द वायर के सिद्धार्थ वरदराजन समेत विश्व के 17 पत्रकारों को मिला डीडब्ल्यू फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड

साल 2015 से डॉयचे वेले द्वारा यह सालाना सम्मान मीडिया के क्षेत्र में मानवाधिकार और बोलने की आज़ादी के प्रति प्रतिबद्धता से काम करने के लिए दिया जाता रहा है. इस बार यह विश्व भर के उन पत्रकारों को दिया जा रहा है, जिन्होंने कोरोना संकट के दौरान उनके देशों में सत्ता द्वारा उत्पीड़न और कार्रवाई का सामना किया है.

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साल 2015 से डॉयचे वेले द्वारा यह सालाना सम्मान मीडिया के क्षेत्र में मानवाधिकार और बोलने की आज़ादी के प्रति प्रतिबद्धता से काम करने के लिए दिया जाता रहा है. इस बार यह विश्व भर के उन पत्रकारों को दिया जा रहा है, जिन्होंने कोरोना संकट के दौरान उनके देशों में सत्ता द्वारा उत्पीड़न और कार्रवाई का सामना किया है.

DW Freedom of Speech award
डीडब्ल्यू फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड से सम्मानित होने वाले पत्रकार एलेना मिलाशिना, सिद्धार्थ वरदराजन, चेन किउशी और नुरकान बायसाल. (बाएं से)

नई दिल्ली: द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन समेत 14 देशों के 17 पत्रकारों को इस साल डॉयचे वेले (डीडब्ल्यू) के फ्रीडम ऑफ स्पीच अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है.

3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर यह घोषणा की गई. साल 2015 से डीडब्ल्यू द्वारा यह सालाना सम्मान मीडिया के क्षेत्र में मानवाधिकार और बोलने की आजादी के प्रति प्रतिबद्धता से काम करने के लिए दिया जाता रहा है.

इस बार यह दुनिया भर के उन पत्रकारों को दिया जा रहा है, जिन्होंने कोरोना संकट के दौरान उनके देशों में सत्ता द्वारा उत्पीड़न और कार्रवाई का सामना किया है.

ज्ञात हो कि देशव्यापी लॉकडाउन के बीच उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा सिद्धार्थ वरदराजन को अयोध्या में तलब किया गया था.

प्रदेश की फैजाबाद पुलिस द्वारा दर्ज एक प्राथमिकी में दावा किया गया है कि द वायर  के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में ‘आपत्तिजनक’ टिप्पणी की थी.

सिद्धार्थ के अलावा दुनिया भर के विभिन्न देशों के 16 अन्य पत्रकारों को भी इस सम्मान से नवाजा गया है.

आना लालिक, सर्बिया

न्यूज़ वेबसाइट नोवा डॉट आरएस [Nova.rs] के लिए काम करने वाली आना को नोवी साद शहर में मेडिकल उपकरणों और प्रोटेक्टिव गियर (बचाव के साधन) की कमी को लेकर रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए दो दिन की जेल हुई थी.

उन पर फेक न्यूज़ फैलाने का आरोप लगाया गया था. ज्ञात हो कि कोविड-19 के चलते सर्बिया में एक नया कानून बनाया गया है, जिसके तहत कोरोना वायरस पर छपने वाली हर खबर पर प्रधानमंत्री कार्यालय की नजर रहेगी.

ब्लाज़ जगागा, स्लोवेनिया

फ्रीलांस के बतौर काम करने वाले ब्लाज़ खोजी पत्रकार हैं और इंटरनेशनल कॉन्सोर्टियम ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स का हिस्सा हैं.

बीते समय में उन्हें सरकार की प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा है, साथ ही उन्हें जान से मारने की बेनाम धमकियां भी मिली हैं.

सेर्गेय साजुक, बेलारूस 

ऑनलाइन अखबार ‘येजहेदनेवनिक’ के लिए काम करने वाले सेर्गेय को 25 मार्च को गिरफ़्तार किया गया और 4 अप्रैल को रिहा किया गया. सरकार द्वारा उन पर रिश्वत देने का आरोप लगाया गया था.

