बृज भूषण शरण सिंह: अपराध के मैदान का धुरंधर खिलाड़ी

भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष भाजपा सांसद बृज भूषण शरण सिंह पर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त खिलाड़ियों ने महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं. बृज भूषण ख़ुद को पाक-साफ़ कह रहे हैं लेकिन उनका आपराधिक गतिविधियों से भरा अतीत एक अलग ही कहानी बताता है.

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भाजपा सांसद बृज भूषण शरण सिंह. (फोटो साभार: फेसबुक/@brijbhushansharan)

मेरे जीवन में मेरे हाथ से एक हत्या हुई है, लोग जो कुछ भी कहें… मैंने एक हत्या की है…

यह किसी सज़ायाफ़्ता व्यक्ति के शब्द नहीं हैं जो अपने गुनाह का क़बूलनामा किसी को सुना रहा है, यह शब्द छह बार के लोकसभा सांसद बृज भूषण शरण सिंह के हैं और उन पर कभी हत्या का मुक़दमा चला हो, ऐसी जानकारी ढूंढ़े से भी नहीं मिलती.

वर्ष 2022 में एक वेब पोर्टल को दिए साक्षात्कार से पहले तक तो शायद किसी को पता भी नहीं था कि उन्होंने हत्या भी की है. हां, उनके बाहुबल के किस्से तो उत्तर प्रदेश में- खासकर गोंडा एवं उसके आसपास के ज़िलों में- खासे मशहूर हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में उनके चुनावी हलफनामे में चार आपराधिक मामलों का भी ज़िक्र था, जिनमें धारा 307 (हत्या का प्रयास) जैसा गंभीर अपराध भी शामिल था.

उत्तर प्रदेश की बहराइच ज़िले की कैसरगंज लोकसभा सीट से सांसद बृज भूषण वर्ष 2011 से भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के भी अध्यक्ष हैं और आरोप हैं कि उन्होंने अपने बाहुबल का प्रदर्शन महासंघ के संचालन में भी किया. नतीजतन, उनके तानाशाह रवैये के चलते अंतरराष्ट्रीय कुश्ती खिलाड़ियों को उनके ख़िलाफ़ मोर्चा खोलना पड़ा और बीते 18 जनवरी से वे दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठ गए.

उन्होंने डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष बृज भूषण पर बेहद ही संगीन आरोप लगाए हैं, जिनमें महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न, शारीरिक शोषण और डब्ल्यूएफआई के संचालन में तानाशाही एवं वित्तीय अनियमितता जैसे दावे किए गए हैं. खिलाड़ियों द्वारा यह धरना बीते शुक्रवार (20 जनवरी) की देर रात्रि खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ बैठक के बाद और सांसद बृज भूषण को डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष पद की जिम्मेदारियों से अलग करने एवं एक जांच समिति के गठन का आश्वासन मिलने के बाद समाप्त कर दिया गया.

इस बीच, ख़ुद पर लगे आरोपों के संबंध में बृज भूषण ने सफाई देते हुए कहा कि आरोप सही पाए जाने पर वह फांसी लगा लेंगे. उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने से इनकार करते हुए आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया और पहलवानों के विरोध प्रदर्शन को कांग्रेस द्वारा प्रायोजित करार दिया, साथ ही धमकी दी कि अगर उन्होंने अपना मुंह खोला तो सुनामी आ जाएगी और पहलवानों के धरने को ‘शाहीन बाग’ जैसा प्रायोजित बताते हुए कहा कि ‘ये चंद वही खिलाड़ी हैं, जिनका करिअर खत्म हो चुका है. वह मेरे ऊपर आरोप लगा रहे हैं.’

