दोषियों की रिहाई को चुनौती देने के बाद बिलक़ीस ने कहा- जो ग़लत है, उसके ख़िलाफ़ फिर लड़ूंगी

बिलक़ीस बानो ने 2002 के सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में 11 दोषियों को सज़ा में छूट तथा उन्हें रिहा किए जाने के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की समीक्षा की भी मांग की है, जिसमें गुजरात सरकार को दोषियों की सज़ा पर निर्णय लेने की अनुमति दी गई थी.

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(फोटो: पीटीआई)

बिलक़ीस बानो ने 2002 के सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में 11 दोषियों को सज़ा में छूट तथा उन्हें रिहा किए जाने के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की समीक्षा की भी मांग की है, जिसमें गुजरात सरकार को दोषियों की सज़ा पर निर्णय लेने की अनुमति दी गई थी.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार की सर्वाइवर बिलकीस बानो ने सुप्रीम कोर्ट में उनके साथ हुए अपराध के दोषियों की समयपूर्व रिहाई को शीर्ष अदालत में चुनौती देने के बाद जारी एक बयान में कहा है, ‘जो गलत है और जो सही है, उसके लिए मैं फिर से लड़ूंगी.’

2002 की उस घटना के समय बानो 21 साल की थीं और पांच महीने की गर्भवती थीं. उनके 14 परिजनों के साथ उनकी तीन साल की बच्ची को भी हिंसा के दौरान मार दिया गया था.

बानो ने 2002 के सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में दोषियों को सजा में छूट देने तथा उन्हें रिहा किए जाने को चुनौती देते हुए बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है.

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पहले दिए गए उस फैसले की समीक्षा की भी मांग की है, जिसमें गुजरात सरकार को दोषियों की सजा पर निर्णय लेने की अनुमति दी गई थी.

उन्होंने गुरुवार को जारी एक बयान में कहा, ‘एक बार फिर खड़े होने और इंसाफ के दरवाजे पर दस्तक देने का फैसला मेरे लिए आसान नहीं था. मेरे पूरे परिवार और मेरा जीवन नष्ट करने वाले लोगों की रिहाई के बाद, मैं लंबे समय तक स्तब्ध थी. मैं अपने बच्चों, अपनी बेटियों, और सबसे बढ़कर उम्मीद खत्म होने से जड़वत हो गई थी.’

बानो ने कहा कि उनकी चुप्पी दौरान उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों से समर्थन की आवाजें मिलीं, जिनसे उन्हें उम्मीद जगी है, और उन्हें एहसास कराया गया कि वह अपनी पीड़ा में अकेली नहीं हैं.

उन्होंने जोड़ा कि उनके पास यह बताने के लिए शब्द नहीं हैं कि इस समर्थन का उनके लिए क्या मतलब है.

उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों से मिले समर्थन ने मानवता के प्रति उनके भरोसे को फिर से कायम किया और इंसाफ के विचार में फिर से यकीन करने के लिए उनके साहस को नया बल मिला.

उन्होंने कहा, ‘इसलिए, मैं एक बार फिर खड़ी होउंगी और लड़ूंगी, उसके खिलाफ जो गलत है और जो सही है. मैं आज अपने लिए, अपने बच्चों के लिए और हर जगह की महिलाओं के लिए ऐसा कर रही हूं.’

मालूम हो कि बीते 15 अगस्त को अपनी क्षमा नीति के तहत गुजरात की भाजपा सरकार द्वारा माफी दिए जाने के बाद बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को 16 अगस्त को गोधरा के उप-कारागार से रिहा कर दिया गया था.

सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में जेल से बाहर आने के बाद बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर और माला पहनाकर स्वागत किया गया था. इसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया था. इसके अलावा सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं समेत 6,000 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की थी.

उल्लेखनीय है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूपरेखा वर्मा की दोषियों की रिहाई के खिलाफ जनहित याचिका दायर की गई है.

शीर्ष अदालत द्वारा इस बारे में गुजरात सरकार से जवाब मांगे जाने पर राज्य सरकार ने कहा था कि दोषियों को केंद्र की मंज़ूरी से रिहा किया गया. गुजरात सरकार ने कहा था कि इस निर्णय को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंज़ूरी दी थी, लेकिन सीबीआई, स्पेशल क्राइम ब्रांच, मुंबई और सीबीआई की अदालत ने सज़ा माफ़ी का विरोध किया था.