गिरफ़्तारी से पहले सेर्गेय ने कोरोना महामारी से निपटने को लेकर सरकारी रवैये की आलोचना की थी. इससे पहले राष्ट्रपति लुकाशेंको कह चुके हैं कि ‘जो मीडिया इस महामारी पर रिपोर्ट कर रहे हैं, उन पर ध्यान रखा जाना चाहिए.’

एलेना मिलाशिना, रूस

2009 में ह्यूमन राइट्स वॉच के पुरस्कार से सम्मानित खोजी पत्रकार एलेना पर इस साल की शुरुआत में चेचेन्या में हमला हो चुका है.

12 अप्रैल को ‘नोवाया गजेटा’ में उन्होंने चेचेन्या प्रशासन द्वारा कोविड-19 से निपटने के बारे में लिखा था, जिसके अगले रोज उन्हें सोशल मीडिया पर चेचेन्या के राष्ट्रपति कादिरोव द्वारा जान से मारने की धमकी दी गई.

डारविंसन रोजास, वेनेजुएला

वेनेजुएला में कोरोना वायरस के प्रसार पर रिपोर्ट करने के बाद फ्रीलांस पत्रकार रोजास को हिंसक तरह से गिरफ्तार किया गया और 12 दिनों तक हिरासत में रखकर पूछताछ की गयी.

उन पर नफ़रत भड़काने और उकसावे के आरोप लगाए गए थे. 2 अप्रैल को उन्हें जमानत पर रिहा किया गया है.

मोहम्मद मोसाएद, ईरान

कोरोना वायरस को लेकर सरकार की तैयारियों की आलोचना करने पर फ्रीलांस रिपोर्टर मोसाएद को गिरफ्तार किया गया था.

रिपोर्ट्स के अनुसार अदालत से सुनवाई की तारीख मिलने के इंतजार में बैठे मोसाएद के पत्रकारिता करने पर रोक लगा दी गई है और प्रशासन द्वारा उनके सभी सोशल मीडिया एकाउंट बंद कर दिए हैं.

बेटिफिक न्गुंबवांडा, जिम्बाब्वे

साप्ताहिक अखबार टेलजिम के रिपोर्टर बेटिफिक को 8 अप्रैल को लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन करने के लिए गिरफ्तार किया गया था. मीडियाकर्मी की पहचान बताने के बावजूद उन्हें कई घंटों तक हिरासत में रखा गया.

डेविड मुसिसि कार्यानकोलो, युगांडा 

‘बुकेडे टीवी’ के पत्रकार डेविड को अप्रैल की शुरुआत में उनके घर पर कई सुरक्षा अधिकारियों द्वारा बुरी तरह पीटा गया था, जिसके बाद वे तक़रीबन दस घंटों तक कोमा में रहे थे.

इन अधिकारियों का कहना था कि वे कर्फ्यू लागू करवा रहे थे, हालांकि डेविड की पत्नी ने बताया था कि वे बरामदे में केवल नहाने के लिए पानी लाने गए थे. बाद में वहां इंचार्ज एक पुलिस अधिकारी को कथित तौर पर एक पत्रकार पर हमला करने के लिए गिरफ्तार किया गया था.

नुरकान बायसाल, तुर्की

कई अवॉर्ड पा चुकी नुरकान पर दो अलग-अलग मामलों में जांच चल रही है, जहां उन पर ‘लोगों में दुश्मनी और नफरत भड़काने’ के आरोप हैं. उन्होंने इससे पहले कोरोना पर प्रशासन की प्रतिक्रिया के बारे में टिप्पणी की थी.

उन्होंने कोरोना संकट के बीच जेल में रह रहे कैदियों के हालात पर रिपोर्ट लिखी थी. साथ ही कैदियों की चिट्ठियों, अखबारों के लेख के साथ अपनी राय सोशल मीडिया पर पोस्ट की थी.

