जोशीमठ: सरकार ने संस्थानों के मीडिया से बातचीत पर रोक लगाई; इसरो ने धंसाव संबंधी रिपोर्ट वापस ली

उत्तराखंड सरकार के निर्देश पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने दर्जन भर सरकारी संस्थानों और वैज्ञानिक संगठनों को पत्र लिखकर कहा है कि वे जोशीमठ में भू-धंसाव के संबंध में मीडिया से बातचीत या सोशल मीडिया पर डेटा साझा न करें. इसके बाद ज़मीन धंसने के संबंध में भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा जारी एक रिपोर्ट को वेबसाइट से हटा दिया गया है.

उत्तराखंड: ग्रामीणों का दावा- जोशीमठ जैसे हालात की राह पर सेलंग गांव

जोशीमठ से क़रीब पांच किलोमीटर दूर स्थित सेलंग गांव के लोगों को कहना है कि पिछले कुछ महीनों से खेतों और कई घरों में दरारें दिखाई दे रही हैं. ग्रामीण इसके लिए एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनके अनुसार, गांव के नीचे एनटीपीसी की नौ सुरंगें बनी हैं, जिससे गांव की नींव को नुकसान पहुंचा है.

उत्तराखंड: जोशीमठ से 82 किमी. दूर कर्णप्रयाग में भी सड़कों और घरों की दीवारों पर दरारें

उत्तराखंड के चमोली ज़िले के जोशीमठ में भू-धंसाव और घरों में दरारों की ख़बरों के बीच इसी ज़िले के कर्णप्रयाग से भी ऐसी ही चिंताजनक तस्वीरें सामने आई हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि वे क़रीब दशक भर से अपने घरों की दीवारों में दरारों की समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन सरकार और प्रशासन ने इस पर ध्यान नहीं दिया, अब मकान रहने लायक नहीं बचे हैं.

बार-बार की चेतावनियों पर सरकार की उदासीनता जोशीमठ संकट की जड़: पर्यावरणविद

चिपको आंदोलन संबद्ध रहे रेमन मैग्सेसे, पद्म भूषण और गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरणवादी चंडी प्रसाद भट्ट ने कहा कि जोशीमठ में गुप्त ख़तरों की चेतावनी दो दशक पहले राज्य सरकार को दी गई थी. एक के बाद एक अध्ययन तब तक मदद नहीं करेगा, जब तक कि सरकारें सुझावों पर कार्रवाई शुरू नहीं करतीं.

जोशीमठ संकट: 46 साल पहले गठित समिति ने भौगोलिक स्थिति, निर्माण कार्यों को लेकर चिंता जताई थी

भूस्खलन और जोशीमठ शहर के डूबने के कारणों की जांच के लिए गठित एक समिति ने 7 मई, 1976 को अपनी रिपोर्ट में भारी निर्माण कार्य, ढलानों पर कृषि और पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने के सुझाव दिए थे. अब स्थानीयों ने मौजूदा स्थिति के लिए बिजली और सड़क परियोजनाओं को ज़िम्मेदार ठहराया है.

उत्तराखंड: जोशीमठ भूस्खलन-धंसाव क्षेत्र घोषित, 60 से अधिक परिवारों को निकाला गया

एक अधिकारी ने बताया कि जोशीमठ की लगभग 610 इमारतों में बड़ी दरारें आ गई हैं, जिससे वे रहने लायक नहीं रह गई हैं. प्रभावित इमारतों की संख्या बढ़ सकती है. स्थानीय लोग इमारतों की ख़तरनाक स्थिति के लिए मुख्यत: एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जैसी परियोजनाओं और अन्य बड़ी निर्माण गतिविधियों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं.

उत्तराखंड: आपदा के कगार पर जोशीमठ; निर्माण परियोजनाओं से घरों में दरारें पड़ीं, लोगों में आक्रोश

उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में एनटीपीसी जैसी बड़ी निर्माण परियोजनाओं के कारण इमारतों में दरारें पड़ने संबंधी चेतावनियों की अनदेखी करने को लेकर स्थानीय लोगों में सरकार के ख़िलाफ़ भारी आक्रोश है. लोगों का आरोप है कि नवंबर 2021 में ही ज़मीन धंसने को लेकर प्रशासन को आगाह किया गया था, लेकिन इसके समाधान के लिए सरकार द्वारा एक साल से अधिक समय तक कोई क़दम नहीं उठाया गया.

उत्तराखंड ग्लेशियर हादसे संबंधी याचिका ख़ारिज कर क्या कोर्ट ने पर्यावरण चिंताओं की उपेक्षा की?

