तमिल फिल्म अन्नपूर्णी, जिसे नेटफ्लिक्स ने हटा दिया है, को लेकर उपजा विवाद हुआ ही नहीं होता, अगर फिल्म के दृश्य से आहत होने वाले कथित धार्मिकों ने वाल्मीकि रामायण पढ़ ली होती.
अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पहले उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग ने 22 जनवरी तक सरकारी बसों में स्थापित सार्वजनिक संबोधन प्रणालियों के माध्यम से राम भजन बजाने के निर्देश जारी किए हैं. वहीं जेल मंत्री ने कहा है कि राज्य भर की सभी जेलों में क़ैदियों के बीच हनुमान चालीसा और सुंदर कांड की 50,000 से अधिक प्रतियां बांटी जाएंगी.
शिक्षाविदों और छात्र संगठनों ने कहा कि बच्चों में वैज्ञानिक स्वभाव पैदा करने के बजाय केंद्र सरकार एनसीईआरटी के ज़रिये पौराणिक कथाओं और विज्ञान को मिलाकर ‘अपनी भगवा विचारधारा थोपने’ की कोशिश कर रही है. चंद्रयान-3 मिशन पर एनसीईआरटी द्वारा जारी एक रीडिंग मॉड्यूल में इसरो और वैज्ञानिकों के योगदान के बजाय प्रधानमंत्री का महिमामंडन किया गया है.
अंतरिक्ष विज्ञान विशेषज्ञों का कहना है कि चंद्रयान मिशन पर एनसीईआरटी द्वारा लाया गया रीडिंग मॉड्यूल इसरो और उसके वैज्ञानिकों के साथ अन्याय है, जो बरसों से हर विफलता से उबरे हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध राष्ट्र सेविका समिति ने 11 जून को ‘गर्भ संस्कार’ अभियान की शुरुआत की है, जिसके तहत गर्भवती महिलाओं को भगवत गीता व रामायण पढ़ने, मंत्रोच्चार करने और योग आदि के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा ताकि 'संस्कारी, देशभक्त' बच्चे पैदा हों.
बीएचयू के धर्मशास्त्र मीमांसा विभाग ने ‘भारतीय समाज में मनुस्मृति की प्रयोज्यता’ पर शोध का प्रस्ताव दिया है. 21वीं सदी की तीसरी दहाई में जब दुनियाभर में शोषित उत्पीड़ितों में एक नई रैडिकल चेतना का संचार हुआ है, 'ब्लैक लाइव्ज़ मैटर' जैसे आंदोलनों ने विकसित मुल्कों के सामाजिक ताने-बाने में नई सरगर्मी पैदा की है, तब अतीत के स्याह दौर की याद दिलाती इस किताब की प्रयोज्यता की बात करना दुनिया में भारत की क्या छवि बनाएगा?
बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा रामचरितमानस की आलोचना को लेकर अगर कुछ नया है तो वह है इस पर हुआ हंगामा. श्रमण संस्कृति के पैरोकार विद्वान व सामाजिक कार्यकर्ता, तुलसीदास व रामचरितमानस की आलोचना में न सिर्फ इससे कहीं ज़्यादा कडे़ शब्द इस्तेमाल कर चुके हैं. एक दौर में तुलसीदास को ‘हिंदू समाज का पथभ्रष्टक’ तक क़रार दिया जा चुका है.
‘रामचरितमानस’ की जो आलोचना बिहार के शिक्षा मंत्री ने की है वह कोई नई नहीं और न ही उसमें किसी प्रकार की कोई ग़लती है. उन पर हमलावर होकर तथाकथित हिंदू समाज अपनी ही परंपरा और उदारता को अपमानित कर रहा है.
बृहस्पतिवार को अपने बयान को दोहराते हुए बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने दावा किया है कि ‘रामायण’ पर आधारित रामचरितमानस समाज में नफ़रत फैलाती है. भाजपा द्वारा माफ़ी की मांग पर उन्होंने कहा कि यह भगवा पार्टी है, जिसे तथ्यों की जानकारी नहीं होने के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल अप्रैल माह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, गुजरात के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी, शिक्षा अधिकारियों और भाजपा पदाधिकारियों के बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को लागू करने के संबंध में एक बैठक हुई थी. बैठक में मौजूद संघ के सहयोगी संगठनों ने कथित तौर पर यह भी मांग रखी कि रामायण, महाभारत और भगवद् गीता भी स्कूलों में पढ़ाए जाएं.
बिहार सरकार में गठबंधन सहयोगी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) पार्टी के कर्ता-धर्ता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की यह विवादास्पद टिप्पणी रामनवमी पर निकले जुलूसों के दौरान कई राज्यों में बड़े पैमाने पर हुई सांप्रदायिक झड़पों के बाद आई है.
मध्य प्रदेश में अगले साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र कांग्रेस ने इस महीने आने वाली रामनवमी और हनुमान जयंती पर अपने सभी पदाधिकारियों, विधायकों एवं कार्यकर्ताओं को यह निर्देश दिए हैं. सत्तारूढ़ भाजपा ने कांग्रेस के इस क़दम को पाखंड बताते हुए कहा कि कांग्रेसी नेताओं ने भगवान राम एवं रामसेतु को काल्पनिक बताया था.
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने रामायण मंडली प्रोत्साहन योजना शुरू की थी. इसके तहत यह प्रतियोगिता होती है. आदिवासी समाज ने पांचवीं अनुसूची के तहत आने वाले क्षेत्र में मौलिक अधिकारों और आदिवासी रीति-रिवाजों के उल्लंघन का हवाला देते हुए इस आयोजन पर आपत्ति जताई थी.
मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा रामायण के अयोध्या कांड पर आधारित सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता में हर ज़िले से आठ लोगों का चयन किया जाएगा. पिछले महीने सरकार ने स्नातक पाठ्यक्रमों के कला संकाय के प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों को दर्शनशास्त्र के तहत एक वैकल्पिक विषय के रूप में रामचरितमानस को पढ़ाए जाने की घोषणा की थी.
बजरंग दल को कृष्ण और गोपियों या राधा की रति-क्रीड़ा या किसी अन्य देवी-देवता के शृंगारिक प्रसंगों के चित्रण से परेशानी है तो वे भारत के उस महान साहित्य का क्या करेंगे जो ऐसे संदर्भों से भरा पड़ा है? वे कालिदास के ‘कुमारसंभवम्’ का क्या करेंगे जिसमें शिव-पार्वती की रति-क्रीड़ा विस्तार से वर्णित है. संस्कृत काव्यों के उन मंगलाचरणों का क्या करेंगे जिनमें देवी-देवताओं के शारीरिक प्रसंगों का उद्दाम व सूक्ष्म वर्णन है?