इस्मेत सिगित, तुर्की

एसईएस कोकैली अखबार के मुख्य संपादक इस्मेत को मार्च महीने में उस रिपोर्ट को लेकर गिरफ्तार किया गया था, जहां उन्होंने कोरोना वायरस से हुई दो मौतों के बारे में लिखा था. उन्हें बाद में रिहा कर दिया गया था.

फारेस सायेघ, जॉर्डन

जॉर्डन के सबसे बड़े मीडिया संस्थान रोया टीवी ने कोविड-19 के देश में प्रसार के शुरुआती दौर में बचाव में हुई कमियों को उजागर किया था.

इस बारे में नागरिकों के इंटरव्यू वाली रिपोर्ट के प्रसारण के बाद 9 अप्रैल को इसके मैनेजिंग डायरेक्टर सायेघ और उनके एक सहकर्मी को गिरफ्तार किया गया था. तीन दिन बाद उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया.

सोवान रिथी, कंबोेडिया

सोवान टीवीएफबी न्यूज वेबसाइट के प्रमुख हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री हुन सेन के दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गए टैक्सी ड्राइवरों की मदद न कर पाने को लेकर लिखा था.

उन्हें समाज में अराजकता फैलाने और सामाजिक खतरा उत्पन्न करने के आरोप में 7 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया.

सूचना मंत्रालय द्वारा उनका मीडिया लाइसेंस भी रद्द कर दिया गया है. अगर वे दोषी पाए गए तो सालों की कैद की सजा हो सकती है.

मारिया विक्टोरिया बेलत्रॉन, फिलीपींस

सेबू सिटी में रहने वाली मरिया लेखक और अभिनेत्री हैं. उन्होंने सेबू सिटी में कोरोना के बढ़ रहे मामलों के बारे में कटाक्ष करते हुए फेसबुक पोस्ट लिखी थी, जिसके बाद शहर के मेयर ने पोस्ट को ‘फेक न्यूज़ और आपराधिक कृत्य’ बताते हुए उन्हें जेल भेजे जाने की धमकी दी थी.

चेन किउशी, चीन

चीनी वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और सिटीजन जर्नलिस्ट किउशी को 2019 में हुए हांगकांग में हुए प्रदर्शनों की कवरेज के लिए जाना जाता है. इन प्रदर्शनों की कवरेज के बाद इनका वाइबो एकाउंट डिलीट कर दिया गया था और उन्हें हिरासत में लिया गया था.

इस बार वे वुहान शहर में डाक्टरों और नागरिकों के इंटरव्यू कर रहे थे, उन्होंने ट्विटर और यूट्यूब पर डॉक्टरों से बातचीत पोस्ट की थी. वे 6 फरवरी 2020 से लापता हैं.

30 जनवरी को एक वीडियो में उन्होंने कहा था, ‘मुझे डर लग रहा है. मेरे सामने बीमारी है और पीछे चीनी सरकार, लेकिन जब तक मैं जिंदा हूं, मैंने जो देखा-सुना है, वो बोलता रहूंगा.’

ली जेहुआ, चीन

चीन के वुहान में कोरोना संकट को कवर कर रहे सिटीजन जर्नलिस्ट और सीसीटीवी चैनल के पूर्व प्रस्तोता ली 26 फरवरी से लापता थे.

फिर 22 अप्रैल को उन्होंने यूट्यूब पर एक वीडियो अपलोड किया जिसमें वे कह रहे थे कि उन्हें क्वारंटीन किया गया है, लेकिन उनके इस दावे पर सवाल उठ रहे हैं.

फैंग बिन, चीन

बिजनेसमैन से सिटीजन जर्नलिस्ट बने बिन 2020 की शुरुआत में अपने गृहनगर वुहान से कोरोना के बारे में रिपोर्ट कर रहे थे.

उनका सर्वाधिक चर्चित वीडियो वह रहा था, जहां उन्होंने एक अस्पताल के बाहर बैगों में पड़े कई शवों को दिखाया था. 2 फरवरी को पुलिस द्वारा उनका लैपटॉप जब्त कर लिया गया था. वे 9 फरवरी से लापता हैं.

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