दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के विशेषज्ञ, जो राष्ट्रीय चीता परियोजना संचालन समिति के सदस्य हैं, ने सुप्रीम कोर्ट को लिखे पत्र में कहा है कि परियोजना के वर्तमान प्रबंधन के पास ‘बहुत कम या कोई वैज्ञानिक प्रशिक्षण नहीं’ है और वह उनकी राय को नज़रअंदाज़ कर रहा है.
नई दिल्ली: दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के विशेषज्ञ, जो राष्ट्रीय चीता परियोजना संचालन समिति के सदस्य हैं, ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर भारत में परियोजना को संभालने के तौर-तरीकों के बारे में अपनी ‘गंभीर चिंताओं’ का जिक्र किया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को लिखा है कि ‘परियोजना की नवगठित परिचालन समिति (स्टीयरिंग कमेटी) द्वारा विशेषज्ञों की राय को नजरअंदाज किया जा रहा है.’
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, 15 जुलाई की तारीख के पत्र पर दक्षिण अफ़्रीकी पशुचिकित्सा वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. एड्रियन टॉर्डिफ ने अपने सहयोगियों- चीता विशेषज्ञ विंसेंट वैन दार मर्व और वन्यजीव पशुचिकित्सकों- डॉ. एंडी फ्रेजर और डॉ. माइक टॉफ्ट की ओर से हस्ताक्षर किए थे.
विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि परियोजना के वर्तमान प्रबंधन के पास ‘बहुत कम या कोई वैज्ञानिक प्रशिक्षण नहीं’ है और वह उनकी राय को नजरअंदाज कर रहा है. उन्होंने लिखा कि वे बहुप्रतीक्षित परियोजना के लिए ‘महज दिखावा’ (विंडो ड्रेसिंग) बन गए हैं.
विशेषज्ञों ने यह भी आरोप लगाया कि चीतों की कुछ मौतें ‘बेहतर निगरानी’ और समय पर इलाज व देखभाल करके रोकी जा सकती थीं.
हालांकि, अब कहा जा रहा है कि वैन डर मर्व और फ्रेजर ने खुद को इस पत्र से अलग कर लिया है.
टॉर्डिफ के पत्र में कहा गया, ‘कूनो से चीतों और उनकी देखभाल के संबंध में बहुत कम जानकारी मिल रही है. हालांकि हमें चीता परियोजना संचालन समिति में अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन उनके द्वारा हमसे कभी परामर्श नहीं किया गया या उनकी किसी बैठक में आमंत्रित नहीं किया गया.’
इसके परिणामों का उदाहरण देते हुए विशेषज्ञों ने विस्तार से बताया कि कैसे कूनो की फील्ड टीम ने कैसे गलत तरीके से यह कल्पना कर ली कि 11 जुलाई को सुबह लगभग 11 बजे गर्दन के पीछे घावों के साथ देखा गया नर चीता, एक मादा चीता द्वारा घायल किया गया था, जो एक बेहद ही असंभावित-सा परिदृश्य था.
बता दें कि बीते माह 11 जुलाई अफ्रीका से लाए गए नर चीते तेजस की मौत हो गई थी, उसकी गर्दन के ठीक ऊपर एक गहरा घाव देखा गया था. वन्यजीवों के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) और मध्य प्रदेश के मुख्य वन्यजीव वार्डन ने इसे चीतों की आपसी लड़ाई का नतीजा बताते हुए कहा था कि तेजस की मौत का कारण नामीबियाई मादा चीता हो सकती है.
टॉर्डिफ के पत्र में आगे कहा गया है, ‘कूनो के कर्मचारियों ने घायल नर चीते को छोड़कर, माता चीते का पता लगाने का फैसला किया ताकि जांचा जा सके कि क्या वह भी घायल है. उस दौरान नर चीते की हालत बिगड़ गई और बिना इलाज के ही 11 जुलाई को दोपहर 2 बजे उसकी मौत हो गई.’
विशेषज्ञों ने दावा किया कि उन्हें इस संबंध में अगली सुबह जानकारी मिली, जब पोस्टमार्टम का सारांश और कुछ तस्वीरें साझा की गईं.
उन्होंने लिखा, ‘अगर उन्हें तस्वीरें दिखाई गई होतीं या ‘घावों’ का विवरण दिया गया होता, तो उन्होंने अधिकारियों को अन्य पशुओं (चीतों) के लिए जोखिम को कम करने के लिए कार्रवाई करने के लिए सचेत कर दिया होता. इसके बजाय, हमें काफी हद तक इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया और जो कुछ हुआ था उसे समझने के लिए हमें जानकारी मांगनी पड़ी.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, टॉर्डिफ के पत्र में यह भी दावा किया गया कि विशेषज्ञों को तब से दरकिनार कर दिया गया है जब से परियोजना के वास्तुकार माने जाने वाले डॉ. वाईवी झाला को पिछले साल ‘सेवानिवृत्ति के लिए मजबूर’ किया गया था.
