राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा जोशीमठ में भू-धंसाव की घटनाओं को लेकर पिछले साल दर्ज मामले में बीते जून माह में उत्तराखंड सरकार द्वारा एक रिपोर्ट दायर की गई थी, जिस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए एनजीटी ने कहा है कि रिपोर्ट में कई खामियां हैं और सरकार द्वारा हालात सुधारने को लेकर ज़मीनी स्तर पर कोई काम नहीं किया गया है.
उत्तराखंड के बद्रीनाथ में पुजारियों और स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन द्वारा चारधाम यात्रा के कथित कुप्रबंधन, बद्रीनाथ में वीआईपी ‘दर्शन’ व्यवस्था बंद करने, स्थानीय लोगों के लिए पारंपरिक मार्गों से बैरिकेड हटाने और पहले की तरह मंदिर में प्रवेश की सुविधा देने सहित अपनी आधा दर्जन से अधिक मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन किया.
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक ने कहा कि राज्य सरकार ने सबसे अधिक प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए गौचर के पास बमोथ गांव में भूमि की पहचान की है. हालांकि, लोगों ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव को खारिज कर दिया. निवासी जोशीमठ से बहुत दूर स्थानांतरित नहीं होना चाहते हैं क्योंकि उनकी आजीविका मंदिर शहर पर निर्भर है. खतरे वाले क्षेत्रों की पहचान और चिह्नांकन में भी विसंगति है.
उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धंसाव के नुकसान का आकलन करने के लिए भेजी गईं सरकारी एजेसियों ने एक रिपोर्ट में कहा है कि यहां के कुल 2,152 घरों में से 1,403 घर ज़मीन धंसने से प्रभावित हुए हैं. इन पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है. रिपोर्ट में राज्य सरकार से मानसून के अंत तक शहर में नए निर्माण पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का भी आग्रह किया गया है.
जोशीमठ में भू-धंसाव को लेकर आठ सरकारी संस्थानों की रिपोर्ट में एनटीपीसी को क्लीन चिट दे दी गई है. हालांकि, विशेषज्ञों ने इस संकट के लिए क्षेत्र में अनियोजित और अराजक इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं, विशेष रूप से एक बिजली संयंत्र जिसमें विस्फोट और पहाड़ों में ड्रिलिंग शामिल थे, को ज़िम्मेदार ठहराया है.
अदालत ने यह टिप्पणी तब की, जब जोशीमठ के भूस्खलन का अध्ययन करने वाले केंद्र सरकार के आठ संस्थानों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में उसके सामने रखा गया.
उत्तराखंड के मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली संयुक्त समिति ने मसूरी शहर की वहन क्षमता पर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) को सौंपी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि पर्यटकों का पंजीकरण क्षेत्र की वहन क्षमता, विशेष रूप से उपलब्ध पार्किंग स्थान, अतिथि कक्ष की उपलब्धता आदि के अनुसार किया जाना चाहिए.
उत्तराखंड में केदारनाथ मंदिर समिति द्वारा केदारनाथ धाम के कपाट खोलने की तारीखों की घोषणा के साथ ही जेपी और मारवाड़ी के बीच जोशीमठ के पास बद्रीनाथ राजमार्ग के साथ सड़क के एक हिस्से पर दरारें पाई गई हैं. चमोली के डीएम ने बताया कि सीमा सड़क संगठन को दरारों का परीक्षण करने और सुरक्षात्मक उपाय करने के निर्देश दिए गए हैं.
जम्मू कश्मीर के डोडा ज़िले की ठठरी तहसील के नई बस्ती गांव में भूधंसाव के बाद 19 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया है. क़रीब दो दर्जन पक्की इमारतों में दरार पड़ने के कारणों का पता लगाने के लिए भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के विशेषज्ञों की एक टीम ने गांव का निरीक्षण किया है.
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखक अमिताव घोष ने कहा कि जब जलवायु परिवर्तन असर दिखा रहा है, मानव हस्तक्षेप आपदा को और बढ़ा रहे हैं. जैसा कि जोशीमठ में हुआ. केदारनाथ और बद्रीनाथ की तीर्थ यात्रा पर जाने का पूरा मतलब यह है कि यह कठिन है. लोगों के वहां जाने के लिए परिवहन की व्यवस्था करने का कोई मतलब नहीं है. जहां एक ओर पर्यावरण की रक्षा को लेकर बैठकें हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर खनन के लिए
जोशीमठ शहर में भूमि धंसाव से प्रभावित लोगों के लिए चल रहे राहत कार्य के बीच अनुसूचित जाति के कुछ रहवासियों ने जाति के कारण उपेक्षा किए जाने की शिकायत की है. उत्तराखंड राज्य अनुसूचित जाति आयोग का कहना है कि वे इसकी जांच करेंगे और आरोप सही पाए जाने पर कार्रवाई की जाएगी.
‘विकास’ का यह कौन-सा मॉडल है, जो जोशीमठ ही नहीं, पूरे हिमालय क्षेत्र में दरार पैदा कर रहा है और इंसान के लिए ख़तरा बन रहा है? सरकारी ‘विकास’ की इस चौड़ी होती दरार को अगर अब भी नज़रअंदाज़ किया गया, तो पूरी मानवता ही इसकी भेंट चढ़ सकती है.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि जोशीमठ की स्थिति को लेकर परेशान होने की ज़रूरत नहीं है और देश के दूसरे हिस्सों में बैठे लोगों को इस पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि जोशीमठ में 65-70 फीसदी लोग सामान्य जीवन जी रहे हैं. पड़ोसी पर्यटन स्थल औली में भी सब कुछ सामान्य है. पर्यटक अभी भी औली आ रहे हैं.
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने उत्तराखंड सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों में जरूरी ‘तत्परता और तेजी’ नहीं होने का आरोप लगाया है. इस बीच शीर्ष अदालत भू-धंसाव को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि चूंकि राज्य का हाईकोर्ट इससे जुड़े विस्तृत मामलों की सुनवाई कर रहा है, इसलिए सैद्धांतिक रूप से उसे ही इस मामले पर सुनवाई करनी चाहिए.
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती का कहना है कि सरकार एनटीपीसी को क्लीनचिट दे रही है, जिससे स्थानीय निवासियों में गुस्सा है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वर्तमान स्थिति को प्राकृतिक आपदा क़रार दिया है. यह प्राकृतिक आपदा नहीं है. समिति ने कहा है कि वह इसके विरोध में गणतंत्र दिवस के अवसर पर विरोध प्रदर्शन करेगी.