कोरोना लॉकडाउन में बेरोज़गारी हुई भयावह, 11 करोड़ से अधिक लोगों ने किया मनरेगा में काम

बीते साल अप्रत्याशित तरीके से लागू लॉकडाउन के चलते करोड़ों दिहाड़ी मज़दूर अपने गांव लौटने को मजबूर हुए थे, जहां ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा उनकी आजीविका का एकमात्र ज़रिया बनी. आंकड़े दर्शाते हैं कि इससे पहले 2013-14 से 2019-20 के बीच 6.21 से 7.88 करोड़ लोगों ने मनरेगा के तहत रोज़गार पाया था.

आरोपी पुलिसवालों को बरी करने पर इशरत जहां की मां ने कहा- शुरू से एकतरफ़ा थी सुनवाई

2004 में 19 वर्षीय इशरत जहां की अहमदाबाद के बाहरी इलाके में हुई एक मुठभेड़ में मौत हो गई थी. मुठभेड़ को जांच में फ़र्ज़ी पाया गया था और सीबीआई ने सात पुलिस अधिकारियों को आरोपी बताया था. इनमें से तीन को बुधवार को आरोप मुक्त कर दिया गया. इससे पहले तीन अन्य आरोपी अधिकारी बरी किए जा चुके हैं, जबकि एक की बीते साल मौत हो गई थी.

इशरत जहां मुठभेड़: अदालत ने बाकी बचे तीन आरोपी पुलिसकर्मियों को भी आरोप मुक्त किया

साल 2004 में मुंबई के नज़दीक मुम्ब्रा की रहने वाली 19 वर्षीय इशरत जहां तीन अन्य लोगों के साथ अहमदाबाद के बाहरी इलाके में गुजरात पुलिस की मुठभेड़ में मारी गई थीं. जांच में ये मुठभेड़ फ़र्ज़ी निकली थी. मामले के तीन अन्य आरोपी पुलिसकर्मी- पीपी पांडेय, डीजी वंजारा, एनके अमीन पहले ही आरोपमुक्त किए जा चुके हैं, जबकि जेजी परमार की बीते साल मौत हो गई.

टीएमसी ने चुनाव आयोग से की शिकायत, कहा- मोदी की बांग्लादेश यात्रा चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन

टीएमसी का आरोप है कि प्रधानमंत्री की दो दिवसीय यात्रा का बांग्लादेश की आज़ादी के 50 वर्ष पूरे होने या ‘बंगबंधु’ के जयंती समारोहों में शामिल होने से कोई लेना-देना नहीं था. इसके बजाय उनका एकमात्र मक़सद पश्चिम बंगाल में चल रहे चुनावों में कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान को प्रभावित करने का था.

मोदी की राजनीति के ख़िलाफ़ गुस्से का निशाना बांग्लादेश के हिंदुओं को क्यों बनाया जा रहा है

एक देश में अल्पसंख्यकों पर हमले के विरोध के दौरान जब उसी देश के अल्पसंख्यकों पर हमला होने लगे तो शक़ होता है कि यह वास्तव में किसी नाइंसाफी के ख़िलाफ़ या बराबरी जैसे किसी उसूल की बहाली के लिए नहीं है, बल्कि इसके पीछे भी एक बहुसंख्यकवादी द्वेष ही है.

म्यांमार में जिस दिन सबसे अधिक लोग मारे गए, उस दिन भारत ने वहां सैन्य परेड में हिस्सा लिया

तख़्तापलट के बाद सैन्य शासन के ख़िलाफ़ म्यांमार में चल रहे प्रदर्शन के दौरान हुए संघर्ष में बीते 27 मार्च को तकरीबन 90 लोगों की मौत हो गई थी. लोकतंत्र समर्थक समूहों ने पूछा है कि दुनिया के सबसे महान लोकतंत्रों में से एक भारत ने क्यों जनरलों से हाथ मिलाने के लिए एक प्रतिनिधि क्यों भेजा, जिनके हाथ हमारे खून से लथपथ हैं.

मणिपुर: आलोचना के बाद राज्य सरकार ने वापस लिया म्यांमार शरणार्थियों को रोकने संबंधी आदेश

मणिपुर सरकार द्वारा म्यांमार की सीमा से सटे ज़िलों के उपायुक्तों को 26 मार्च को जारी एक आदेश में सैन्य तख़्तापलट के बाद म्यांमार से भागकर आ रहे शरणार्थियों को आश्रय और खाना देने से इनकार और उन्हें 'शांतिपूर्वक' लौटाने की बात कही गई थी. कड़ी आलोचना के बाद इस आदेश को वापस ले लिया गया.

चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक की याचिका ख़ारिज, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- पर्याप्त सुरक्षा मौजूद

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने एक याचिका में राजनीतिक दलों की फंडिंग और खातों में पारदर्शिता की कथित कमी संबंधी एक मामले के लंबित रहने और आगामी विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड की आगे बिक्री की अनुमति न देने की मांग की थी. शीर्ष अदालत ने इससे इनकार कर दिया है.

भाजपा के गठबंधन से निकलते ही राजनीतिक दल ‘अपवित्र’ क्यों हो जाते हैं

असम विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ के साथ हुए कांग्रेस के गठबंधन को भाजपा 'सांप्रदायिक' कह रही है, हालांकि पिछले ही साल राज्य के तीन ज़िला परिषद चुनावों में भाजपा के प्रत्याशी एआईयूडीएफ की मदद से ही अध्यक्ष पद पर काबिज़ हुए हैं.

मिज़ोरम जातीय समूह ने केंद्र से म्यांमार से आने वालों को शरणार्थी का दर्जा देने की मांग की

भारत, म्यांमार और बांग्लादेश में मौजूद जातीय समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन ने गृह मंत्रालय से यह भी आग्रह किया कि वह म्यांमार की सीमा से लगे चार पूर्वोत्तर राज्यों- मिज़ोरम, मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश को उस देश से आने वाले लोगों को रोकने का अपना आदेश वापस ले.

चुनाव आयोग ने चुनावी बॉन्ड पर रोक का विरोध किया, सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुरक्षित रखा

इस संबंध में याचिका दायर करने वाली ग़ैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से कहा गया कि इस तरह के गोपनीय चुनावी बॉन्ड के चलते ‘भ्रष्टाचार को क़ानूनी मान्यता’ मिल रही है और चूंकि सरकार फायदा पहुंचा सकती है, इसलिए कंपनियां सत्ताधारी दल को ही इसके ज़रिये फंड करेंगी.

नरेंद्र मोदी के लिए राजनीतिक मुसीबत बन सकती है सरकारी संपत्तियों की थोक बिक्री

निजीकरण को लेकर सरकार को परेशान करने वाला सबसे मुश्किल सवाल यह है कि सरकारी संपत्तियों को किस क़ीमत पर बेचा जाना चाहिए.

ऋण किस्त स्थगन अवधि के दौरान उधारकर्ताओं से चक्रवृद्धि, दंडात्मक ब्याज नहीं लिया जाएगा: कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त 2020 से आगे ऋण किस्त स्थगन का विस्तार नहीं करने के केंद्र सरकार और आरबीआई के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है. आरबीआई ने महामारी के चलते पिछले साल एक मार्च से 31 मई के बीच चुकाई जाने वाली ऋण की किस्तों के भुगतान को स्थगित करने की अनुमति दी थी. बाद में इसे 31 अगस्त 2020 तक बढ़ा दिया गया था.

चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर मोदी सरकार ने 4.10 करोड़ रुपये के कमीशन का भुगतान किया

आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के मुताबिक़, राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के ज़रिये मिलने वाले 'गोपनीय' चंदे के लिए भारत सरकार को अब तक कुल 15 चरणों में हुई बिक्री के लिए 4.35 करोड़ रुपये के कमीशन देना है. साथ ही, बॉन्ड की छपाई के लिए सरकार ने 1.86 करोड़ रुपये ख़र्च किए हैं.

क्या है नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन, जहां सरकारी संपत्ति निजी कंपनियों को ‘किराये’ पर दी जाएगी

वीडियो: सरकार एक तरफ घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों को बंद कर रही है या निजी कंपनियों के हाथों बेचकर पैसा जुटाने में लगी है, तो दूसरी ओर सरकारी प्रोजेक्ट को निजी कंपनियों के साथ साझा कर रही है या किराये पर देकर आमदनी बढ़ाने की तैयारी कर रही है. सरकार की ‘नेशनल एसेट मोनेटाइजेशन’ योजना के बारे में विस्तार से बता रहे हैं मुकुल सिंह चौहान.

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