दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच के कार्यकर्ताओं ने मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण उत्तर प्रदेश और दिल्ली में दस दिनों में आठ लोगों की मौत पर चिंता व्यक्त करते हुए उन लोगों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की मांग की, जो सफाई कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरण के बिना सेप्टिक टैंक साफ करने के लिए मजबूर करने के लिए ज़िम्मेदार हैं.
दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड दिल्ली में 662 से अधिक जन सुविधा परिसर चलाता है, जो झुग्गी बस्तियों में रहने वाली आबादी को खुले में शौच मुक्त बनाने के लिए सेवा प्रदान करते हैं. परिसरों में कार्यरत केयरटेकर, सुपरवाइज़र और सफाई कर्मचारी बताते हैं कि उन्हें महीनों से भुगतान नहीं किया गया है. पीएफ और ईएसआईसी की सुविधा भी नहीं दी जा रही है.
कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवाणी और छह अन्य को सितंबर 2016 में अहमदाबाद नगर निगम के सफाई कर्मचारियों के समर्थन में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के लिए हिरासत में लिया गया था. इसे लेकर उन पर पुलिस वाहन को नुकसान पहुंचाने, नारे लगाने और दंगा करने के आरोप लगाए गए थे.
नई दिल्ली स्थित कलावती सरन चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के लगभग 400 सफाईकर्मियों को 31 मई, 2022 को बिना किसी पूर्व सूचना के नौकरी से निकाल दिया गया था. सभी को वापस काम पर रखने के अदालती आदेश के बावजूद उन्हें बहाल नहीं किया गया. वे 1 जून, 2022 से लगातार अस्पताल के सामने ही प्रदर्शन कर रहे हैं.
एक रिपोर्ट बताती है कि गुजरात के विभिन्न हिस्सों में बीते एक महीने के भीतर ही सीवर की सफाई के दौरान कम से कम आठ कर्मचारियों की मौत हो गई है. ऐसा तब हो रहा है जब इस प्रथा को पूरे देश में अवैध घोषित कर दिया गया है.
गुजरात के अहमदाबाद ज़िले के ढोलका क़स्बे का मामला. पुलिस ने ठेकेदारों के ख़िलाफ़ ग़ैर-इरादतन हत्या और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण क़ानून के तहत मामला दर्ज किया है.
मैला ढोने की प्रथा को ख़त्म करने की दिशा में काम करने वाले संगठन ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ की ओर से कहा गया है कि इस बार के बजट में सफाई कर्मचारियों की मुक्ति, पुनर्वास और कल्याण के लिए एक भी शब्द नहीं कहा गया और न ही इस मद में धन का आवंटन किया गया है. यह हमारे समाज के साथ धोखा है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्र और राज्य सरकारों को परामर्श जारी कर कहा कि सफ़ाईकर्मियों के साथ भी अग्रिम मोर्चे पर तैनात स्वास्थ्यकर्मी की तरह व्यवहार किया जाए. आयोग ने कहा है कि सफ़ाईकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए, प्रौद्योगिकी का उपयोग हो, जागरूकता फैलाई जाए और न्याय एवं पुनर्वास सुनिश्चित किया जाए.
वीडियो: इंदिरा गांधी दिल्ली महिला प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आईजीडीटीयूडब्ल्यू) दिल्ली सरकार के तहत आता है. विश्वविद्यालय के सफ़ाई कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें नौकरी से निकाला जा रहा है. दरअसल सफ़ाई का ठेका पुरानी कंपनी से एक नई कंपनी को दे दिया गया है. इस मसले पर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार और सफ़ाई कर्मचारियों से बातचीत.
दिल्ली के उत्तरी, दक्षिण और पूर्वी नगर निगमों के आंकड़ों के अनुसार कोरोना से हुई 94 मौतों में से 49 मौतें सफाई कर्मचारियों की हुई हैं जबकि इसके बाद सर्वाधिक स्वास्थ्यकर्मियों की कोरोना से मौत हुई है.
साल 2008 में उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में सफ़ाईकर्मियों की भर्ती शुरू हुई थी, लेकिन भदोही ज़िले में चयन प्रक्रिया में गड़बड़ी के कारण प्रक्रिया रोक दी गई थी. अभ्यर्थियों द्वारा फ़िर इलाहाबाद हाईकोर्ट याचिका दायर की गई. जिसके बाद साल 2014 में शासन ने इस प्रक्रिया को निरस्त कर चयन पर रोक लगा दी थी.
सूचना के अधिकार कानून के तहत राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ने बताया है कि पिछले 10 वर्षों में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान सबसे ज़्यादा मौत तमिलनाडु में हुई. इसके बाद उत्तर प्रदेश और फिर दिल्ली तथा कर्नाटक में मौते हुई हैं.
शिक्षाविदों, नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने सफाईकर्मियों की दयनीय दशा को लेकर केंद्र और सभी राज्य सरकारों को पत्र लिखकर कहा है कि इन्हें प्रतिमाह 20,000 रुपये का न्यूनतम मेहनताना दिया जाए.
लोकसभा सचिवालय में कार्यरत एक सफाईकर्मी में भी कोरोना वायरस संक्रमण की पुष्टि हुई है, जिसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया. उसके परिवार के 11 सदस्यों की भी कोरोना वायरस की जांच की गई है और परिणाम की प्रतीक्षा की जा रही है.