लॉकडाउन: घोषणाओं से दिल भले बहल जाएं, पेट कैसे भरेंगे

मज़दूरों के नाम पर हो रही बड़ी-बड़ी घोषणाओं के बीच यह स्पष्ट दिख रहा है कि सरकार और समाज के पास न तो उनके लिए सरोकार है, न सम्मान की भाषा और व्यवहार. न ही वह गरिमा और आंख का पानी बचा है, जिसके साथ एक मनुष्य दूसरे को मनुष्य समझते हुए देखता है.

राज्य सरकार प्रवासियों के किराये का भुगतान करे या रेलवे छूट दे: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात सरकार ने अदालत में कहा कि राज्य में लगभग 22.5 प्रवासी कामगार हैं और इसमें सिर्फ 7,512 श्रमिक पंजीकृत हैं, इसलिए बाकी लोगों का किराया नहीं दिया जा सकता है.

क्या सरकार मान चुकी है कि उसका काम सिर्फ़ घोषणा करना है, तर्क ढूंढना जनता की ज़िम्मेदारी है?

आज सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या किसी चीज़ का कोई तर्क बचा है? क्या यह इसलिए है कि सरकार निश्चिंत है कि उसके फैसलों की तर्कहीनता की हिमाकत पर उसकी जनता मर मिटने को तैयार बैठी है?

कोरोना संकट का इस्तेमाल समाज को बांटने के लिए किया जा रहा: एएमयू टीचर्स एसोसिएशन

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय टीचर्स एसोसिएशन की ओर से कहा गया है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लोग इस्लामोफोबिया फैला रहे हैं, उन्हें फटकारने के बजाय पुलिस उन पर कार्रवाई कर रही है, जो इस तरह की घृणित गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.

हर रात क़रीब 3,000 मज़दूर रबर ट्यूब के सहारे यमुना पारकर हरियाणा से यूपी आ रहे: पुलिस

सहारनपुर के डिविज़नल कमिश्नर ने कहा कि लोग जिस रबर ट्यूब का इस्तेमाल कर रहे हैं, वे पहले से ही ख़राब हालत में है और कभी भी फट सकते हैं. इससे नदी को पार करने का जोख़िम उठाने वालों की ज़िंदगी ख़तरे में पड़ सकती है.

दिल्ली में कीर्तिनगर की झुग्गियों में आग; ग़रीब हर हाल में मरता है, लॉकडाउन हो या आग

वीडियो: दिल्ली के कीर्तिनगर के चुनाभट्टी जेजे क्लस्टर स्लम एरिया में 21 मई की रात क़रीब 11 बजे भीषण आग लग गई थी. यहां 20 हजार से ज्यादा मजदूर रहते हैं. शेखर तिवारी की प्रभावित लोगों से बातचीत.

दुनिया की सैर पर निकला था फ्रेंच परिवार, लॉकडाउन के चलते यूपी के एक गांव में दो महीने से फंसा है

दुनिया घूमने निकला फ्रांस का एक परिवार मार्च में भारत के रास्ते नेपाल जा रहा था, जब दोनों ही देशों में कोरोना संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन के कारण वे भारत की सीमा में ही रह गया. बीते दो महीने से वे लोग महराजगंज ज़िले के अचलगढ़ गांव में रह रहे हैं.

दिल्ली में प्रवासी मज़दूरों पर रासायनिक का छिड़काव, नगर निगम ने कहा- गलती से हुआ

ये प्रवासी मजदूर घर जाने के लिए श्रमिक विशेष ट्रेन में बैठने से पहले दिल्ली के लाजपत नगर के एक स्कूल में स्क्रीनिंग कराने पहुंचे थे. दक्षिण दिल्ली नगर निगम का कहना है कि कर्मचारी स्प्रे मशीन के दबाव संभाल नहीं पाया, जिससे केमिकल के छिड़काव की दिशा बदल गई.

‘वे जल्द से जल्द लौटना चाहते थे कि बच्चों को देख सकें, पर ऐसे आएंगे ये नहीं सोचा था’

बिहार के पूर्वी चंपारण ज़िले के एक गांव के रहने वाले सगीर अंसारी दिल्ली में सिलाई का काम करते थे. लॉकडाउन के दौरान काम न होने और जमापूंजी ख़त्म हो जाने के बाद वे अपने भाई और कुछ साथियों के साथ साइकिल से घर की ओर निकले थे, जब लखनऊ में एक गाड़ी ने उन्हें टक्कर मार दी, जिसके बाद उनकी मौत हो गई.

लॉकडाउन के बीच उत्तर प्रदेश में एस्मा लागू, छह महीने के लिए हड़ताल पर रोक

योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश में एस्मा कानून लागू किए जाने के बाद अति आवश्यक सेवाओं में लगे कर्मचारी न तो छुट्टी ले सकेंगे और न ही हड़ताल पर जा सकेंगे.

कोरोना काल और भारत का कश्मीरीकरण

वीडियो: लॉकडाउन के दौरान पूरे देश में जहां एक तरफ़ ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है, वहीं कश्मीर में इंटरनेट सेवा पूरी तरह से नहीं दी जा रही है. यहां के शिक्षकों का कहना है कि उन्हें 2जी सर्विस दी जा रही है, जिसमें वे छात्रों को ढंग से नहीं पढ़ा पा रहे हैं. इसी मुद्दे दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद का नज़रिया.

उत्तर प्रदेश में दो सड़क दुर्घटनाओं में पांच प्रवासी मजदूरों की मौत

एक दुर्घटना मिर्जापुर के लालगंज थाना क्षेत्र में हुई, जिसमें महाराष्ट्र से बिहार जा रहे तीन मजदूरों की मौत हुई. दूसरा हादसा बुलंदशहर जिले में हुआ, जिसमें गुजरात से बिजनौर जा रहे दो श्रमिकों की मौत हो गई.

केंद्र सरकार ने लोकतांत्रिक होने का दिखावा करना भी छोड़ दिया है : सोनिया गांधी

कोविड-19 संकट के मद्देनज़र कांग्रेस द्वारा बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि मौजूदा सरकार के पास कोई समाधान नहीं होना चिंता की बात है, लेकिन उनके मन में ग़रीबों और कमज़ोर वर्गों के प्रति करुणा न होना हृदयविदारक है.

लॉकडाउन: अंधेरे में नदी और जंगल के रास्ते हरियाणा से बिहार जा रहे मज़दूर

मज़दूरों का ये जत्था हरियाणा के यमुनानगर से आ रहा था. आजीविका खो चुके इन मज़दूरों का कहना है कि जिस शेल्टर होम में ये रह रहे थे, वहां ख़राब खाने के साथ एक टाइम ही खाना मिल रहा था.

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