हालांकि, स्वयं को पाक-साफ़ और खिलाड़ियों को कांग्रेस का मोहरा बताने वाले बृज भूषण का इतिहास तो कुछ और ही कहता है. जैसा कि ऊपर बताया कि वह एक हत्या की बात तो स्वयं ही कैमरे पर स्वीकार चुके हैं और उनकी ही एक अन्य स्वीकारोक्ति से पता चलता है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी उन्हें ‘एक अन्य हत्या’ के लिए जिम्मेदार ठहराया था.

बाइक चोरी, शराब माफ़िया, ठेकेदारी और गोलीबारी

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले स्क्रॉल डॉट इन ने एक रिपोर्ट में गोंडा ज़िले के वरिष्ठ पत्रकारों के हवाले से बताया था कि अस्सी के दशक में बृज भूषण की संलिप्तता मोटसाइकिल/बाइक चोरी से लेकर शराब के अड्डों तक थी. यहां तक कि वे मंदिर के तालाबों के तल में पड़े सिक्के लड़कों से निकलवाते थे. समय के साथ वे सिविल ठेकेदार बन गए. इन सभी कामों में विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह उनके भागीदार थे. यह वही पंडित सिंह हैं जो यूपी की समाजवादी पार्टी (सपा) सरकारों में मंत्री भी रहे थे.

बाद में, बृज भूषण और पंडित सिंह दोस्त से दुश्मन हो गए और 1993 में इन्हीं पंडित सिंह पर गोलियां बरसाने के आरोप में बृज भूषण पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307 (हत्या का प्रयास), 147 (उपद्रव फैलाना), 148 (घातक हथियार रखना) व 149 (गैरकानूनी सभा में जुटकर समान उद्देश्य से हर सदस्य द्वारा किया गया अपराध) के तहत मामला दर्ज किया गया. पंडित सिंह ने स्क्रॉल को बताया था कि उन पर 20 गोलियां चलाई गई थीं और वे 14 महीने अस्पताल में भर्ती रहे.

29 साल चले इस मामले में बीते माह दिसंबर में ही बृज भूषण सबूतों के अभाव में बरी हो गए थे. हालांकि, अदालत ने जांचकर्ताओं की खिंचाई करते हुए कहा था कि मामले की जांच के दौरान साक्ष्य जुटाने का प्रयास नहीं किया गया था और यहां तक कि घटना में इस्तेमाल किए गए हथियार तक बरामद नहीं किए जा सके.

अपने बचाव में बृज भूषण का तर्क था कि वे हमले के समय दिल्ली में थे, इस पर जज ने कहा था कि जांचकर्ताओं द्वारा इस बात की पुष्टि करने का कोई प्रयास नहीं किया गया, जो पूरी जांच को गंभीर रूप से संदिग्ध बनाता है.

गौरतलब है कि फैसला आने से क़रीब डेढ़ साल पहले ही मई 2021 में मामले में पीड़ित पंडित सिंह का कोरोना संक्रमण के चलते निधन हो गया था. इस मामले में बृज भूषण के बरी होने का एक कारण यह रहा कि पंडित सिंह उनके ख़िलाफ़ बयान देने के लिए प्रस्तुत ही नहीं हुए. ऐसा उन्होंने क्यों किया?

इसका जवाब उन्होंने 2014 में यह दिया था, ‘अगर मैं 1993 के गोलीकांड मामले में बृज भूषण के ख़िलाफ़ गवाही देने का फैसला करता हूं तो उसे सलाख़ों के पीछे भेज सकता हूं. लेकिन मैंने ऐसा करने से ख़ुद को रोक रखा है क्योंकि मैं उसे ज़िंदा रखना चाहता हूं. एक दमदार व्यक्ति के साथ लड़ने में मजा आता है. आप सतर्क रहते हैं. आप गलतियां नहीं करते हैं.’

