जम्मू कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रवक्ता दीपिका सिंह राजावत ने कहा कि उपराज्यपाल दिल्ली में अपने आकाओं के सामने सामान्य हालात की कहानी बताने के लिए एक मिनट भी नहीं गंवाते हैं, लेकिन उनके झूठ का बुलबुला तब फूटता है, जब आतंकी संगठनों द्वारा कश्मीरी पंडितों पर हमला करने को लेकर सूची जारी की जाती है.
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में कहा कि सरकार की आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति रही है और जम्मू कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति में काफी सुधार हुआ है तथा आतंकवादी हमलों में काफी कमी आई है. इसके उलट बीते दिनों कश्मीर घाटी में काम कर रहे 56 कश्मीरी पंडितों के नाम लेते हुए आतंकी समूह द रेजिस्टेंस फ्रंट द्वारा जारी की गई एक ‘हिटलिस्ट’ से भयभीत समुदाय ने विरोध प्रदर्शन किया था.
बीते 12 मई को बडगाम ज़िले के चादूरा तहसील कार्यालय में कार्यरत कश्मीरी पंडित कर्मचारी राहुल भट्ट की उनके दफ्तर में आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसके बाद घाटी से सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने की मांग को लेकर कर्मचारी लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.
कश्मीरी प्रवासी कर्मचारियों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के बाद पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश आज ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहां पर लोगों के पास न तो कोई अधिकार है और न ही उनकी शिकायतों को उठाने के लिए कोई मंच.
मंगलवार को शोपियां में आतंकवादियों ने दो कश्मीरी पंडित भाइयों पर हमला किया, जिसमें एक की मौत हो गई. इसके बाद कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति ने कहा कि कश्मीरी पंडितों के लिए केवल एक ही विकल्प बचा है कि घाटी छोड़ दें या फिर धार्मिक कट्टरपंथियों के हाथों मार डाले जाएं.
जम्मू कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति पर जारी 'द फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स इन जम्मू एंड कश्मीर' की रिपोर्ट में अगस्त 2021 से जुलाई 2022 के बीच हुए सूबे के उन घटनाक्रमों की बात की गई है जो मानवाधिकार उल्लंघनों की वजह बने. साथ ही, मानवाधिकारों की स्थिति में सुधार के लिए कुछ सिफ़ारिशें भी की गई हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने कहा कि सरकार कहती है कि कश्मीर में शांति क़ायम है, जबकि तथ्य यह है कि कश्मीरी पंडित और मुसलमान दोनों मारे जा रहे हैं. एक शिक्षिका की हत्या सुरक्षा स्थिति की गंभीर तस्वीर पेश करती है और केंद्र शासित प्रदेश में शांति के स्तर को दर्शाती है.
सिंगापुर की इन्फोकॉम मीडिया डेवलपमेंट अथॉरिटी ने संस्कृति, समुदाय और युवा मंत्रालय तथा गृह मंत्रालय के साथ एक संयुक्त वक्तव्य में कहा कि इस फिल्म को सिंगापुर के फिल्म वर्गीकरण दिशानिर्देशों के मानकों से परे पाया है.
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में बताया कि जम्मू कश्मीर में 2014 से 2019 तक पांच साल में कम से कम 177 नागरिक और 406 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे. एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि राज्य में 2019 से अब तक आतंकवादियों के हाथों चार कश्मीरी पंडित सहित 14 हिंदू मारे गए.
लोग ये बहस कर सकते हैं कि फिल्म में दिखाई गई घटनाएं असल में हुई थीं और कुछ हद तक वे सही भी होंगे. लेकिन किसी भी घटना के बारे में पूरा सच, बिना कुछ भी घटाए, जोड़े और बिना कुछ भी बदले ही कहा जा सकता है. सच कहने के लिए न केवल संदर्भ चाहिए, बल्कि प्रसंग और परिस्थिति बताया जाना भी ज़रूरी है.
सिनेमाघरों में द कश्मीर फाइल्स देखने वालों के नारेबाज़ी और सांप्रदायिक जोश से भरे वीडियो तात्कालिक भावनाओं की अभिव्यक्ति लगते हैं, लेकिन ऐसे कई वीडियो की पड़ताल में कट्टर हिंदुत्ववादी कार्यकर्ताओं और संगठनों की भूमिका स्पष्ट तौर पर सामने आती है.
विवेक रंजन अग्निहोत्री भाजपा के पसंदीदा फिल्मकार के रूप में उभर रहे हैं और उन्हें पार्टी का पूरा समर्थन मिल रहा है.
वीडियो: ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’ नामक किताब के लेखक अशोक कुमार पांडे ने हाल ही में रिलीज़ फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बारे में बात की. उन्होंने समझाया कि 1990 में कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ, वह स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक था. उन्होंने यह भी बताया कि कैसे अल्पसंख्यकों के बीच असुरक्षा का माहौल बनाने के लिए फिल्म का इस्तेमाल किया जाता है.
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन का कारण रहीं परिस्थितियों की जांच के लिए एक समिति गठित करने की भी मांग की. उन्होंने मुसलमानों के प्रति नफ़रत की भावना नहीं रखने की अपील करते हुए कहा कि दिल्ली दंगे और 2002 में गुजरात में हुई सांप्रदायिक हिंसा के लिए ज़िम्मेदार परिस्थितियों की भी जांच होनी चाहिए.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन पर आधारित फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में दिखाया गया है कि उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी, जबकि ऐसा नहीं है. यह बाद दोहराते हुए शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि उस समय कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और हत्याओं की भाजपा ने निंदा तक नहीं की थी.