असम समझौते के खंड 6 को लागू करने के लिए 2019 में गृह मंत्रालय द्वारा जस्टिस बिप्लब कुमार शर्मा समिति का गठन किया गया था. अब असम सरकार ने इस समिति की कुल 67 सिफ़ारिशों में से 52 को लागू करने का फैसला किया है. विपक्ष ने इसे गुमराह करने वाला बताया है.
मणिपुर में साल भर से अधिक समय से चल रहे जातीय संघर्ष की जांच के लिए गठित आयोग को नवंबर 2023 से छह महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया था. अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आयोग से 20 नवंबर 2024 से पहले रिपोर्ट देने को कहा है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर लगे प्रतिबंध को बीते 9 जुलाई को केंद्र सरकार ने हटा दिया था. प्रतिबंध हटाने का आदेश सरकारी वेबसाइटों पर तो सार्वजनिक कर दिया गया है, लेकिन इस आदेश को पारित करने वाली फाइल को 'गोपनीय' सूची में डाल दिया गया है.
प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो की वेबसाइट पर 12 मार्च को शाम सात बजे के क़रीब जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया था कि नागरिकता संशोधन अधिनियम 'उत्पीड़न के नाम पर इस्लाम की छवि ख़राब होने से बचाता है'. बाद में इसे हटा दिया गया, जिसका कारण स्पष्ट नहीं है.
गृह मंत्रालय द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम को अधिसूचित करने की ख़बर फैलते ही असम के ग़ैर-छठी अनुसूची वाले क्षेत्रों में इसके विरोध में दर्जनों छात्र नारे लगाते हुए निकल पड़े. विभिन्न छात्र संगठनों ने राज्य के अलग-अलग हिस्सों में सड़कों पर उतरकर अधिनियम की प्रतियां जलाईं.
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सीआरपीएफ के आधिकारिक पत्राचार के मुताबिक़, जम्मू कश्मीर में तैनात सैनिकों के लिए भी सीआरपीसी 1973 की धारा 45 लागू करने के लिए गृह मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजा गया था, जिसे मंज़ूरी मिल गई है. इस धारा के तहत जवानों को केंद्र सरकार की सहमति लिए बिना गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता.
वीडियो: एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पहली बार केंद्र की सत्ता संभालने के बाद ईसाई समुदाय के ख़िलाफ़ हिंसा के मामले 400 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं. इसके अलावा हिंसा की सबसे अधिक घटनाएं उत्तर प्रदेश से दर्ज की गई हैं.
ईसाई समुदाय और संस्थानों को निशाना बनाकर किए जा रहे हमलों से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय से कहा है कि वह संबंधित राज्यों से ईसाइयों पर हमलों से जुड़े मामलों में की गई कार्रवाई का डेटा एकत्र करे. यह डेटा कम से कम आठ राज्यों से एकत्र किया जाना है.
एक रिपोर्ट के अनुसार, गृह मंत्रालय का यह क़दम केंद्र द्वारा राज्यों को भेजे उस प्रस्ताव के ठीक बाद आया है, जिसमें अखिल भारतीय सेवा नियमों में संशोधन की बात कही गई थी, जो केंद्र सरकार को शक्ति देता कि वह किसी भी आईएएस, आईपीएस और भारतीय वन सेवा अधिकारी को राज्य की अनुमति या बिना अनुमति के भी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुला सकती है.