‘… मैंने एक हत्या की है’

पंडित सिंह के एक भाई भी थे, नाम था- रविंदर सिंह. वे बृज भूषण के काफ़ी गहरे मित्र थे. दोनों साथ में ठेकेदारी का काम करते थे. एक बार दोनों एक पंचायत कराने गए थे. जहां एक हवाई फायर किया गया और गोली बृज भूषण के बगल में खड़े रविंदर को लगी. इसे देखकर बृज भूषण आवेश में आ गए और गोली चलाने वाले व्यक्ति के हाथों से रायफल छीनकर उसमें भी गोली मार दी. मौके पर ही उसकी मौत हो गई.

इस घटना का वर्णन स्वयं बृज भूषण ने वेबसाइट लल्लनटॉप को दिए एक साक्षात्कार में किया था. साक्षात्कार में वे कहते दिखते हैं, ‘मेरे जीवन में मेरे हाथ से एक हत्या हुई है. लोग जो कुछ भी कहें, मैंने एक हत्या की है. रविंदर को जिस आदमी ने मारा है, मैंने तुरंत रायफल उसकी पीठ पर रखकर मार दिया और वो मर गया.’

आगे बातचीत में वे इस घटना का गवाह मंत्री लल्लू सिंह को बताते हैं. लल्लू सिंह वर्तमान में अयोध्या ज़िले की फैज़ाबाद लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद हैं,

इसी बातचीत में उन्होंने बताया था कि इस घटना के कुछ समय बाद उन्हें गोंडा के ही दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री कुंवर आनंद सिंह ने गैंगस्टर अधिनियम में जेल भी भिजवाया था.

बृज भूषण द्वारा एक और हत्या किए जाने का संदेह स्वयं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जताया था. इसकी स्वीकारोक्ति भी बृज भूषण ने ख़ुद ही की थी.

जब गोंडा लोकसभा के भाजपा उम्मीदवार की मौत के बाद पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा- ‘मरवा दिया (तुमने)’

बृज भूषण छह बार के सांसद हैं. पांच बार भाजपा के टिकट पर और एक बार (2009 में) सपा के टिकट पर वे संसद पहुंचे. शुरुआती दो चुनाव उन्होंने 1991 और 1999 में गोंडा लोकसभा सीट से जीते. 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें बलरामपुर से टिकट दिया और गोंडा से घनश्याम शुक्ला को उम्मीदवार बनाया. मतदान वाले दिन ही शुक्ला की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई.

स्क्रॉल से बातचीत में यह सब याद करते हुए बृज भूषण ने कहा था, ‘मेरे विरोधियों ने अफ़वाह फैला दी कि यह दुर्घटना नहीं, हत्या थी.’

उन्होंने आगे बताया था, ‘अटल जी ने मुझे बुलाया और कहा, ‘मरवा दिया (तुमने उसे).’

बृज भूषण ने बताया था कि यहीं से भाजपा के साथ उनके मतभेद शुरू हुए. नतीजतन, 2008 में उन्होंने तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के ख़िलाफ़ विपक्ष द्वारा लाए एक महत्वपूर्ण विश्वास प्रस्ताव में अपनी ही पार्टी के ख़िलाफ़ क्रॉस-वोटिंग करके सुर्खियों बटोरीं. भाजपा ने उन्हें निष्कासित कर दिया, लेकिन सपा ने उनके लिए अपने दरवाजे खोल दिए.

सपा के टिकट पर वे 2009 में कैसरगंज लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए. 2014 में वे वापस भाजपा में आ गए और फिर से कैसरगंज से सांसद बने. 2019 में भी उन्होंने अपनी जीत दोहराई.

क़ाबिल-ए-ग़ौर यह है कि प्रधानमंत्री द्वारा हत्या का संदेह जताए जाने के बाद भी वे भाजपा में बने रहे. भाजपा ने उन्हें क्रॉस-वोटिंग के बाद निकाला.

