उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले के रहने वाले राजू अंकलेश्वर के एक पावर प्लांट में काम करते थे. सोमवार को वे किसी को बिना बताए साइकिल से अपने गांव जाने के लिए निकले थे, इसी शाम उनका शव नेशनल हाईवे पर मिला.
कोरोना वायरस संक्रमण के चलते हुए देशव्यापी लॉकडाउन के बीच प्रवासी मजदूरों के अपने घरों को लौटने के प्रयास जारी हैं, जिनमें उनकी जान पर भी बन आ रही है.
ऐसी ही एक घटना गुजरात में हुई, जहां अंकलेश्वर में काम करने वाले एक मजदूर की साइकिल से उत्तर प्रदेश में अपने घर जाने के प्रयास में जान चली गई. उनका शव राष्ट्रीय राजमार्ग पर मिला.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सोमवार को 40 वर्षीय राजू का शव शाम साढ़े छह बजे राष्ट्रीय राजमार्ग-8 पर मिला.
उनके छोटे भाई राजेश ने बताया कि उसी सुबह काम पर जाने से पहले वे करीब सात बजे राजू से मिले थे. वे एक पावर प्लांट में काम करते हैं. राजू की ड्यूटी अगली शिफ्ट में थी.
ये दोनों भाई मूल रूप से उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के बहुआस गांव के रहने वाले हैं. उसी रोज गांव से राजू की पत्नी इंद्रावती ने दिन में राजेश को फोन करके बताया कि राजू कॉल का जवाब नहीं दे रहे हैं.
कुछ समय बाद राजेश के फोन लगाने पर एक पुलिस वाले ने कॉल का जवाब दिया और बताया कि राजू की मौत हो गयी है.
एक राहगीर को राजू का शव राष्ट्रीय राजमार्ग-8 पर मिला था, जिन्होंने पुलिस को इसकी सूचना दी. यह जगह अंकलेश्वर के पावर प्लांट में बने उनके क्वार्टर से करीब 55 किलोमीटर दूर है.
शव के पास उनकी साइकिल, एक थैले में कुछ कपड़े, एक कंबल, उनका आधार कार्ड, पानी की बोतल और दो हजार रुपये मिले. कर्जन जनरल हॉस्पिटल के डाक्टरों ने पुष्टि की है कि राजू की मौत अत्यधिक थकान से हुई है.
अस्पताल के सुप्रिटेंडेंट अनिल चौधरी ने बताया, ‘ऑटोप्सी की प्राथमिक रिपोर्ट के मुताबिक उनकी मौत बहुत अधिक थकान से हुई है. वे स्वस्थ थे और कोई बीमारी नहीं थी. न ही उनमें कोविड-19 के कोई लक्षण थे.’
इस अखबार से बात करते हुए उनकी पत्नी इंद्रावती ने कहा, ‘उन्हें थकान ने नहीं, ऐसी मुसीबत के समय अपने परिवार से न मिल पाने की बेबसी ने मारा है. हम उन्हें आखिरी बार देख भी नहीं सके.’
अंकलेश्वर में बहुआस गांव के 26 लोग काम कर रहे हैं, लेकिन केवल राजू वहां से घर जाने के लिए निकले थे. उनके परिवार का कहना है कि उन्हें नहीं पता था कि राजू करीब 1,600 किलोमीटर की इस दूरी को तय कर घर पहुंचने की सोच रहे थे.
राजेश बताते हैं, ‘उन्होंने कभी साइकिल से घर जाने के बारे में कोई बात नहीं कही थी. हमने यहीं रहने की सोची थी क्योंकि काम शुरू हो गया था और हमें पगार देने की बात कही गई थी. मैं नहीं जानता कि उन्होंने किसी को बिना बताए जाने का फैसला क्यों लिया.’
राजू इसी साल जनवरी में गुजरात आए थे और राजेश फरवरी में. राजेश बताते हैं, ‘हम दो साल पहले काम करने के लिए गांधीधाम आए थे. जब ठेका खत्म हुआ तो वापस गांव लौट गए. हमारे पास कोई जमीन नहीं है, पिता रिक्शा चलाते हैं.’
वे आगे कहते हैं, ‘वहां हम खेतों में मजदूरी करते हैं, कभी-कभी इमारत वगैरह के कंस्ट्रक्शन वाली जगह पर भी, लेकिन वहां पैसा बहुत ही कम मिलता था.’