अपने हलफनामे ने सरकार ने कहा था कि ‘उनका [दोषियों] का व्यवहार अच्छा पाया गया था’ और उन्हें इस आधार पर रिहा किया गया कि वे कैद में चौदह साल गुजार चुके थे. हालांकि, ‘अच्छे व्यवहार’ के चलते रिहा हुए दोषियों पर पैरोल के दौरान कई आरोप लगे थे.

एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि 11 दोषियों में से कुछ के खिलाफ पैरोल पर बाहर रहने के दौरान ‘महिला का शील भंग करने के आरोप’ में एक एफआईआर दर्ज हुई और दो शिकायतें भी पुलिस को मिली थीं. इन पर गवाहों को धमकाने के भी आरोप लगे थे.

इसी बीच दोषियों में से एक राधेश्याम शाह ने सजा माफ़ी के खिलाफ याचिकाओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देते हुए इस याचिका को ‘अव्यवहार्य और राजनीति से प्रेरित’ बताया था.

इन्हीं राधेश्याम शाह पर इससे कुछ दिन पहले मामले के एक प्रमुख गवाह को धमकाने के भी आरोप लगे थे. मामले के प्रमुख गवाह इम्तियाज घांची ने इस संबंध में भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखते हुए जान के खतरे के मद्देनजर सुरक्षा की मांग की थी.

भाजपा नेताओं ने किया था दोषियों को छोड़ने के फैसले का समर्थन

गोधरा से भाजपा विधायक चंद्रसिंह राउलजी गुजरात सरकार की उस समिति के उन चार सदस्यों में से एक थे, जिसने बिलकीस बानो के साथ बलात्कार और उनकी तीन साल की बेटी सहित परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषी 11 लोगों को रिहा करने का फैसला किया था.

राउलजी ने बेहद विवादास्पद टिप्पणी के साथ इस फैसले का बचाव किया था. एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा था कि 2002 के गुजरात दंगों के इस मामले के दोषियों में शामिल कुछ लोग ‘ब्राह्मण’ हैं, जिनके अच्छे ‘संस्कार’ हैं और यह संभव है कि उन्हें फंसाया गया हो.

उन्होंने यह भी जोड़ा था कि हो सकता है कि वे बेगुनाह हों क्योंकि सांप्रदायिक स्थिति में एक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के निर्दोष लोगों को फंसाने की कोशिश भी की जाती है. उन्होंने कहा था कि जेल में दोषियों का आचरण अच्छा था.

राउलजी गोधरा से छह बार विधायक रह चुके हैं और इस बार भी भाजपा के टिकट पर गोधरा से ही चुनाव में उतरे हैं.

अक्टूबर महीने में केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने भी एक बयान में दोषियों के बचाव में कहा था कि उन्हें अच्छे व्यवहार के चलते रिहा किया गया था.

एक अख़बार से बात करते हुए संसदीय कार्य और कोयला मंत्री ने कहा था, ‘जो भी हुआ है, वह कानून के प्रावधानों के अनुसार हुआ है. किसी भी व्यक्ति के जेल में एक निश्चित समय काटने के बाद उन्हें रिहा करने का प्रावधान है. इस मामले में वही नियम, जो पूरी तरह कानून के हिसाब से है, अपनाया गया है.’

ज्ञात हो कि 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगने की घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई. इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे. दंगों से बचने के लिए बिलकीस बानो, जो उस समय पांच महीने की गर्भवती थी, अपनी बच्ची और परिवार के 15 अन्य लोगों के साथ अपने गांव से भाग गई थीं.

तीन मार्च 2002 को वे दाहोद जिले की लिमखेड़ा तालुका में जहां वे सब छिपे थे, वहां 20-30 लोगों की भीड़ ने बिलकीस के परिवार पर हमला किया था. यहां बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, जबकि उनकी बच्ची समेत परिवार के सात सदस्य मारे गए थे.

बिलकीस द्वारा मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था.

केस की सुनवाई अहमदाबाद में शुरू हुई थी, लेकिन बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, साथ ही सीबीआई द्वारा एकत्र सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया.

21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या का दोषी पाते हुए 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था.

सीबीआई की विशेष अदालत ने सात अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. एक आरोपी की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी.

इसके बाद 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी व्यक्तियों की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सात लोगों को बरी करने के निर्णय को पलट दिया था. अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को बिलकीस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा, सरकारी नौकरी और आवास देने का आदेश दिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)