लेकिन, बृज भूषण के राजनीतिक रसूख पर कोई अंतर नहीं पड़ा. एक हत्या करने की बात स्वयं स्वीकारने वाले और एक अन्य हत्या का आरोप प्रधानमंत्री द्वारा लगाए जाने के बावजूद भी भाजपा और विपक्षी सपा दोनों ने ही उनके गुनाहों पर पर्दा डालकर गले लगाया और वे चुनाव दर चुनाव टिकट पाते रहे, जीत दर्ज करते रहे और दशक भर से अधिक समय से एक राष्ट्रीय खेल संघ के अध्यक्ष पद पर जमे हुए हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, और ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि वह स्वयं को ‘शक्तिशाली’ कहलाना पसंद करते हैं जिसे भाजपा की उतनी जरूरत नहीं है जितनी भाजपा को, उत्तर प्रदेश में उनके गृह ज़िले गोंडा और उससे लगे कम से कम आधा दर्जन जिलों में, उनकी खासी पैठ है.

अखबार को गोंडा के ही एक भाजपा नेता ने बताया, ‘बृज भूषण केवल पार्टी का चुनाव चिह्न लेते हैं, चुनाव वह अपने दम पर जीतते हैं.’

यूपी के बहराइच, गोंडा, बलरामपुर, अयोध्या और श्रावस्ती ज़िले में उनके 50 से अधिक शिक्षण संस्थान चल रहे हैं और क्षेत्र में उनके राजनीतिक रसूख का एक स्रोत यह भी है. वह स्वयं भी इसे स्वीकारते हैं.

वे कहते हैं, ‘मैंने उन्हें (कॉलेज) किसी राजनीतिक उद्देश्य से शुरू नहीं किया था, लेकिन हां आज लड़के मेरे चारों ओर रैली करते हैं. दूसरे लोग मुझे माफिया कह सकते हैं, लेकिन मेरे छात्र मुझे आदर्श मानते हैं. जिसे माफ़िया मानना है, माने लेकिन पढ़ने वाला लड़का मुझे आदर्श मानता है. मैं ब्राह्मणों के पैर छुआ करता था, आज युवा ब्राह्मण मुझे गुरु जी कहते हुए मेरे पैर छूते हैं.’

यही कारण है कि अपना क़द पार्टी से बड़ा बनाकर रखने वाले बृज भूषण अपनी ही पार्टी की सरकार और फैसलों के ख़िलाफ़ भी खड़े हो जाते हैं, लेकिन उनका बिगड़ता कुछ नहीं है.

बीते अक्टूबर माह में उन्होंने भाजपा की ही उत्तर प्रदेश सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा था कि बाढ़ के प्रति इतना खराब इंतजाम नहीं देखा, लोग भगवान भरोसे हैं. तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संबंध में पूछे गए एक सवाल पर उन्होंने कहा था, ‘मत कहलवाइए कुछ, मेरे मुंह से मत कहलवाइए.’

इसी तरह, यूपी में भाजपा की आंखों में सर्वाधिक खटकने वाले सपा नेता आज़म ख़ान को भी उन्होंने ‘जनता का नेता’ बताकर प्रशंसा कर दी थी.

बीते वर्ष जून में जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने अयोध्या आने की इच्छा जताई थी तो बृज भूषण पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ जाकर ठाकरे के दौरे के विरोध में खड़े हो गए थे, जबकि महाराष्ट्र की उथल-पुथल भरी राजनीति में भाजपा मनसे को सहयोगी के रूप में देख रही थी.

बृज भूषण ने कहा था, ‘उत्तर भारतीयों का अपमान करने वाले राज ठाकरे को मैं तब तक अयोध्या में घुसने नहीं दूंगा, जब तक कि वे हाथ जोड़कर सभी उत्तर भारतीयों से माफी नहीं मांगते हैं. मेरा अनुरोध है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनसे मुलाकात नहीं करना चाहिए. राम मंदिर आंदोलन में आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद और आम आदमी की भूमिका थी. ठाकरे परिवार का इससे कोई लेना-देना नहीं है. ‘

बीते दिनों, योग गुरु रामदेव को लेकर भी वे हमलावर हो गए थे. उन्होंने उनकी कंपनी पतंजलि पर नकली घी बेचने का आरोप लगाया था और बाबा रामदेव को ‘मिलावट का राजा’ करार देते हुए पतंजलि के उत्पादों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने की चेतावनी दी थी. साथ ही, संत समाज से आह्वान किया था कि वह रामदेव के ख़िलाफ़ खड़े हों और केंद्र, यूपी एवं उत्तराखंड सरकारों से रामदेव पर कार्रवाई करने की अपील की थी.

