कोविड टीकाकरण के कथित प्रतिकूल प्रभावों से दो लड़कियों की मौत के मामले में उनके माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इस संबंध में केंद्र सरकार ने अदालत में पेश हलफ़नामे में कहा है कि टीकों के इस्तेमाल से मौत के मामलों के लिए सरकार को मुआवज़े के लिए जवाबदेह ठहराना क़ानूनन सही नहीं है.
वीडियो: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो दशकों में सभी धार्मिक समुदायों में मुसलमानों की जनसंख्या में सबसे तेज़ गिरावट देखी गई है. समुदाय की प्रजनन दर 2019-2021 में गिरकर 2.3 हो गई, जो 2015-16 में 2.6 थी. इस मुद्दे पर चुनाव आयोग के पूर्व प्रमुख एसवाई क़ुरैशी से आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल अपने एक हलफ़नामे में कहा है कि कोई भी सरकारी दिशानिर्देश बिना सहमति जबरन टीकाकरण करने की बात नहीं कहता है और न ही किसी भी प्रयोजन के लिए टीकाकरण प्रमाण-पत्र दिखाने को अनिवार्य बनाते हैं.
नीति आयोग ने बताया कि यह रिपोर्ट स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा विश्व बैंक की तकनीकी सहायता से तैयार की गई है. इसमें कहा गया है कि स्वास्थ्य के मानकों पर तमिलनाडु और तेलंगाना क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं.
शीर्ष अदालत उन 41 स्नातकोत्तर डॉक्टरों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने ‘राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा- अति विशिष्टता’ की अधिसूचना जारी होने के बाद पाठ्यक्रम में अंतिम समय में किए गए बदलाव को चुनौती दी थी. अदालत ने कहा कि वह इन युवा डॉक्टरों को कुछ असंवेदनशील नौकरशाहों के हाथों में खेलने की अनुमति नहीं देगा.
यह तथ्य है कि योगी आदित्यनाथ सरकार हमेशा अपने मक़सद को पाने के लिए बेहतर और बिना ज़ोर-ज़बरदस्ती वाले तरीकों की बजाय धमकाने या डर दिखाने वाले उपायों को तरजीह देती है. इसका ताज़ा नमूना हाल में में लाया गया जनसंख्या नियंत्रण विधेयक है.
विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीनों पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रस्तावित जनसंख्या क़ानून को ज़रूरी बताते हुए कहा कि बढ़ती आबादी प्रदेश के विकास में बाधा बनी हुई है. पर क्या यह बाधा अचानक आ खड़ी हुई? अगर नहीं, तो इसे लेकर तब उपयुक्त कदम क्यों नहीं उठाए गए, जब उनकी सरकार के पास उसे आगे बढ़ाने का समय था?
योगी सरकार द्वारा प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण क़ानून के तहत दो से अधिक बच्चे होने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन से लेकर स्थानीय निकायों में चुनाव लड़ने पर रोक होगी. यदि इस आधार पर राज्य के भाजपा विधायकों का मूल्यांकन किया जाएगा, तो इनके पचास फीसदी इस कसौटी पर खरे नहीं उतरेंगे.
विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या नियंत्रण विधेयक का प्रारूप जारी करते हुए 19 जुलाई तक जनता से इस पर राय मांगी गई है. इस प्रारूप में दो से अधिक बच्चे होने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन से लेकर स्थानीय निकायों में चुनाव लड़ने पर रोक लगाने और सरकारी योजनाओं का भी लाभ न दिए जाने का प्रस्ताव है.
विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण) विधेयक-2021 का प्रारूप जारी करते हुए 19 जुलाई तक जनता से इस पर राय मांगी गई है. इस प्रारूप में दो से अधिक बच्चे होने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन से लेकर स्थानीय निकायों में चुनाव लड़ने पर रोक लगाने और सरकारी योजनाओं का भी लाभ न दिए जाने का प्रस्ताव है.
भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने एक जनहित याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें अदालत ने देश की बढ़ती आबादी पर नियंत्रण के लिए दो बच्चों के नियम समेत कुछ कदमों को उठाने की मांग करने वाली उनकी याचिका ख़ारिज कर दी थी.
केंद्र ने दो श्रेणियों को छोड़कर बाकी सभी स्वास्थ्यकर्मियों के लिए 14 दिन के क्वारंटीन की अनिवार्यता को ख़त्म कर दिया गया है. केवल उन कर्मचारियों के लिए 14 दिन तक क्वारंटीन में रहना अनिवार्य है, जो कोरोना संक्रमित के मरीज़ों के सीधे संपर्क में आए हों या जिनमें बीमारी के लक्षण हों.
राज्य में बनाए गए ग्रीन ज़ोन में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने के बाद असम सरकार ने केंद्र को सूचित किया है कि वह परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय द्वारा निर्धारित किए गए ‘ज़ोन सिस्टम’ को नहीं मानेंगे.
पूर्व स्वास्थ्य सचिव के. सुजाता राव ने कहा है कि कुपोषण और स्वस्थ जीवनशैली के अभाव में काफी संख्या में लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है. ऐसे में बीमारियों को लेकर सतत रूप से अनुसंधान पर ध्यान देने की जरूरत है, जिसकी हमारे देश में काफी कमी है.
लोकसभा में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार देश भर में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं है. कई राज्यों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चिकित्सकों की कमी से जूझते हुए बिजली, पानी, शौचालय आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं के बगैर काम कर रहे हैं.