क्या समाज के लिए मज़दूर सीमेंट, ईंट और गारे की तरह संसाधन मात्र हैं?

मज़दूरों के हित निजी संपत्ति के मालिकों के हितों पर ही निर्भर हैं. सरकार सामाजिक व्यवस्था भी उन्हीं के लिए कायम करती है. अंत में यही कहा जाएगा कि उसने रेल भी मज़दूरों के हित में रद्द की हैं, उन्हें रोज़गार देने के लिए!

कोविड-19 संक्रमण की आपराधिक जवाबदेही तबलीग़ी जमात के माथे ही क्यों है?

डब्ल्यूएचओ कहता है कि नागरिकों का स्वास्थ्य सरकारों की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है. लेकिन भारत सरकार के यात्राओं पर प्रतिबंध, हवाई अड्डों पर सबकी स्क्रीनिंग के निर्णय में हुई देरी पर बात नहीं हुई, न ही कोविड जांच की बेहद कम दर की बात उठी. जमात ने ग़लती की है पर क्या सरकारों को कभी उनकी नाकामियों के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा?

लॉकडाउन डायरी: यह मानवीय क्षुद्रताओं का दौर है…

लॉकडाउन शुरू होने के कुछ रोज़ में ही एक मैसेज मिला, 'लगता है कलयुग समाप्त हो गया, सतयुग आ गया है, प्रदूषण रहित वातावरण, कोई नौकर नहीं, घर में सब मिलकर काम कर रहे हैं, उपवास-कीर्तन हो रहा है.' ठीक इन्हीं दिनों हज़ारों कामगारों का हुजूम भूखे-प्यासे एक बीमारी और अनिश्चित भविष्य के डर से महानगरों की सड़कों पर अपनी टूटी चप्पल और फटा बैग संभाले निकल रहा था.

सोशल मीडिया पर ‘इस्लामोफोबिक’ पोस्ट डालने को लेकर यूएई में तीन और भारतीयों को नौकरी से हटाया गया

बीते 20 अप्रैल को संयुक्त अरब अमीरात में भारत के राजदूत पवन वर्मा ने भारतीय प्रवासियों को सोशल मीडिया पर भड़काऊ संदेश डालने वाले व्यवहार के खिलाफ चेताया था.

लॉकडाउन: दूसरे राज्यों में फंसे मज़दूरों के काम नहीं आ रहा झारखंड सरकार का ऐप

झारखंड सरकार ने लॉकडाउन में दूसरे राज्यों में फंसे मज़दूरों को आर्थिक मदद देने के लिए एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया था, लेकिन ऐसे ज़्यादातर मज़दूरों का कहना है कि स्मार्टफोन न होने, निरक्षरता या तकनीकी मुश्किलों जैसी कई वजहों से वे अब तक सरकार की मदद से महरूम हैं.

राजस्थान: लॉकडाउन में काम को तरसे लोक कलाकार

आम तौर पर लोक कलाओं से गुलज़ार रहने वाले राजस्थान में कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते सन्नाटा पसरा है. ऐसे में ख़ाली बैठे लोक कलाकार आर्थिक मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. उनकी सहायता के लिए शुरू की गई राज्य सरकार की योजना कई विसंगतियों के चलते मददगार साबित नहीं हो रही है.

‘इरफ़ान हमेशा हर चीज़ में लय ढूंढ लेते थे… मैंने भी ये सीख लिया है’

इरफ़ान की साथी सुतपा अपने ख़त में लिखती हैं, 'एक कामयाब सफ़र के बाद जहां उन्हें आराम करने के लिए छोड़कर आए हैं, वहां उनका पसंदीदा रात की रानी का पौधा लगाते हुए आंखें नम होंगी. थोड़ा वक्त लगेगा, लेकिन इसकी ख़ुशबू फैलेगी और उन सब तक पहुंचेगी, जिन्हें मैं आने वाले समय में फैन नहीं, बल्कि परिवार मानूंगी.'

लॉकडाउन: दबे क़दमों से समाज की बनावट में बिखराव आ रहा है…

लॉकडाउन के दौरान कई स्तरों पर हो रहे नुकसानों में उन सामाजिक क्षतियों का ज़िक्र नहीं हो रहा है, जिनका सामना न्यूनतम संसाधनों के सहारे रह रहे निम्न आर्थिक वर्ग के परिवार कर रहे हैं.

दिल्ली के प्रतिष्ठित इतिहाकार और लेखक आरवी स्मिथ का निधन

इतिहासकार और लेखक आरवी स्मिथ ने तकरीबन एक दर्जन किताबें लिखी हैं, जिनमें से अधिकांश दिल्ली पर आधारित हैं. इसके अलावा वह पत्रकार भी थे और ज़िंदगी के आख़िरी दिनों तक विभिन्न अख़बारों के लिए लिखते रहे थे.

इस मुश्किल दौर में प्रेरणा देती एक लड़की

यह देशव्यापी लॉकडाउन का आख़िरी हफ़्ता है. इस दौरान सोशल मीडिया पर जारी नफ़रत और बहसों के बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं जो बिना किसी स्वार्थ के राहत पहुंचाने के काम में लगे हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी की अनुष्का उनमें से एक हैं.

हरियाणा: लॉकडाउन की भारी क़ीमत चुका रहे नूंह के ये ग़रीब परिवार

देशव्यापी लॉकडाउन की अवधि बढ़ने के बाद विभिन्न क्षेत्रों में सड़क किनारे या झुग्गी-बस्तियों में ज़िंदगी बिता रहे लोगों की मुश्किलें भी बढ़ गईं. हरियाणा के नूंह ज़िले के कुछ ऐसे ही मेहनतक़श परिवार केवल समाज के रहम पर दिन गुज़ार रहे हैं.

क्या समय पर खाना-दवाई न मिलने से क्वारंटाइन सेंटर में हुई शख़्स की मौत?

वीडियो: दिल्ली के सुल्तानपुरी क्वारंटाइन सेंटर में पिछले हफ्ते 59 वर्षीय मोहम्मद मुस्तफ़ा की मौत हो गई. वे पिछले महीने तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम में शामिल हुए थे. आरोप है कि वे डायबिटीज़ के मरीज़ थे और समय पर इलाज और खाना न मिलने से उनकी मौत हुई है.

दिल्ली: लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मज़दूरों को खाने के लिए घंटों करना पड़ रहा इंतज़ार

वीडियो: कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन के बीच दिल्ली के भलस्वा डेयरी इलाके में फंसे प्रवासी मज़दूरों को भोजन के लिए बनी लंबी लाइनों में घंटों अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ रहा है.

कोरोना संकट ने रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन गई असमानता को उघाड़कर रख दिया है

इस वायरस ने इस दुनिया को पूरी तरह से छिन्न-भिन्न कर डाला है. इसने हमारे समय की उन नाइंसाफ़ियों से रूबरू करवाया है, जो हमारी अर्थव्यवस्था और राजनीति की बेमिसाल क्रूरता दर्शाती हैं.

कोरोना: सरकारों ने गरीबों को संकट की घड़ी में उनके हाल पर छोड़ दिया है

हम वो देश हैं जो जुगाड़ पर नाज़ करता है, 5000 साल पहले की तथाकथित उपलब्धियों के ख्वाबों की दुनिया में रहता है. उससे यह उम्मीद करना बेमानी है कि वह व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने में इतनी मेहनत करेगा कि वे बिना किसी रुकावट के और सक्षम तरीके से काम कर सकें.

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