उनकी कट्टर हिंदुत्ववादी नेता की छवि भी भाजपा की राजनीति से मेल खाती है. जब वे एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन औवेसी के पूर्वजों को हिंदू बताकर विवाद खड़ा करते हैं, तो भाजपा के लिए ही माहौल बनाते हैं. शायद इसलिए भी पार्टी के ख़िलाफ़ जाकर भी वे शीर्ष नेतृत्व द्वारा नज़रअंदाज कर दिए जाते हैं.

बाबरी मस्जिद गिराने से लेकर दाऊद के गुर्गों को आश्रय देने तक विवादों से बृज भूषण का लंबा नाता

अवध विश्वविद्यालय से क़ानून की पढ़ाई करने वाले बृज भूषण नब्बे के दशक के अंत में भाजपा से जुड़े थे. वह रामजन्मभूमि आंदोलन का दौर था और अयोध्या के आसपास के क्षेत्रों में उनकी अच्छी पकड़ के चलते भाजपा की नज़र उन पर पड़ी थी. आज उनकी पत्नी केतकी देवी सिंह गोंडा ज़िला पंचायत अध्यक्ष हैं और बेटे प्रतीक भूषण सिंह गोंडा सदर सीट से विधायक हैं.

राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरों में बृज भूषण एक रहे और बाबरी विध्वंस मामले में वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के साथ वे भी गिरफ़्तार हुए. वे इस मामले में मुख्य आरोपी थे. वर्ष 2020 में अदालत ने बृज भूषण समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया था.

कट्टर हिंदू नेता की इस छवि को भी वे आज भी भुनाते हैं और गर्व से कहते हैं, ‘आंदोलन के दौरान क्षेत्र का मैं पहले व्यक्ति था, जिसे मुलायम सिंह ने गिरफ़्तार किया था. विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद सीबीआई द्वारा गिरफ़्तार किया गया मैं पहला शख़्स था.’

नब्बे के दशक के मध्य में, उनके अंडरवर्ल्ड से भी संबंधों की बात सामने आई थी. उन्होंने दाऊद इब्राहिम गिरोह के सदस्यों को शरण देने के आरोप में तिहाड़ जेल में कई महीने बिताए. उनके ख़िलाफ़ आतंकवादी एवं विभाजनकारी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (टाडा) के तहत मामला दर्ज किया गया था. बाद में वे सबूतों के अभाव में बरी हो गए थे.

जेल में रहते हुए उन्होंने अपनी पत्नी को गोंडा लोकसभा से भाजपा के ही टिकट पर चुनाव लड़ाया और वे जीत भी गईं.

वर्ष 2004 में बृज भूषण के 22 वर्षीय बेटे शक्ति सिंह ने आत्महत्या कर ली और सुसाइड नोट में इसके लिए पिता बृज भूषण को जिम्मेदार ठहराते हुए लिखा, ‘आप अच्छे पिता साबित नहीं हो सके. आपने हम भाई-बहनों की सुख-सुविधा का कोई ख्याल नहीं रखा. आपने हमेशा अपने बारे में ही सोचा और हमारी कोई चिंता नहीं की… हम लोगों को अपना भविष्य अंधकार में ही दिख रहा है. इसलिए अब जीने का कोई औचित्य नहीं है.’

