गया था कि कौन-सी नीची जाति तमिलनाडु से संबंधित है. इसके बाद जाति उन्मूलन के लिए लड़ने वाले द्रविड़ विचारक पेरियार के नाम पर बने विश्वविद्यालय में ऐसा प्रश्न-पत्र तैयार करने को लेकर लोगों ने प्रबंधन की आलोचना की है.

नरेंद्र मोदी के आठ साल के कार्यकाल का सार- बांटो और राज करो

'एक भारत-श्रेष्ठ भारत' और 'सबका साथ-सबका विकास' सरीखे नारे देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने शासन में इस पर अमल करते नज़र नहीं आते हैं.

भाजपा और हिंदुत्व ब्रिगेड के लिए मुग़ल नए खलनायक हैं

मुग़ल शब्द को भारतीय मुसलमानों को इंगित करने वाला प्रॉक्सी बना दिया गया है. पिछले आठ सालों में, इस समुदाय को- आर्थिक, सामाजिक और यहां तक कि शारीरिक तौर पर- निशाना बनाना न सिर्फ उन्मादी गिरोहबंद भीड़, बल्कि सरकारों की भी शीर्ष प्राथमिकता बन गई है.

प्रोफेसर भैरवी प्रसाद साहू: क्षेत्रीय इतिहास के पैरोकार

स्मृति शेष: इस महीने की शुरुआत में प्रसिद्ध इतिहासकार और दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्राध्यापक भैरवी प्रसाद साहू का निधन हो गया. साहू ने अपने लेखन में राज्य और धर्म के अंतरसंबंध, धार्मिक कर्मकांड, स्थानीयताओं और स्थानीय समाजों के विकास की ऐतिहासिक प्रक्रिया को रेखांकित किया है.

आलोचकों को गांधी के प्रासंगिक पहलुओं पर नज़र डालने की ज़रूरत: रामचंद्र गुहा

इतिहासकार एवं लेखक रामचंद्र गुहा ने के एक कार्यक्रम में कहा कि गांधी अपने जीवनकाल में सभी के थे, जीवन के बाद वह किसी के नहीं हैं. गांधी पहचान की राजनीति से परे हैं. वह एक सार्वभौमिक हस्ती हैं. दुनिया के कई हिस्सों में उन्हें मान्यता एवं स्वीकार्यता हासिल है.

हिंदुत्व के पैरोकार महान अशोक से इतने ख़फ़ा क्यों रहते हैं

अशोक ने जिस भारत का तसव्वुर किया था, जिस तरह सब निवासियों के मिल-जुलकर रहने, प्रगति करने की बात की थी, उससे केंद्र में सत्तासीन हिंदुत्व वर्चस्ववादी हुकूमत और उनके समर्थकों को गहरी तकलीफ़ होती है.

यशपाल: ‘मैं जीने की कामना से, जी सकने के प्रयत्न के लिए लिखता हूं…’

विशेष: यशपाल के लिए साहित्यिकता अपने विचारों को एक बड़े जन-समुदाय तक पहुंचाने का माध्यम थी. पर इस साहित्यिकता का निर्माण विद्रोह और क्रांति की जिस चेतना से हुआ था, वह यशपाल के समस्त लेखन का केंद्रीय भाव रही. यह उनकी क्रांतिकारी चेतना ही थी जो हर यथास्थितिवाद पर प्रश्न खड़ा करती थी.

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्य से परे दिए अपने वक्तव्यों पर कभी शर्मिंदगी नहीं होती

बीते दिनों गोवा में दिए एक भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने पुर्तगाली शासन संबंधी ग़लत ऐतिहासिक तथ्यों को पेश किया. इसके बाद उनके भाषण लेखकों की गुणवत्ता पर सवाल उठना लाज़मी था, लेकिन लगता है कि उन्हें यह भरोसा हो चला है कि यशस्वी प्रधानमंत्री के मुख से निकली बात की पड़ताल कोई नहीं करता.