मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले में एक सरकारी स्कूल के शिक्षक ने कथित तौर पर अपनी कक्षा में बच्चों से कहा था कि किसी को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वोट नहीं देना चाहिए. शिक्षक पर चुनाव आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन का मामला दर्ज किया गया है.
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में पुलिसकर्मियों ने एक सड़क दुर्घटना पीड़ित के शव को एक नहर में फेंक दिया था. यह मामला तब सामने आया जब इस कृत्य का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. राष्ट्रीय मानव आयोग ने कहा कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के साथ मानवाधिकारों का अस्तित्व समाप्त नहीं होता है.
मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले का मामला. सभी प्रभावित लोगों ने शुक्रवार और शनिवार को देसी शराब का सेवन किया था. शराब पीने के कुछ ही घंटों बाद उन्हें जी मिचलाने, पेट दर्द, चक्कर आने, सांस लेने में तकलीफ़ और दृष्टि कम होने की शिकायत होने लगी. इनमें से दो ने रविवार सुबह दम तोड़ दिया.
कुछ मामलों में श्रमिकों को लगातार पांच महीनों से भुगतान नहीं किया गया है. स्थानीय अधिकारी बिहार ग्रामीण विकास विभाग को फंड जारी करने में देरी के लिए केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है. एक स्थानीय ग़ैर सरकारी संगठन ‘मनरेगा वॉच’ का कहना है कि गायघाट, बोचहा और कुरहनी समेत ज़िले के कई ब्लॉकों में लगभग 25,000 श्रमिकों को महीनों से उनकी मज़दूरी नहीं मिल रही है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नवंबर के आखिरी दिनों की रिपोर्ट में बिहार के मोतिहारी का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 402 था. यह स्थिति लगभग महीने भर से बनी हुई है. ऐसे शहर में, जहां उद्योग के नाम पर किसी ज़माने में रही चीनी मिल के भग्नावशेष ही दिखते हैं, प्रदूषण का यह स्तर गंभीर सवाल खड़े करता है.
बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में रामनवमी के मौके पर एक शख़्स द्वारा मस्जिद की दीवार पर चढ़कर उसके गेट के ऊपर भगवा झंडा लगाए जाने का मामला सामने आया है. घटना से संबंधित वीडियो में तलवार और हॉकी स्टिक लहराते कई बाइक सवारों को इस शख़्स का उत्साहवर्धन करते देखा जा सकता है.
बिहार में अप्रैल 2016 से शराब की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध लगा हुआ है. हालांकि कथित तौर ज़हरीली शराब से लोगों की मौत की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं. पिछले साल दिवाली के समय ऐसी ही एक अन्य घटना में चार ज़िलों में 40 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.
घटना रविवार को मुज़फ़्फ़रपुर के बेला औद्योगिक इलाके में नूडल्स और अन्य खाद्य पदार्थ बनाने वाली एक इकाई में हुई, जिसमें सात लोग घायल हो गए. पुलिस ने इस संबंध में फैक्ट्री के मालिक, उनकी पत्नी, प्रबंधक और बॉयलर की मरम्मत करने के लिए रखे गए कर्मचारियों पर मामला दर्ज किया है.
मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 22 नवंबर को 65 लोगों का मोतियाबिंद ऑपरेशन किया गया था, जिसके बाद कई लोगों की दृष्टि चली गई थी या संक्रमण फैलने से रोकने के लिए आंखे निकालनी पड़ी. माइक्रोबायोलॉजिकल टेस्ट के लिए भेजे गए नमूनों से पुष्टि हुई है कि ऑपरेशन थियेटर संक्रमित था.
मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले का मामला. जिले में 22 नवंबर को आयोजित एक मेडिकल कैंप में मोतियाबिंद के शिकार 65 लोगों की आंखों का ऑपरेशन किया गया था. सर्जरी के बाद कई मरीज़ों ने आंखों में दर्द की शिकायत की, जिसके बाद डॉक्टर की सलाह पर कई लोगों को अपनी आंखें निकलवानी पड़ी.
बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले का मामला. मृतक के परिजनों के दावे के इतर ज़िला प्रशासन ने शराब से मौत होने की बात से इनकार किया है. एफ़आईआर दर्ज करने के बाद थानाध्यक्ष को निलंबित करने के साथ सर्किल इंस्पेक्टर को लाइन हाजिर कर दिया गया है. बिहार में साल 2016 से पूर्ण शराबबंदी है.
साल 2018 में उत्तर प्रदेश के देवरिया और बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर स्थित बाल गृहों में यौन शोषण का मामला सामने आने के बाद सरकार ने देश के सभी बाल गृहों की सामाजिक ऑडिट करने का आदेश दिया था. ऑडिट किए गए 7,163 बाल गृहों में से 1,504 में अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है, जबकि 434 के शौचालयों और स्नानगृह में निजता की व्यवस्था नहीं है.
मुज़फ़्फ़रपुर और आसपास के क्षेत्रों में अमूमन अगस्त-सितंबर में चमकी बुखार का भीषण प्रकोप देखने को मिलता है, पर इस बार मामले भी कम आए और मौतें भी कम हुईं. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि बावजूद इसके बिहार को चमकी बुखार से निपटने के लिए अभी और तैयारी करनी होगी.
ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर स्थित मोतीपुर चीनी मिल 1932 स्थापित की गई थी. 1980 में राज्य सरकार ने इसका संचालन अपने हाथ में लिया और वर्ष 1997 में यह बंद हो गई. आज हालात ये हैं कि बिहार में 28 में से सिर्फ 11 चीनी मिलें ही चल रही हैं. ये सभी चीनी मिलें सिर्फ़ छह ज़िलों में स्थित हैं.
ग्राउंड रिपोर्ट: मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के रत्नौली गांव के रहने वाले 33 वर्षीय संजय साहनी कुढ़नी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार हैं. सातवीं तक पढ़े संजय लंबे समय तक प्रवासी कामगार के बतौर दिल्ली में रहे हैं और अब मनरेगा के तहत मज़दूरी करते हुए आसपास के गांवों में मनरेगा के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए जाने जाते हैं.