उत्तर प्रदेश की राजनीति में निषाद वोट अहम हो गए हैं, जिसे लेकर निषाद पार्टी अपने प्रभुत्व का दावा करती रही है. राज्य में 150 से अधिक विधानसभा सीटें निषाद बहुल हैं, ऐसे में यह समुदाय निर्णायक भूमिका में हो सकता है. यही वजह है कि विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट बढ़ते ही निषाद वोटों पर अपने कब्ज़े को लेकर निषाद पार्टी और बिहार की विकासशील इंसान पार्टी के बीच खींचतान शुरू हो गई है.
बेंगलुरू के एक स्थानीय वकील शिशिर रुद्रप्पा ने बेंगलुरू हवाईअड्डे के पास लगे उत्तर प्रदेश सरकार के एक होर्डिंग की तस्वीर ट्विटर पर शेयर की थी, जिसमें राज्य देश में नंबर होने और चार लाख युवाओं को सरकारी नौकरी देने की बात कही गई थी.
भाजपा की उत्तर प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य और पूर्व विधायक राम इकबाल सिंह ने पंचायत चुनावों में सत्तारूढ़ दल द्वारा धांधली का आरोप लगाते हुए कहा कि इन चुनावों में अनैतिक रास्ते तय किए गए. इस रास्ते से चंद दिनों के लिए महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति हो सकती है, पर लंबे समय तक इसे सुरक्षित नहीं रखा जा सकता.
बीते मार्च महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच विवादित केन-बेतवा लिंक परियोजना संबंधी क़रार पर दस्तख़त किए गए. सुप्रीम कोर्ट की एक समिति ने इस पर गंभीर सवाल उठाए थे, हालांकि दस्तावेज़ दर्शाते हैं कि मोदी सरकार ने इन्हें नज़रअंदाज़ किया.
पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि उत्तर प्रदेश में विरोध के अधिकार को दबाने के लिए हिरासत, आपराधिक आरोप और वसूली का आदेश आम तरीके बन गए हैं. उन्होंने पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन की गिरफ़्तारी का भी उल्लेख करते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट और पुलिस सहित यूपी में प्रशासन की सभी शाखाएं ‘ध्वस्त’ हो गई हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार ने 2019 के अंत में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के कथित आरोपी सीएए-एनआरसी आंदोलनकारियों से संपत्ति के नुकसान से कथित नुकसान की वसूली करने की धमकी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य क़ानून के अनुसार और नए नियमों के तहत कार्रवाई कर सकता है.
निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने उनके पुत्र और भाजपा सांसद प्रवीण निषाद को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल न करने पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा कि निषाद समुदाय के लोग पहले ही भाजपा से दूर जा रहे हैं. अगर पार्टी ने अपनी ग़लतियां नहीं सुधारीं, तो आने वाले विधानसभा चुनाव में इसके नतीजे भुगतने पड़ेंगे.
इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर बकाया राशि का तत्काल भुगतान करने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि गन्ना किसानों को भुगतान में देरी और आज की आवश्यकताओं के अनुसार इसके मूल्य में संशोधन न करना किसानों के दुखों और कष्टों को बढ़ा रहा है और महामारी के बाद से उनके लिए स्थिति और ख़राब हो गई है.
उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के निषाद समुदाय के साथ समीकरण गड़बड़ाते हुए नज़र आ रहे हैं. प्रदेश में भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने हाल ही में ख़ुद को उपमुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किए जाने की मांग की थी. इससे पहले उन्होंने राज्य सरकार में सम्मानजनक जगह न मिलने पर 2022 का चुनाव अकेले लड़ने की बात भी कह चुके हैं.
भाजपा की उत्तर प्रदेश कार्य समिति के सदस्य और पूर्व विधायक राम इकबाल सिंह ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग ने महामारी की पहली लहर से सबक नहीं लिया और इस वजह से दूसरी लहर में बड़ी संख्या में संक्रमितों की मौत हुई. उन्होंने संक्रमण से जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने की मांग की.
उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष के पदों के निर्वाचन के लिए नामांकन दाख़िल हो गया है. राज्य के 75 में से 18 जिलों में एक ही उम्मीदवार के मैदान में होने से उनका निर्विरोध चुना जाना तय है. इनमें से 17 भाजपा के हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि प्रदेश की भाजपा सरकार ने उनके प्रत्याशियों को नामांकन कराने से रोका है.
भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद का दावा है कि प्रदेश में 160 विधानसभा क्षेत्र निषाद बहुल हैं और 70 क्षेत्रों में समुदाय की आबादी 75 हज़ार से ज़्यादा है. ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री न सही, उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर चुनाव में जाने से भाजपा को फायदा होगा.
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के प्रकोप से देश के गांव भी नहीं बच सके हैं. इस दौरान मीडिया में प्रकाशित ख़बरें बताती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड-19 का प्रभाव सरकारी आंकड़ों से अलहदा है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बीते दिनों गोरखपुर के दो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को गोद लेने की घोषणा की थी. स्थापना के कई साल बाद भी इन केंद्रों में न समुचित चिकित्साकर्मी हैं, न ही अन्य सुविधाएं. विडंबना यह है कि दोनों अस्पतालों में एक्स-रे टेक्नीशियन हैं, पर एक्स-रे मशीन नदारद हैं.
कोरोना महामारी की घातक दूसरी लहर के दौरान जहां जनता तमाम संकटों से जूझ रही थी, वहीं योगी आदित्यनाथ की सरकार एक अलग वास्तविकता की तस्वीर पेश कर रही थी.