बीते फ़रवरी माह में हुए उत्तराखंड ग्लेशियर हादसे के बाद प्रलयंकारी बाढ़ लाने वाली ऋषिगंगा नदी पर बन रही एनटीपीसी की दो जलविद्युत परियोजना को मिली वन एवं पर्यावरण मंज़ूरी रद्द करने के लिए एक याचिका दायर की गई थी. हालांकि कुछ दिन पहले हाईकोर्ट ने चमोली ज़िले के पांच याचिकाकर्ताओं की प्रमाणिकता पर ही सवाल उठाते हुए इस याचिका को ख़ारिज कर दिया और प्रत्येक पर 10-10 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया है.

उत्तराखंड ग्लेशियर हादसा: लखीमपुर खीरी ज़िले के 29 लापता मज़दूर को मृत घोषित किया गया

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले के रहने वाले ये 29 लोग उत्तराखंड के चमोली ज़िले में तपोवन-विष्णुगढ़ हाइड्रोपावर परियोजना में काम कर रहे थे और इस साल फरवरी महीने में ग्लेशियर टूटने से आई बाढ़ के कारण हुए हादसे के बाद से लापता थे. अचानक आई बाढ़ से चमोली ज़िले के रैणी और तपोवन क्षेत्र में जानमाल का भारी नुकसान हुआ था.

उत्तराखंड ग्लेशियर आपदा: सरकार ने कहा, 74 शव बरामद, 130 लोग अब भी लापता

बीते सात फरवरी को उत्तराखंड के चमोली ज़िले की ऋषिगंगा घाटी पर ग्लेशियर टूटने से अचानक भीषण बाढ़ आ गई थी. इससे ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना पूरी तरह तबाह हो गई थी, जबकि धौलीगंगा के साथ लगती एनटीपीसी की निर्माणाधीन तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को व्यापक नुकसान पहुंचा था. आपदा में 204 व्यक्ति लापता हुए थे.

क्या ‘ग्रीन’ शब्द जुड़ जाने मात्र से कोई परियोजना प्रकृति अनुकूल हो जाती है

नदी, पहाड़, जैव-विविधता की अनदेखी कर बनी बड़ी हाइड्रो पावर परियोजनाओं से पैदा ऊर्जा को 'ग्रीन एनर्जी' कैसे कह सकते हैं? एक आकलन के अनुसार कई परियोजनाएं तो उनकी क्षमता की 25 प्रतिशत बिजली भी पैदा नहीं कर पा रही हैं. तो अगर ये परियोजनाएं व्यावहारिक नहीं हैं, तो सरकार ज़िद पर क्यों अड़ी है?

उत्तराखंड आपदा: हादसों के ढेर पर बैठे हैं लेकिन सबक कुछ नहीं

भूगर्भ वैज्ञानिक निरंतर चेतावनी दे रहे हैं कि सभी ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में विभिन्न मौसमी बदलाव हो रहे हैं. ऐसे में तरह-तरह के हाइड्रोप्रोजेक्ट बनाने की ज़िद प्राकृतिक हादसों को आमंत्रण दे रही है. सबसे चिंताजनक यह है कि केंद्र या उत्तराखंड सरकार इन क्षेत्रों में लगातार हो रहे हादसों से कुछ नहीं सीख रही है.

उत्तराखंड: चमोली आपदा में लापता लोगों को मृत घोषित करेगी सरकार, अधिसूचना जारी

बीते सात फरवरी को चमोली ज़िले की ऋषिगंगा घाटी में पर ग्लेशियर टूटने से अचानक भीषण बाढ़ आ गई थी. इससे चमोली ज़िले के रैणी और तपोवन क्षेत्र में जानमाल का भारी नुकसान हुआ था. आपदा में 204 व्यक्ति लापता हुए थे, जिनमें से अभी तक 70 के शव बरामद हो चुके हैं और 134 लोग अब भी लापता हैं.

उत्तराखंड ग्लेशियर हादसा: तपोवन सुरंग से एक और शव मिला, मृतकों की संख्या बढ़कर 68 हुई

बीते सात फरवरी को उत्तराखंड के चमोली ज़िले की ऋषिगंगा घाटी में ग्लेशियर टूटने से अचानक भीषण बाढ़ आ गई थी. बाढ़ से रैणी गांव में स्थित उत्पादनरत 13.2 मेगावाट ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना पूरी तरह तबाह हो गई थी, जबकि धौलीगंगा के साथ लगती एनटीपीसी की निर्माणाधीन तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को व्यापक नुकसान पहुंचा था.

उत्तराखंड आपदा: एक और शव मिला, मृतक संख्या बढ़कर 62 हुई, 142 लोग अब भी लापता

बीते सात फरवरी को उत्तराखंड के चमोली ज़िले की ऋषिगंगा घाटी में पर ग्लेशियर टूटने से हिमस्खलन हुआ था, जिससे नदी के किनारे 13.2 मेगावाट की एक जलविद्युत परियोजना ध्वस्त हो गई थी, जबकि धौलीगंगा के साथ लगती एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को व्यापक नुकसान पहुंचा था.