इलाहाबाद हाईकोर्ट में अवैध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में दायर एक हलफ़नामे में यूपी सरकार ने यह टिप्पणी की है. सरकार ने यह भी कहा कि धर्मांतरण विरोधी अधिनियम 'सार्वजनिक हित की रक्षा करता है' और 'सार्वजनिक व्यवस्था' बनाए रखता है.
होसदुर्ग से भाजपा विधायक गुलहट्टी शेखर ने 13 अक्टूबर को पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक कल्याण पर विधायी समिति की बैठक की अध्यक्षता करने के बाद कहा कि इस सर्वे का उद्देश्य कर्नाटक के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर हो रहे 'जबरन धर्म परिवर्तन' की जांच करना है.
मध्य प्रदेश के दतिया शहर का मामला. कथित रूप से धर्मांतरण के लिए विवादास्पद पुस्तकों का वितरण करने के मामले में पुलिस ने पांच महिलाओं सहित 10 लोगों के ख़िलाफ़ कोतवाली पुलिस थाने में प्रकरण दर्ज किया है.
वर्तमान में जिस तरह से धार्मिक शिक्षा के लिए रास्ता सुगम किया जा रहा है, ऐसे में यह भी याद रखना चाहिए कि जैसे-जैसे यह शिक्षा आम होती जाएगी, वह वैज्ञानिक चिंतन के विकास को बाधित करेगी. नागरिकों को यह बताना ज़रूरी है कि धार्मिक चेतना और वैज्ञानिक चेतना समानांतर धाराएं हैं और आपस में नहीं मिलतीं.
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ ज़िले का मामला. परिजनों ने एफ़आईआर पर हैरानी जताते हुए कहा कि उनके लड़के कक्षा 12 में पढ़ते हैं और वे अपने दोस्तों के बीच महज़ ‘बातचीत’ कर रहे थे. इसे लेकर बेवजह किसी ने शिकायत दर्ज कराई है. शिकायत दर्ज कराने वाले भाजपा नेता ने कहा कि वीडियो के चलते लोगों में ग़ुस्सा है और इसके चलते धार्मिक विद्वेष फैल सकता है.
कथित ‘सबसे बड़े धर्मांतरण सिंडिकेट’ चलाने के आरोप में यूपी एटीएस ने इस्लामिक विद्वान मौलाना कलीम सिद्दीक़ी को बीते 21 सितंबर को मेरठ से गिरफ़्तार किया था. सिद्दीक़ी के वकील ने कहा है कि पुलिस साक्ष्य के रूप में उनके यूट्यूब चैनल को पेश कर रही है, जो कि पहले से ही सार्वजनिक है और उसमें कुछ भी आपराधिक या देश के ख़िलाफ़ नहीं है.
एक मुस्लिम महिला और उनके हिंदू साथी द्वारा दायर याचिका में कहा गया था कि वे एक दूसरे से प्रेम करते हैं और अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं. अदालत ने कहा कि दो वयस्कों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार है, भले ही वे किसी भी धर्म के हों. कोर्ट ने पुलिस को यह सुनिश्चित करने को कहा है कि याचिकाकर्ताओं को उनके परिवार या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी तरह से परेशान न किया जाए.
इस साल 21 जून को उत्तर प्रदेश पुलिस के आतंकरोधी दस्ते ने दिल्ली से दो मौलवियों को गिरफ़्तार किया था और धर्मांतरण में कथित रूप से शामिल एक बड़े धर्मांतरण रैकेट का भंडाफोड़ करने का दावा किया था. बाद में पुलिस ने आठ अन्य लोगों को गिरफ़्तार किया था और दावा किया था कि आरोपियों ने बड़े पैमाने पर धर्मांतरण को अंजाम दिया.
अयोध्या में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अपने संबोधन में न अवध की ‘जो रब है वही राम है’ की गंगा-जमुनी संस्कृति की याद आई, न ही अपने गृहनगर कानपुर के उस रिक्शेवाले की, जिसे बीते दिनों बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने मुस्लिम होने के चलते पीटा और जबरन ‘जय श्रीराम’ बुलवाकर अपनी ‘श्रेष्ठताग्रंथि’ को तुष्ट किया था.
छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले का मामला. घटना पर रोष जताते हुए छत्तीसगढ़ क्रिश्चन फोरम की ओर से कहा गया है कि पिछले 15 दिनों में राज्य भर में हमारे धार्मिक स्थलों पर कम से कम 10 ऐसे हमले कथित रूप से हुए, लेकिन किसी भी मामले में पुलिस ने कार्रवाई नहीं की. हम सिर्फ़ न्याय चाहते हैं, लेकिन ऐसी घटनाओं का बार-बार होना संकेत देता है कि सरकार उन लोगों का समर्थन कर रही है, जो बर्बरता में शामिल हैं.
पहचान की अवधारणा खालिस इंसानी ईजाद है. पहचान के लिए ख़ून की नदियां बह जाती हैं. पहचान का प्रश्न आर्थिक प्रश्नों के कहीं ऊपर है. उस पहचान को अगर कोई भूमिगत कर दे, तो उसकी मजबूरी समझी जा सकती है और इससे उसके समाज की स्थिति का अंदाज़ा भी मिलता है.
बलात्कार के एक मामले में सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि भारत एक रूढ़िवादी समाज है, जो सभ्यता के लिहाज़ से अभी उस स्तर पर नहीं पहुंचा है, जहां एक अविवाहित लड़की बिना शादी के वादे के किसी पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बना सके.
मामला उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले का है. एक व्यक्ति पर आरोप है कि शादीशुदा होने के बावजूद उन्होंने हिंदू युवती का अपहरण कर जबरन धर्म परिवर्तन कराया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 15 धर्म परिवर्तन की अनुमति देता है, लेकिन यह बलपूर्वक नहीं होना चाहिए. हमारे देश में धार्मिक कट्टरता, लालच और भय के लिए कोई जगह नहीं है.
विशेष: हर रचनाकार और उसकी रचना अपना पुनर्पाठ मांगती है. इस कड़ी में 'ईदगाह' को दोबारा पढ़ते हुए प्रेमचंद के सामाजिक यथार्थ के चित्रण की सूक्ष्मता, अर्थ के व्यापक और विविध स्तरों को समझ पाने की एक नई दृष्टि मिलती है.
आज़ादी के सात दशक बाद भी जो औरतें धर्म या जाति की सीमाओं के बाहर जीवनसाथी चुनने का साहस दिखाती हैं, उन्हें परिवार और समाज के साथ पुलिस और नेताओं की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है. वक़्त आ गया है कि महिलाओं द्वारा साथी के चयन को मूल अधिकारों की श्रेणी में शामिल किया जाए और इसकी रक्षा के लिए परिवार, समुदाय, राजनीतिक दलों और राज्य की कट्टरता के विरुद्ध खड़ा हुआ जाए.