जनतंत्र में दलितों की भागीदारी क्या मात्र संख्या है या वे इस जनतंत्र की शक्ल भी तय कर सकते हैं? मतदान का जो समान अधिकार दलितों को मिला या उन्होंने लिया, वह भी ऐसे जनतंत्र का संसाधन बन गया जो पारंपरिक वर्चस्व को और मज़बूत करता है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की बीसवीं क़िस्त.
भारतीय जनतंत्र एक वादा था और हिंदू-मुसलमान भाईचारा उसकी बुनियाद. लेकिन आज मुसलमान ख़ुद को बराबरी का नागरिक नहीं मान पा रहा है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की उन्नीसवीं क़िस्त.
पूंजीवाद स्वाभाविक और प्राकृतिक जान पड़ता है. लेकिन मनुष्य निर्विकल्प अवस्था को कैसे स्वीकार कर ले तो फिर मनुष्य कैसे रहे? कविता में जनतंत्र स्तंभ की अठारहवीं क़िस्त.
गांधी भारत को धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र के रूप में विकसित होते देखना चाहते थे, लेकिन हिंदू राष्ट्र का विचार इसके ख़िलाफ़ था.
कविता में जनतंत्र स्तंभ की सत्रहवीं क़िस्त.
नागार्जुन की कविता ‘तेरी खोपड़ी के अंदर’ स्वतंत्रता के बाद विकसित हुए भारतीय जीवन पर एक फटकार है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की सोलहवीं क़िस्त.
कौन नागरिकता के दायरे के केंद्र में और कौन हमेशा परिधि पर लटके रहने को अभिशप्त है? यह सवाल आज हर भाषा का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न हो उठा है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की पंद्रहवीं क़िस्त.
जनतंत्र ख़ुद इंसाफ़ है क्योंकि वह अपनी ज़िंदगी के बारे में फ़ैसला करने के मामूली से मामूली आदमी के हक़ को स्वीकार करने और हासिल करने का अब तक ईजाद किया सबसे कारगर रास्ता है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की चौदहवीं क़िस्त.
कुंवर नारायण की कविता राम को सकुशल सपत्नीक वन में लौट जाने की सलाह देती है. लेकिन हमारे काव्यों ने तो उन्हें वहां से निकालकर युद्धक्षेत्र में भेज दिया था! आज फिर एक युद्ध चल रहा है और राम एक पक्ष के हथियार बना दिए गए हैं. कविता में जनतंत्र स्तंभ की तेरहवीं क़िस्त.
एक आराध्य का चुनाव भीड़ को जन्म देता है. एक नेता में आस्था जिससे कोई सवाल नहीं किया जा सकता, जिसकी सिर्फ़ जय-जयकार ही की जा सकती है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की बारहवीं क़िस्त.
जनतंत्र में आशंका बनी रहती है कि जनता प्रक्रियाओं को लेकर निश्चिंत हो जाए और यह मानकर उन पर भरोसा कर बैठे कि वे अपना काम करते रहेंगे और जनतंत्र सुरक्षित रहेगा. मगर अक्सर यह नहीं होता. कविता में जनतंत्र स्तंभ की ग्यारहवीं क़िस्त.
जनतंत्र मात्र वोट से नहीं चलता. वह संस्थानों, शक्तियों के विभाजन और उनकी निगरानी और उन पर नियंत्रण से ही चल सकता है. लेकिन इतिहास हमें बतलाता है कि कई बार स्वायत्त संस्थान अपनी स्वायत्तता सरकार के हवाले कर देते हैं.
कविता में जनतंत्र स्तंभ की दसवीं क़िस्त.
जनतंत्र में जनता और नेता के बीच एक रिश्ता है. नेता और दल जनता को बनाते और तोड़ते हैं. लेकिन कवि का जनतंत्र के प्रति दायित्व यही है कि लोकप्रिय से ख़ुद को अलग करना. कविता में जनतंत्र की नवीं क़िस्त.
राजनीतिक दल अक्सर दूसरे दलों पर वोट बैंक यानी किसी ख़ास समुदाय की राजनीति करने का आरोप लगाते हैं. लेकिन वे भूल जाते हैं कि यह इल्ज़ाम लगाते वक्त वे उस जनता से रिश्ता तोड़ देते हैं जिसे वे अपने प्रतिद्वंद्वी का वोट बैंक कहकर लांछित कर रहे हैं.
कविता और जनतंत्र पर इस स्तंभ की आठवीं क़िस्त.
मौन उस वक़्त भाषा का सबसे बड़ा गुण हो जाता है जब सबसे अभ्यर्थना और जय-जयकार की मांग हो रही हो. जब सारे हाथ उठे हों, तो अपना हाथ बांधे रख सकना भी एक अभिव्यक्ति है. हिंदी कविता और जनतंत्र पर इस स्तंभ की सातवीं क़िस्त.
डेमॉगॉग लोगों के भीतर छिपी अश्लीलताओं को उत्तेजित करता है, समाज में विभाजन पैदा करता है और जो अंतर लोगों में है, उनका इस्तेमाल कर उनके बीच खाई खोदता है, वह एक के हित को दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा करता है, ख़ुद को अपने लोगों के रक्षक के तौर पर पेश करता है.