भारत छोड़ो आंदोलन में वाजपेयी की भूमिका से जुड़ा सवाल पूछने पर राज्यसभा टीवी की एंकर पर गिरी गाज

एंकर नीलू व्यास को चैनल की ओर से नोटिस उनके द्वारा राज्यसभा टीवी के एक वरिष्ठ अधिकारी के ख़िलाफ़ उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करवाने के दो हफ़्ते बाद मिला है.

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एंकर नीलू व्यास को चैनल की ओर से नोटिस उनके द्वारा राज्यसभा टीवी के एक वरिष्ठ अधिकारी के ख़िलाफ़ उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करवाने के दो हफ़्ते बाद मिला है.

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू

नई दिल्ली : राज्यसभा टीवी के एक एंकर द्वारा स्टूडियो के एक मेहमान से 1942 में अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा दिए गए उस शपथ पत्र के बारे में सवाल पूछना, जिसमें उन्होंने अंग्रेज विरोधी आंदोलन में शिरकत न करने का वादा किया था, उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू को इतना कुपित कर गया कि चैनल को मजबूर होकर माफी मांगनी पड़ी और उस एंकर को न सिर्फ फटकार लगाई गई, बल्कि उसे ऑफ एयर भी कर दिया गया.

एक महीने बाद भी चैनल के वरिष्ठताक्रम में तीसरे नंबर पर आनेवाली वरिष्ठ एंकर नीलू व्यास की वापसी टीवी स्क्रीन पर नहीं हो सकी है. इस बातचीत के क्लिप को भी राज्यसभा टीवी के यू-ट्यूब चैनल से हटा दिया गया, ताकि इंटरनेट सर्च में यह दिखाई न दे.

जहां एक तरफ व्यास के खिलाफ कार्रवाई राजनीति से भरी उन परिस्थितियों को दिखाती है, जिसमें इस चैनल के पत्रकार नायडू के उपराष्ट्रपति बनने के बाद से काम कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ एक तथ्य यह भी है कि इस अप्रत्याशित फटकार से मुश्किल से दो हफ्ते पहले इस एंकर ने राज्यसभा के एक वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ उन्हें बार-बार संदेश भेजने और उनके काम में दखलंदाजी करने और साथ ही अभद्र टिप्पणियां करने की शिकायत की थी.

इस संयोग के कारण भी चैनल के वर्तमान और पूर्व अधिकारियों में एक आक्रोश है. इस चैनल पर संसद के ऊपरी सदन का ‘स्वामित्व’ है और यह नायडू के प्रति जवाबदेह है, लेकिन इसमें एक एडिटर-इन-चीफ (मुख्य संपादक) और एक सीईओ भी हैं, जो दिन-प्रतिदिन के कामकाज के लिए जिम्मेदार हैं.

राज्यसभा सचिवालय के अधिकारियों के पास संपादकीय मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है.

22 अगस्त, 2018 के एक आधिकारिक मेमो द्वारा राज्यसभा टीवी के संपादक राहुल महाजन ने नीलू व्यास पर पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ ‘अप्रमाणिक आरोप’ की चर्चा करने का आरोप लगाया, जिनकी मृत्यु 16 अगस्त को हुई थी.

मेमो में कहा गया है कि ‘जिस समय श्री अटल बिहारी वाजपेयी मृत्युशय्या पर थे, उस समय आपके द्वारा एक बिना किसी संदर्भ का आरोप लगाया गया.’ साथ ही इसमें यह भी कहा गया कि ‘इतने अहम मसले पर चर्चा करते हुए आपके गैर-जिम्मेदार रवैये के कारण राज्यसभा टीवी को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा और इसके लिए माफी मांगी मांगनी पड़ी.’

व्यास को सात दिनों के भीतर स्पष्टीकरण देने के लिए कहा गया. उन्हें मौखिक तौर पर यह भी कहा गया कि उन्हें दो हफ्ते के लिए एंकरिंग से दूर रखा जाएगा. यह मियाद अभी तक पूरी नहीं हुई है.

