वीडियो: राजनीतिक दलों द्वारा अपने फायदे के लिए धर्म की राजनीति को बढ़ावा देने के बारे में बता रहे हैं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद.
महिलाओं की सुरक्षा की चिंता और उनको हिंसा, बलात्कार आदि से बचाने को लेकर कड़े क़ानून बनाने का नेताओं का आश्वासन उनके दिए महिला-विरोधी बयानों के बरक्स बौना नज़र आता है.
भारत जैसे देश में, जहां बलात्कार के मामलों में अदालत की सुनवाई आरोपी के बजाय पीड़ित के लिए ज्यादा मुश्किल भरी होती हैं, वहां कुछ चर्चित मामलों में सज़ा कड़ी कर देने से किसी और को ऐसा करने से रोकना मुश्किल है. ऐसे अधिकतर मामले या तो अदालतों की फाइलों में दबे पड़े हैं या सबूतों के अभाव में ख़ारिज कर दिए जाते हैं.
बीते दिनों आईसीएसई ने प्रसिद्ध कहानीकार कृश्न चंदर की कहानी ‘जामुन का पेड़’ को दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम से हटा दिया था. उनकी लेखनी और ज़िंदगी की महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में उनके भतीजे पवन चोपड़ा से द वायर के फ़ैयाज़ अहमद वजीह की बातचीत.
वरिष्ठ कलाकार शौकत कैफ़ी को याद कर रही हैं पूर्व सांसद सुभाषिनी अली. सुभाषिनी फिल्म उमराव जान की कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर थीं, जिसमें शौकत कैफ़ी की महत्वपूर्ण भूमिका थी.
बेपनाह प्रेम के एहसास में हर तरह के अभाव से लड़ते हुए जीवन की जद्दोजहद से कभी हौसला न हारने वाली शौकत कैफ़ी की पूरी ज़िंदगी एक इंक़लाबी किताब है. असीमित उड़ान के सपने देखने वालों के लिए वे ख़ुद एक संस्मरण हैं.
जेएनयू कोई द्वीप नहीं है, वहां हमारे ही समाज से लोग पढ़ने जाते हैं. जो बात उसे विशिष्ट बनाती है, वो है उसके लोकतांत्रिक मूल्य. इनका निर्माण किसी एक व्यक्ति, पार्टी या संगठन ने नहीं, बल्कि भिन्न प्रकृति और विचारधारा के लोगों ने किया है. यदि ऐसा नहीं होता, तब किसी भी सरकार के लिए इसे ख़त्म करना बहुत आसान होता.
आदिवासी बहुल इलाकों में वृहद रूप से बोली जाने वाली गोंडी भाषा का कोई लिखित साहित्य न होने के चलते यह अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है. ऐसे में छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र के दो स्कूलों में इस भाषा में प्राथमिक शिक्षा देकर इसे सहेजने की कोशिश की जा रही है.
ऐसा क्यों है कि अलग-अलग जगहों से आने वाले बच्चे यहां आकर लड़ने वाले बच्चे बन जाते हैं? बढ़ी हुई फीस का मसला सिर्फ जेएनयू का नहीं है. घटी हुई आज़ादी का मसला भी सिर्फ जेएनयू का नहीं है.
जेएनयू शिक्षा और संघर्ष का अनूठा उदाहरण है. जेएनयू का यही अनूठापन वर्चस्वशाली ताकतों और कट्टरपंथियों की आंखों में खटकता है.
ऐसे सामाजिक पारिवारिक परिवेश, जिसमें उच्च शिक्षा की कल्पना डॉक्टरी-इंजीनियरिंग के दायरे से पार नहीं गई और नौकरी से परे शिक्षा को देखना एक तरह से अय्याशी और दूर की कौड़ी समझा जाता था, जेएनयू ने समझाया कि ये एक साज़िश है- समाज के बड़े तबके को बराबरी महसूस न होने देने की.
घटना कटिहार ज़िले की है, जहां एक मवेशी व्यवसायी के कर्मचारी द्वारा कथित तौर पर रंगदारी देने से मना करने पर मारपीट की गई, जिसके बाद उसकी मौत हो गई.
मामला बोकारो थर्मल थाना क्षेत्र की गोविंदपुर कॉलोनी का है, जहां बैटरी चुराने के आरोप में भीड़ ने दो लोगों को बांधकर पीटा. पुलिस ने मामले में पांच लोगों को गिरफ़्तार किया है.
आईसीएसई ने प्रसिद्ध कहानीकार कृश्न चंदर की कहानी 'जामुन का पेड़' को दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम से हटा दिया है. काउंसिल का कहना है कि यह दसवीं के विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त नहीं है.
आज बहुत सुनियोजित ढंग से आरएसएस परिवार को छोड़कर सारी आवाज़ों को दबा दिया गया है. अगर कोई आवाज़ उठती भी है तो वह सिर्फ उनकी होती है, जो मुसलमानों को पिछड़ा, दकियानूसी और क़बायली साबित करती हैं.