28 सितंबर को गुजरात के साबरकांठा ज़िले में 14 महीने की मासूम से बलात्कार का आरोप बिहार मूल के एक व्यक्ति पर लगने के बाद राज्य के आठ ज़िलों में उत्तर भारतीय मज़दूरों के ख़िलाफ़ हिंसा शुरू हो गई जिसके बाद वहां से पलायन जारी है.
जब प्रधानमंत्री अपने 2019 के चुनावी मंसूबों को नए-नए पंख लगाने के फेर में हैं, उनके गृहराज्य गुजरात के उपद्रवी तत्व एक बच्ची से बलात्कार का बदला लेने के बहाने उनके ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे की हवा निकाल देने में लगे हुए है.
जन गण मन की बात की 314वीं कड़ी में विनोद दुआ सबरीमाला मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद हो रही राजनीति और गुजरात में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों पर हो रहे हमलों पर चर्चा कर रहे हैं.
नेमेथ लास्लो की अचूक नैतिकता गांधी के संदेश के मर्म को पकड़ लेती है, 'सत्याग्रह-सत्य में निष्ठा-का अर्थ है राजनीति का संचालन स्वार्थ या हित साधन से नहीं, बल्कि सत्य से प्रेम के द्वारा हो.'
गुजरात में मासूम से बलात्कार की घटना के बाद वहां के लोग यूपी-बिहार के लोगों के ख़िलाफ़ गोलबंद हो गए हैं. इसमें उनकी गलती नहीं. हाल के दिनों में बलात्कार को राजनीतिक रूप देने के लिए धार्मिक पृष्ठभूमि को उभारा गया है ताकि उसके बहाने एक समुदाय विशेष पर टूट पड़ें.
साबरकांठा जिले में 14 माह की बच्ची से बलात्कार के आरोप में बिहार के एक मजदूर की गिरफ़्तारी के बाद राज्य के विभिन्न हिस्सों में ग़ैर गुजरातियों पर हमले हुए हैं. हमलों का आरोप क्षत्रिय ठाकोर सेना पर है, जिसका कहना है कि अन्य राज्यों के प्रवासी कामगारों को गुजरात में नौकरी नहीं दी जानी चाहिए.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस एक्ट के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. हाल ही में सतना में उन्हें काले झंडे दिखाए गए थे. वहीं उज्जैन के पास महिदपुर में मुख्यमंत्री के काफिले पर पथराव किया गया था.
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम) कानून में संसद के मानसून सत्र में संशोधन करके इसकी पहले की स्थिति बहाल की गई है.
एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम को अपने पुराने और मूल स्वरूप में फिर से लागू करने के लिए केंद्र सरकार संसद के इसी सत्र में संशोधन बिल पेश करेगी.
अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन वह शहरी मध्यवर्ग, जो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सड़कों पर उतर आया था, वह इस हिंसा पर उदासीन बना हुआ है.
ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार के औरंगाबाद में मार्च महीने में रामनवमी के समय हुई सांप्रदायिक हिंसा में कई दुकानों में लूटपाट कर आग लगा दी गई थी. उस समय नीतीश सरकार ने पीड़ित दुकानदारों को मुआवज़ा देने की बात कही थी, लेकिन चार महीने बाद भी ज़्यादातर दुकानदारों को एक रुपया भी मुआवज़ा नहीं मिला है.
केंद्रीय मंत्री जैसे और भी कई हैं जो एक संपन्न और शिक्षित पृष्ठभूमि से आते हैं, जो दिखते उदारवादी हैं लेकिन जिनके मन में सांप्रदायिक सड़ांध भरी होती है.
झारखंड के रामगढ़ में बीते साल गोमांस रखने के संदेह में हुई अलीमुद्दीन अंसारी की हत्या के दोषियों को ‘न्याय’ दिलाने की जयंत सिन्हा की मुहिम के बीज हजारीबाग में सिन्हा परिवार की राजनीति में छिपे हैं.
पूर्व नौकरशाहों ने कहा है कि सिन्हा द्वारा अलीमुद्दीन अंसारी की हत्या के दोषियों का सम्मान करने से समाज में अल्पसंख्यकों की हत्या का लाइसेंस प्राप्त होने का संदेश जाता है.
झारखंड में गोमांस रखने के शक में हुई अलीमुद्दीन अंसारी की हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए 8 अभियुक्त पिछले हफ़्ते जब ज़मानत पर जेल से बाहर निकले तो केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद जयंत सिन्हा ने माला पहनाकर उनका स्वागत किया था.