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एंकर नीलू व्यास को एडिटर इन चीफ राहुल महाजन द्वारा भेजा गया मेमो

वाजपेयी को लेकर यह चर्चा 16 अगस्त को हुई थी. वाजपेयी की मृत्यु की खबर की बस आधिकारिक पुष्टि का इंतजार किया जा रहा था, यहां तक कि दूरदर्शन ने समय से पहले ही उनके देहांत की घोषणा कर दी थी.

राज्यसभा टीवी समेत लगभग सभी समाचार चैनलों ने उस दिन अपने कार्यक्रमों का एक बड़ा हिस्सा मेहमानों के साथ वाजपेयी के जीवन की चर्चा करने और एंकरों द्वारा वाजपेयी के राजनीतिक करियर के छोटे से छोटे ब्यौरे देने में समर्पित कर दिया.

इंदिरा गांधी और नेहरू के प्रति वाजपेयी के विचारों की चर्चा करने के बाद, नीलू व्यास ने स्टूडियो के एक मेहमान विजय त्रिवेदी, जो कि 2016 में प्रकाशित वाजपेयी की जीवनी हार नहीं मानूंगा  के लेखक हैं, से 1942 की घटना के बारे में सवाल पूछा.

‘उन्होंने इस तथ्य को कैसे स्वीकार किया कि मैं अब (अंग्रेजों के खिलाफ) नारे नहीं लगाऊंगा, क्योंकि वे हमेशा अपने राष्ट्रवादी रुझान के लिए जाने जाते थे.’

इस सवाल को ‘अप्रमाणिक आरोप’ की तरह लेने की बात तो दूर- जैसा कि राज्यसभा टीवी के संपादक ने एंकर को फटकार लगानेवाले अपने नोट में लिखा है- त्रिवेदी ने कहा कि युवा वाजपेयी की गिरफ्तारी और उनके द्वारा एक शपथ पत्र पर दस्तखत करके अंग्रेजों का विरोध न करने का वादा करने वाली घटना वास्तव में हुई थी.

‘आपको यह याद रखना होगा कि यह घटना कब हुई थी. उस समय अटल जी की उम्र 17 साल थी. मैंने इस पर विस्तारपूर्वक शोध किया है. मैं आगरा के नज़दीक, बटेश्वर नामक जगह पर गया हूं, जहां की यह घटना है. एक छोटा सा आंदोलन चल रहा था और वे भी वहां मौजूद थे…जब पुलिस ने उन्हें पकड़ा और यह सब हुआ और एक एक चिट्ठी लिखी गई जिस पर उन्होंने किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के प्रभाव में आकर दस्तखत किए.’

त्रिवेदी ने कहा कि इस बात का सवाल नहीं उठता था वाजपेयी बाद के अपने जीवन के साथ उस समय हुई घटना का सामंजस्य बिठा सकें.

‘उन्होंने कभी इसका खंडन नहीं किया, न ही कभी इसकी पुष्टि की, न ही उन्होंने इसके बारे में कभी बात की. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोई उनके राष्ट्रवादी चरित्र पर सवाल उठा सकता है.’

स्टूडियो की यह चर्चा इसके बाद भी जारी रही और इसमें वाजपेयी के जीवन के दूसरे पहलुओं को छुआ गया. 1942 के मुद्दे को लेकर इसके बाद प्रसारण के दौरान या उसके बाद तब तक कुछ भी नहीं कहा गया, जब तक कि एक हिंदी वेबसाइट पर इस बाबत खबर नहीं छपी कि कैसे एक एंकर के सवाल ने भाजपा और संघ को नाराज कर दिया है.

इसके ठीक बाद राज्यसभा सचिवालय के अतिरिक्त सचिव एए राव और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के करीबी माने जानेवाले एक नौकरशाह ने चैनल से इस मामले में कार्रवाई करने की मांग की.

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एडिटर इन चीफ राहुल महाजन को भेजा गया एक वॉट्सऐप मैसेज, जो संस्थान के कर्मचारियों के बीच भी वायरल हुआ था.

राज्यसभा सचिवालय के स्रोतों के मुताबिक जब यह माला नायडू के संज्ञान में लाया गया, तब उन्होंने चैनल को एक माफीनामा जारी करने का आदेश दिया. इसके तुरंत बाद महाजन ने एक मेमो जारी करके नीलू व्यास से स्पष्टीकरण देने के लिए कहा.

