सुप्रीम कोर्ट की जेल सुधार समिति ने आत्महत्या रोधी बैरक के निर्माण की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए शीर्ष अदालत को बताया कि 2017 और 2021 के बीच देश भर की जेलों में हुईं 817 अप्राकृतिक मौतों में से 660 आत्महत्याएं थीं और इस दौरान उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 101 आत्महत्याएं दर्ज की गई हैं. इन मौतों में जेल के अंदर 41 हत्याएं भी शामिल हैं.
विशेष रिपोर्ट: जेल में सज़ा काट रही महिला क़ैदियों के साथ रहने वाले बच्चों को तो तमाम परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है, लेकिन वो जिन्हें मां से अलग कर बाहर अपने बलबूते जीने के लिए छोड़ दिया जाता है, उनके लिए भी परेशानियों का अंत नहीं होता.
छत्तीसगढ़ में बलात्कार के एक आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने 12 साल क़ैद की सज़ा सुनाई थी, जिसे हाईकोर्ट ने घटाकर सात साल कर दिया था. इसके बावजूद अपराधी को 10 साल 3 महीने तक ज़ेल में रखा गया. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने पर जेल अधीक्षक ने हाईकोर्ट के फ़ैसले पर अनभिज्ञता ज़ाहिर की, जिस पर अदालत ने राज्य सरकार पर जुर्माना लगाते हुए उसे अपने अधिकारी के इस कृत्य के लिए अप्रत्यक्ष तौर पर ज़िम्मेदार माना
दंतेवाड़ा में 'लोन वर्राटू' के तहत पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने वाले कथित पूर्व नक्सलियों के लिए बनाए गए डिटेंशन कैंप ‘शांति कुंज’ का अस्तित्व क़ानूनी दायरों से परे है.
जहां देश में एक तरफ ट्रांसजेंडर पहचान रखने वाले लोगों के लिए क़ानूनी अधिकारों की बात होना शुरू हो रहा है, वहीं दूसरी ओर देश की जेलों में बंद ऐसे लोग ज़रूरी हक़ों और सुविधाओं से भी महरूम हैं.
जेलें क़ैदियों को उनके अपराध के आधार पर वर्गीकृत कर सकती हैं, लेकिन जेलों, ख़ासतौर पर महिला जेलों में वर्गीकरण सिर्फ अपराधों से तय नहीं होता है. यह सदियों की परंपराओं और अक्सर धर्म द्वारा स्थापित नैतिक लक्ष्मण रेखा लांघने से जुड़ा है. ऐसे में भारतीय महिलाएं जब जेल जाती हैं, तब वे अक्सर जेल के भीतर एक और जेल में दाख़िल होती हैं.
दिल्ली दंगों से संबंधित मामले में गिरफ़्तार गर्भवती सफूरा ज़रगर तिहाड़ जेल में हैं और अदालत में जेल अधीक्षक का कहना था कि उन्हें सभी ज़रूरी सुविधाएं दी जा रही हैं. हालांकि देश की जेलों की स्थिति पर आए आंकड़े और सूचनाएं बताते हैं कि भारतीय जेलें गर्भवती महिला क़ैदियों के लिहाज़ से मुफ़ीद नहीं हैं.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जेल अधिकारी जेलों के क्षमता से अधिक भरे होने के मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. ऐसी कई जेलें हैं जो क्षमता से 100 फीसद तथा कुछ मामलों में तो 150 फीसद से अधिक भरी हैं.
जेलों पर ज़रूरत से ज़्यादा बोझ और कर्मचारियों की कमी के चलते भारतीय जेलें राजनीतिक रसूख वाले अपराधियों के लिए एक आरामगाह और सामाजिक-आर्थिक तौर पर कमज़ोर विचाराधीन कैदियों के लिए नरक हैं.