भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने कहा कि कोई भी यह नहीं कह सकता है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली सबसे उत्तम प्रणाली है, लेकिन इस प्रणाली में सुधार किया जा सकता है जैसा कि प्रधान न्यायाधीश ने हाल ही में उल्लेख किया था.
भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने एक आयोजन के दौरान कहा कि कभी-कभी क़ानून और न्याय एक ही रास्ते पर नहीं चलते हैं. क़ानून न्याय का ज़रिया हो सकता है, तो उत्पीड़न का औज़ार भी हो सकता है. क़ानून उत्पीड़न का औज़ार न बने, बल्कि न्याय का ज़रिया बने.
शीर्ष अदालत ने कॉलेजियम द्वारा दोबारा भेजे गए नामों सहित उच्चतर न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के लिए अनुशंसित नामों को केंद्र द्वारा लंबित रखने पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि उसने पहले स्पष्ट किया था कि अगर सरकार के एक बार आपत्ति जताने के बाद कॉलेजियम ने दोबारा नाम भेज दिया है तो नियुक्ति होनी ही है.
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली के अपारदर्शी होने की बात दोहराते हुए कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम देश की सामूहिक इच्छा थी, जिससे सुप्रीम कोर्ट सहमत नहीं हुआ.
केंद्रीय क़ानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि न्यायाधीशों का आधा समय और दिमाग़ यह तय करने में लगा रहता है कि अगला न्यायाधीश कौन होगा. उन्होंने यह भी कहा कि जिस प्रकार मीडिया पर निगरानी के लिए भारतीय प्रेस परिषद है, ठीक उसी प्रकार न्यायपालिका पर निगरानी की एक व्यवस्था होनी चाहिए.
केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक समारोह में कहा कि मीडिया को स्वतंत्र होना चाहिए, लेकिन यदि मीडिया स्वतंत्र है तो इसका दुरुपयोग भी किया जा सकता है. अगर एनजीओ स्वतंत्र हैं तो उन्हें इस तरह इस्तेमाल करने का प्रयास किया जाता है कि देश की पूरी व्यवस्था ठप हो जाए. यदि न्यायपालिका स्वतंत्र है तो क़ानूनी प्रणाली का इस्तेमाल कर विकास कार्यों को रोकने या धीमा करने का प्रयास किया जाता है.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुईं जस्टिस इंदिरा बनर्जी 2019 में तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई पर शीर्ष अदालत की ही एक कर्मचारी द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच करने वाली समिति में शामिल थीं.
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ पार्टी के बड़े नेताओं द्वारा चुनाव संहिता के उल्लंघन पर चुप्पी साधे रहता है जबकि ऐसे मामलों में विपक्षी दलों के ख़िलाफ़ तेज़ी से कार्रवाई करता है. उन्होंने दावा किया कि आयोग सरकार की सुविधा को ध्यान में रखते हुए चुनावों का कार्यक्रम बनाता है.
क़ानून मंत्री किरेन रिजीजू ने बताया है कि यूपी की फास्ट-ट्रैक अदालतों में महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के ख़िलाफ़ हुए जघन्य अपराधों के 9.33 लाख से अधिक केस लंबित हैं. देश की ऐसी अदालतों में पॉक्सो से जुड़े 60,000 से अधिक मामले लंबित हैं और इसमें भी उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है.
भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने एक समारोह में कहा कि 21वीं सदी की उपलब्धियों की सराहना करने की ज़रूरत है, लेकिन एक राष्ट्र के रूप में हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते कि करोड़ों भारतीयों के लिए भूख, ग़रीबी, अशिक्षा व सामाजिक असमानता अब भी एक हक़ीक़त है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हम निस्संदेह अधिकता के समय में जी रहे हैं. चीज़ें बहुत अधिक हो गई हैं और उनके दाम भी. महंगाई बढ़ रही है, विषमता भी. हत्या, बलात्कार, हिंसा आदि में बढ़ोतरी हुई है. पुलिस द्वारा जेल में डाले गए और सुनवाई न होने के मामले भी बढ़े हैं. न्याय व्यवस्था में सर्वोच्च स्तर पर सत्ता के प्रति भक्ति और आसक्ति बढ़ी है.
तमिल फिल्म ‘जय भीम’ पर कथित तौर पर वन्नियार समुदाय को ग़लत तरीके से दिखाकर उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा था. फिल्म साल 1995 में तमिलनाडु में हिरासत में यातना और एक ‘कोरवार’ आदिवासी समुदाय के व्यक्ति की मौत की सच्ची घटना पर आधारित कहानी है.
छत्तीसगढ़ पुलिस ने ग्रामीणों की हत्या पर एफआईआर तब दर्ज की थी, जब उनके परिजनों ने याचिका दायर की, फिर उसने विसंगतियों से भरी जानकारियां दीं, याचिकाकर्ताओं को गवाही दर्ज होने से पहले हिरासत में लिया गया, फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने सरकार पर विश्वास करते हुए न्याय के लिए उस तक पहुंचे लोगों को दंडित करने का फैसला दिया.
वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों को लेकर कहा कि यदि आपको लगता है कि जज हमेशा क़ानून के अनुसार निर्णय लेते हैं, तो आप ग़लत हैं. राजनीतिक तौर पर संवेदनशील मामले कुछ चुनिंदा जजों को दिए जाते हैं और निर्णय का क्या होगा, यह कोई भी बता सकता है.
वीडियो: बीते दिनों 2002 के गुजरात दंगों और 2009 में छत्तीसगढ़ में हुए गोमपाड नरसंहार मामले पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की रोशनी में सामाजिक कार्यकर्ताओं और न्यायिक समुदाय ने 'नागरिक स्वतंत्रता पर न्यायिक हमले' नामक पीपुल्स ट्रिब्यूनल का आयोजन किया गया था. इस बारे में सुमेधा पाल की रिपोर्ट.