चैनल ने 22 अगस्त को अपने प्रसारण के दौरान एंकर द्वारा पूछे गए सवाल के लिए माफी मांगनेवाला एक टिकर भी चलाया.

‘16 अगस्त को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन और योगदान पर एक लाइव चर्चा के दौरान राज्यसभा टीवी की एक वरिष्ठ एंकर ने श्री वाजपेयी के बारे में कुछ बिना संदर्भ के और तथ्यात्मक तौर पर हवाले दिए. राज्यसभा टीवी इसके लिए खेद प्रकट करता और इसके लिए माफी मांगता है.’

महाजन और व्यास दोनों ने ही इस माफी को लेकर कोई बयान देने से इनकार कर दिया लेकिन एए राव ने द वायर  से इस बात की पुष्टि की कि उन्होंने राज्यसभा टीवी के मुख्य संपादक को अपनी आपत्ति से अवगत कराया था.

यह पूछे जाने पर कि एंकर के सवाल में आखिर तथ्यात्मक तौर पर गलत क्या था, राव ने कहा कि सारा मामला संदर्भ का था, जिससे यह जाहिर हो रहा था कि जिस दिन वाजपेयी मृत्युशय्या पर पड़े थे, उस दिन इस मुद्दे को उठाना अनुचित था.

द वायर  को इस बात की जानकारी मिली है कि एडिटर-इन-चीफ के मेमो के जवाब में नीलू व्यास ने कहा कि ‘त्रिवेदी से सवाल पूछने के पीछे की उनकी मंशा यह दिखाने की थी कि किस तरह से ‘एक कद्दावर नेता को भी ऐसे क्षणों का सामला करना पड़ा था, लेकिन इन सबके बीच से वे विजयी होकर निकले. 16 अगस्त को पैनलिस्टों से मैंने जो सवाल पूछा, उससे जनता को यह याद दिलाया गया कि (कैसे वाजपेयी ने) सारी बाधाओं को, जिनमें उनके ऊपर थोप दिया गया अंग्रेजों द्वारा उनसे लिखवाया गया एक शपथ पत्र भी था. इससे हमारे दिवंगत प्रधानमंत्री का करिश्मा और निखर कर सामने आया…’

उत्पीड़न की शिकायत

राज्यसभा टीवी के वर्तमान और पूर्व कर्मचारी इस मामले को तूल देने में एए राव की भूमिका पर सवाल उठाते हैं, खासकर इस तथ्य की रोशनी में कि नीलू व्यास ने 8 अगस्त को एक शिकायत की थी जिसमें उन्होंने राव पर उनका उत्पीड़न और दखलंदाजी करने और अभद्र टिप्पणी करने का आरोप लगाया था.

राज्यसभा टीवी के सचिव पीपीके रामाचार्युलू ने द वायर  को बताया कि शिकायत पर प्रक्रिया के तहत विचार किया जा रहा है, लेकिन उन्होंने इस बात की पुष्टि करने से इनकार कर दिया कि क्या इसे सचिवालय की आंतरिक शिकायत समिति के पास भेजा गया है या नहीं.

राज्यसभा सचिवालय के सूत्रों ने द वायर  को बताया कि नीलू व्यास ने नायडू को एक पत्र लिखा है, जहां उन्होंने कहा है, ‘यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जैसा ऊंचा पद स्त्री उत्पीड़न के मामले में स्थापित कानून और व्यवहारों के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में असफल हो रहा है.’

‘मेरे लिए एक वरिष्ठ अधिकारी, जो खुलेआम आपके साथ अपनी नजदीकी का बखान करते रहते हैं, का विरोध करने और उनके खिलाफ एक औपचारिक शिकायत दर्ज कराने का साहस बटोर पाना और अपने अधिकार के लिए खड़ा होना कभी भी आसान नहीं था. लेकिन इसके बाद की घटनाओं से ऐसा लगता है कि यह सिस्टम उत्पीड़न की शिकार होनेवाली स्त्री के खिलाफ बदले की भावना और साजिश के तहत काम कर रहा है. मैं न्याय की मांग करती हूं और यह कहना चाहती हूं कि अगर मुझे न्याय से वंचित किया गया, तो मुझे राष्ट्रीय महिला आयोग और और/या न्याय के माननीय अदालतों का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.’

इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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