कुश्ती महासंघ के संचालन में ‘तानाशाह’ रवैया पहले भी चर्चित रहा है

डब्ल्यूएफआई के संचालन में भी बृज भूषण ‘अपने बारे में ही सोचने वाले’ आत्ममुग्धता का शिकार शासक रहे हैं, जो उनके इस कथन में झलकती है, ‘यह सभी (पहलवान) ताकतवर लड़के-लड़कियां हैं. इन्हें नियंत्रित करने के लिए आपको किसी ताकतवर की जरूरत होती है. क्या यहां मुझसे ज्यादा ताकतवर कोई है?’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उक्त शब्द उन्होंने 2021 में दिए एक साक्षात्कार में कहे थे.

अखबार की रिपोर्ट में उल्लेख है कि वे कुश्ती से जुड़ी हर चीज पर अंतिम निर्णय उनका ही होता है. कुश्ती के हर छोटे-बड़े टूर्नामेंट पर उनकी नज़र रहती है और अक्सर रेफरी को निर्देश देते हैं और यहां तक कि जजों को दंडित करते हैं.

उनके तानाशाह रवैये के ऐसे ही कुछ किस्सों का जिक्र करते हुए अखबार ने बताया है कि जनवरी 2021 में उन्होंने नोएडा में राष्ट्रीय चैंपियनशिप के दौरान एक रेलवे कोच निलंबित कर दिया. उन्होंने रेफरी से दिल्ली के एक पहलवान को दंडित करने कहा क्योंकि उनके (पहलवान के) समर्थक खेल के मैदान में प्रवेश कर गए. रेफरी ने ऐसे किसी नियम से इनकार किया, फिर भी वे जोर देते रहे.

अगर वे किसी टूर्नामेंट में स्वयं उपस्थित नहीं हो पाते हैं तो आयोजन स्थल पर हर ओर कैमरे लगवाकर घर से निगरानी करते हैं. यह बात स्वयं उन्होंने स्वीकारी थी.

अखबार का कहना है कि बृज भूषण के रवैये से पहलवान भली-भांति परिचित हैं, इसलिए जब वे विवादित मुकाबले में हारते हैं तो जज के पास जाने के बजाय सीधा उनसे अपील करते हैं.

वहीं, भारतीय कुश्ती में राष्ट्रीय चैंपियनशिप के मुकाबलों के दौरान पहलवानों द्वारा बृज भूषण के पैर छूकर आशीर्वाद लेने के दृश्य भी आम हैं.

उनका प्रभाव इतना है कि वह एथलीटों की ओलंपिक तैयारियों के लिए बनी केंद्र सरकार की ‘टारगेट ओलंपिक पोडियम (टॉप)’ स्कीम को लेकर भी सरकार पर बरसते हुए कहते हैं कि वह इस योजना के तहत एथलीट से सीधा संपर्क न करे.

वहीं, पहलवानों पर अपनी लगाम कसने बीते वर्ष टोक्यो ओलंपिक के बाद उन्होंने कहा था कि महासंघ पहलवानों का समर्थन करने वाले निजी, गैर-लाभकारी संगठनों पर नज़र रखेगा.

द प्रिंट से बात करते हुए भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के एक पूर्व कोच कहते हैं, ‘बृज भूषण वह गुंडा है जिसकी कुश्ती को ज़रूरत है. उनके बिना, पहलवानों को अनुशासित करना या नियंत्रण में रखना बहुत मुश्किल होगा.’

उनकी इसी गुंडई का नज़ारा वर्ष 2021 में रांची में एक जूनियर स्तर के कुश्ती टूर्नामेंट के दौरान दिखा भी, जब उन्होंने मंच पर ही एक पहलवान को पीटना शुरू कर दिया.

महासंघ के संचालन में उनके इन्हीं तौर-तरीकों को द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त महावीर फोगाट ने भी विस्तार से मीडिया को बताया था और कहा था कि वह पहलवानों की डाइट में हस्तक्षेप करने से लेकर उन्हें मिलने वाले स्पॉन्सरशिप का आधा पैसा भी ले लेते हैं.