इस बीच, इंडिया टुडे के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट को लिखे इस पत्र में नामित दो विदेशी विशेषज्ञों ने इसे वापस लेने की मांग की है और दावा किया है कि उन्होंने इसे लिखने के लिए कभी सहमति नहीं दी थी.
विदेशी विशेषज्ञ विंसेंट वैन दार मर्व और डॉ. एंडी फ्रेजर ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति को एक ईमेल लिखकर कहा है कि यह पत्र उनकी सहमति के बिना भेजा गया था. ईमेल में उन्होंने यह भी कहा है कि वे हालिया मीडिया रिपोर्ट्स में उनका नाम देखकर हैरान हैं.
यह ईमेल 20 जुलाई को विंसेंट वैन दार मर्व द्वारा भेजा गया था, जिसमें डॉ. एंडी फ्रेजर को भी मार्क किया गया. ईमेल में लिखा गया, ‘हमें पता चला है कि एक पत्र प्रसारित हो रहा है, जो सुप्रीम कोर्ट को प्रोजेक्ट चीता के बारे में हमारी चिंताओं का संकेत दे रहा है. कृपया जान लें कि डॉ. एंडी फ्रेजर और मैं सुप्रीम कोर्ट को भेजे जा रहे इस पत्र के समर्थन में नहीं थे.’
ईमेल के जरिये उन्होंने अनुरोध किया है कि पत्र को प्रेस या सुप्रीम कोर्ट के साथ साझा न किया जाए और इसे वापस ले लिया जाए. इसके अलावा, यदि यह संभव नहीं है, तो उन्होंने पत्र से अपना नाम हटाने का अनुरोध किया है.
इसी बीच, नामीबिया के चीता संरक्षण कोष की कार्यकारी निदेशक डॉ. लॉरी मार्कर द्वारा एक और पत्र जारी किया गया, जिसमें भी इसी तरह के मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है. उन्होंने कहा कि अगर उनकी बात सुनी जाए तो वे चीता पुनर्वास में और अधिक मदद कर सकते हैं.
बता दें कि अफ्रीका से मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में लाए गए चीतों में से पिछले चार महीनों में नौ की मौत हो चुकी है, इनमें तीन शावक भी शामिल हैं. आखिरी मौत बुधवार (2 अगस्त) की सुबह हुई है.
गौरतलब है कि पिछले माह 14 जुलाई को सूरज नामक चीते की मौत हुई थी. सूरज की मौत के ठीक तीन दिन पहले 11 जुलाई को तेजस नामक चीते की मौत हो गई थी.
ज्ञात हो कि 25 मई को दो चीता शावकों की मौत हो गई थी. मध्य प्रदेश के वन विभाग ने कहा था कि इस साल मार्च के अंतिम सप्ताह में ज्वाला नामक मादा चीते ने ने दो और शावकों को जन्म दिया, जिनकी मौत हो गई. इसके पहले 23 मई को एक शावक की मौत हुई थी.
उससे पहले 9 मई को इसी पार्क में भारत लाए गए तीसरे अफ्रीकी मादा चीते ‘दक्षा’ की मौत हो गई थी. ऐसा माना जाता है कि उनके बाड़े में सहवास (Mating) के दौरान एक नर चीते द्वारा पहुंचाई गई चोट मृत्यु की वजह थी.
इससे पहले 27 मार्च को (नामीबिया से लाई गई) साशा नाम की एक मादा चीता की किडनी की बीमारी और 23 अप्रैल को (दक्षिण अफ्रीका से लाए गए) उदय नामक चीते की कार्डियो-पल्मोनरी फेल्योर के कारण मौत हो गई थी.
इसी बीच, 18 मई को सुप्रीम कोर्ट ने दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से कूनो लाए गए तीन चीतों की दो महीने से भी कम समय में मौत पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी. शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से उन्हें राजस्थान स्थानांतरित करने पर विचार करने को कहा था.
मालूम हो कि सितंबर 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर पहली खेप में दक्षिण अफ्रीकी देश नामीबिया से 8 चीतों को कूनो लाया गया था. इसके बाद 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते कूनो लाए गए थे. इसी दौरान पहली खेप में नामीबिया से आई ‘ज्वाला’ ने चार शावकों को जन्म दिया था.