महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम की 20वीं वर्षगांठ के मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि मनरेगा के बजट में कटौती कर सरकार इस योजना के तहत काम की मांग को दबाने का काम कर रही है.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के एक वर्किंग पेपर में कहा गया है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की शुरुआत और विस्तार से न्यूनतम वेतन नियमों के अनुपालन की दर में वृद्धि हुई, औपचारिक वेतनभोगी श्रमिकों और आकस्मिक श्रमिकों के बीच ग्रामीण मजदूरी में अंतर कम हो गया और ग्रामीण क्षेत्रों में लैंगिक वेतन अंतर में भी गिरावट आई.
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के संबंध में लोकसभा में पेश की गई एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में बताया गया है कि चालू वित्त वर्ष में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा के लिए 1.1 लाख करोड़ रुपये की मांग की थी, लेकिन वित्त मंत्रालय ने इससे काफी कम केवल 86,000 करोड़ का प्रावधान किया है.
ईडी के अधिकारियों ने मंगलवार सुबह मनरेगा फंड के कथित गबन की जांच के सिलसिले में चिनसुराह स्थित सुभदीप साधुखा के घर पर उन्हें संदीप साधुखा समझकर छापा मारा. परिवार का कहना है कि उनके गलत पहचान की बात कहने पर भी ईडी अधिकारियों ने उनकी नहीं मानी.
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) आधार आधारित भुगतान प्रणाली का कार्यान्वयन 30 जनवरी 2023 को अनिवार्य कर दिया गया था, हालांकि बाद में इसे लागू करने के लिए कई विस्तार दिए गए थे. 31 दिसंबर 2023 के बाद राज्यों को कोई विस्तार नहीं दिए जाने के कारण एबीपीएस 1 जनवरी 2024 से अनिवार्य हो गया.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को दावा किया कि पंजाब में उनकी पार्टी की सरकार द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों को रोकने के लिए केंद्र राज्य का धन रोक रहा है. इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लंबे समय से केंद्र पर फंड रोकने का आरोप लगाती रही हैं.
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता वाले जम्मू-कश्मीर के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी एक सर्कुलर में कहा गया है कि कुछ कर्मचारी कुछ मांगों के पक्ष में प्रदर्शन और हड़ताल का सहारा ले रहे हैं. कर्मचारियों द्वारा कोई भी प्रदर्शन और हड़ताल ‘गंभीर अनुशासनहीनता और कदाचार का काम’ है.
विभिन्न राज्य सरकारों ने 2022-23 में मनरेगा डेटाबेस से 5 करोड़ से अधिक जॉब कार्ड हटा दिए हैं, जो 1 करोड़ से 1.5 करोड़ जॉब कार्ड हटाने के वार्षिक औसत से कहीं अधिक है. एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है राज्यों ने जॉब कार्ड हटाने में तेज़ी ला दी है, क्योंकि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 100 प्रतिशत आधार आधारित भुगतान प्रणाली के अनुपालन पर ज़ोर दिया है.
एक रिपोर्ट के अनुसार, मनरेगा योजना के तहत काम की मांग पिछले साल की समान अवधि की तुलना में बढ़ गई है. सितंबर तक योजना के तहत काम चुनने वाले व्यक्तियों की संख्या भी एक साल पहले की तुलना में इस साल 4.6 प्रतिशत बढ़कर लगभग 19 करोड़ हो गई है.
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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम में जॉब कार्ड हटाना और नए जॉब कार्ड जारी करना नियमित प्रथा है, लेकिन हाल ही में हटाए गए कार्डों की बड़ी संख्या ने चिंता पैदा कर दी है. इन नामों के हटने के पीछे का मुख्य कारण आधार-आधारित भुगतान प्रणाली का कार्यान्वयन बताया जा रहा है.
मनरेगा प्रत्येक ग्रामीण परिवार के व्यस्क व्यक्तियों को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के अकुशल शारीरिक श्रम के रोजगार की गारंटी देता है. 2020-21 में जब कोविड-19 का प्रकोप और उसके बाद देशव्यापी लॉकडाउन देखा गया तब इस योजना का लाभ उठाने वाले परिवारों का वार्षिक आंकड़ा 7.5 करोड़ के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था.
आधार की व्यावहारिकता पर सवाल उठाने वाली रेटिंग एजेंसी मूडीज़ की रिपोर्ट पर कड़ी आपत्ति जताते हुए केंद्र सरकार ने कहा है कि रिपोर्ट ‘बिना किसी सबूत या आधार का हवाला दिए’ तैयार की गई है. इसमें दुनिया की सबसे भरोसेमंद डिजिटल पहचान ‘आधार’ के ख़िलाफ़ बढ़-चढ़कर दावे किए गए हैं.
कुछ मामलों में श्रमिकों को लगातार पांच महीनों से भुगतान नहीं किया गया है. स्थानीय अधिकारी बिहार ग्रामीण विकास विभाग को फंड जारी करने में देरी के लिए केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है. एक स्थानीय ग़ैर सरकारी संगठन ‘मनरेगा वॉच’ का कहना है कि गायघाट, बोचहा और कुरहनी समेत ज़िले के कई ब्लॉकों में लगभग 25,000 श्रमिकों को महीनों से उनकी मज़दूरी नहीं मिल रही है.
मनरेगा के तहत काम करने वाले मज़दूर डिजिटल बुनियादी ढांचे की कमी के बावजूद प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने की सरकार की नीति का ख़ामियाजा भुगत रहे हैं. उपस्थिति के लिए लाया गया राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली (एनएमएमएस) एप्लिकेशन और अनिवार्य आधार-आधारित भुगतान प्रणाली ने मज़दूरों की समस्याओं को और बढ़ा दिया है.