ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन और एडिटर्स गिल्ड मणिपुर ने राज्य में जारी हिंसा पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट को ‘पक्षपाती और प्रायोजित’ बताते हुए मांग की है कि गिल्ड अपने सोशल मीडिया हैंडल और वेबसाइट से रिपोर्ट, मणिपुर के पत्रकारों के ख़िलाफ़ ‘अपमानजनक’ बयान हटाए.
नई दिल्ली: मणिपुर के पत्रकार संघ और राज्य के एडिटर्स गिल्ड ने मणिपुर जातीय हिंसा के मीडिया कवरेज पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) की रिपोर्ट में ‘केवल एक विशेष समुदाय के पक्ष में’ कथित ‘पक्षपाती और प्रायोजित’ जानकारी देने का आरोप लगाते हुए उन्हें कानूनी नोटिस भेजा है.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की तीन सदस्यीय फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने चार दिनों तक हिंसाग्रस्त मणिपुर में रहने के बाद 4 सितंबर को रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन (एएमडब्ल्यूजेयू) और एडिटर्स गिल्ड ऑफ मणिपुर (ईजीएम) द्वारा ईजीआई को भेजे गए नोटिस में कहा गया है कि जब मणिपुर सामान्य स्थिति में वापस आ रहा था, तब ईजीआई की रिपोर्ट के कारण हिंसा में वृद्धि हुई.
नोटिस में कहा गया है, ‘ईजीआई जैसे संपादकों के शीर्ष निकाय से मणिपुर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित करते समय बहुत सावधान रहने की उम्मीद की जाती है… तथाकथित रिपोर्ट ने उस आग में घी डालने का काम किया है जो मणिपुर में चार महीने से अधिक समय से जल रही है.’
एएमडब्ल्यूजेयू और ईजीएम ने नोटिस में कहा, ‘रिपोर्ट ने न केवल मणिपुर में हिंसा को बढ़ावा दिया… बल्कि झूठी खबरें फैलाईं, जो दुर्भावनापूर्ण, पक्षपाती, प्रायोजित और मनगढ़ंत थीं… बाकी दुनिया के सामने केवल एक विशेष समुदाय का पक्ष लिया गया, जो पूरी तरह से पत्रकारिता के सिद्धांतों का उल्लंघन है.’
उन्होंने राज्य सरकार को मणिपुर वन विभाग के एक पत्र का भी हवाला दिया जिसमें ईजीआई की फैक्ट-फाइंडिंग टीम द्वारा ‘आरक्षित’ और ‘संरक्षित’ वनों की स्थिति पर लगाए गए आरोपों से इनकार किया गया है. प्रधान मुख्य वन संरक्षक एसएस छाबड़ा ने 8 सितंबर को मणिपुर सरकार को लिखे सात पन्नों के पत्र में कहा था कि रिपोर्ट में वन विभाग के खिलाफ लगाए गए आरोप ‘गलत’ और ‘असत्यापित’ थे और उन्होंने ‘गलत सूचना दी…’ और वन विभाग की प्रतिष्ठा को धूमिल किया.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नोटिस में ईजीआई अध्यक्ष सीमा मुस्तफा और फैक्ट फाइंडिंग टीम के तीन सदस्यों- वरिष्ठ पत्रकार सीमा गुहा, संजय कपूर और भारत भूषण को संबोधित किया गया है.
इसमें मांग की गई है कि ईजीआई के सोशल मीडिया हैंडल और वेबसाइटों से फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट, मणिपुर के पत्रकारों के खिलाफ लगाए गए अपमानजनक बयानों को हटाए और ईजीआई 15 दिनों के भीतर इस संबंध में स्पष्टीकरण भी जारी करे, ऐसा न करने पर गिल्ड के खिलाफ कानूनी कार्रवाई (सिविल, आपराधिक या दोनों) की जाएगी.
एएमडब्ल्यूजेयू और ईजीएम की ओर से कानूनी नोटिस में कहा गया है कि बिना किसी आधार और उचित सत्यापन के रिपोर्ट का प्रकाशन ‘बेहद दुर्भाग्यपूर्ण’ था.
इसमें कहा गया है कि ईजीआई जैसे प्रतिष्ठित संगठन के लिए इंफाल के मीडिया को ‘मेइतेई मीडिया’ के रूप में ब्रांड करना बहुत दुर्भाग्य की बात है, जो न केवल ‘अप्रिय’ है, बल्कि ‘स्थानीय मीडिया की गरिमा और विश्वसनीयता को कम करने के लिए जानबूझकर किया गया प्रयास भी है.’
इसमें यह भी कहा गया है कि तथाकथित रिपोर्ट, जो विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर व्यापक रूप से प्रसारित है, ‘गलत तथ्यों और डेटा, झूठी खबरों, दुर्भावनापूर्ण, पक्षपातपूर्ण, प्रायोजित और केवल एक विशेष समुदाय के पक्ष में मनगढ़ंत खबरों पर आधारित जानकारी से भरी है.’
यह कहते हुए कि रिपोर्ट में गलत प्रतिनिधित्व ने राज्य में पत्रकार समुदाय की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है, पत्र में उल्लेख किया गया है कि भारत और विदेशों के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले मणिपुर के 33 व्यक्तियों के एक समूह ने ईजीआई के अध्यक्ष को पत्र लिखकर मांग की है रिपोर्ट को ख़ारिज किया जाए.
पत्र में यह मांग भी की गई कि ईजीआई एक अधिक सक्षम टीम तैनात करे, जिसे सभी प्रभावित समुदायों से परामर्श करना चाहिए और व्यापक शांति लाने की प्रक्रिया में योगदान देना चाहिए क्योंकि वर्तमान रिपोर्ट तटस्थता और निष्पक्षता बनाए नहीं रखती है और गलतबयानी और तथ्यात्मक त्रुटियों से भरी है.
उल्लेखनीय है कि गिल्ड की रिपोर्ट में दावा किया गया कि मणिपुर में चल रहे संकट पर मीडिया कवरेज एकतरफा था और राज्य नेतृत्व पर संघर्ष के दौरान पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाया था.
राज्य की हिंसा पर गिल्ड की रिपोर्ट में कहा गया था कि मणिपुर से आ रही संघर्ष की कई ख़बरें और रिपोर्ट्स ‘एकतरफा’ थीं. गिल्ड की रिपोर्ट में कहा गया था कि इंफाल स्थित मीडिया ‘मेईतेई मीडिया में तब्दील हो गया था.’
रिपोर्ट में कहा गया था, ‘जातीय हिंसा के दौरान मणिपुर के पत्रकारों ने एकतरफा रिपोर्ट लिखीं. सामान्य परिस्थितियों में रिपोर्ट्स को संपादकों या स्थानीय प्रशासन, पुलिस और सुरक्षा बलों के ब्यूरो प्रमुखों द्वारा क्रॉस-चेक और देखा जाता है, हालांकि संघर्ष के दौरान ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं था.’
रिपोर्ट में आगे कहा गया था, ‘ये मेईतेई मीडिया बन गया था. ऐसा लगता है कि संघर्ष के दौरान मणिपुर मीडिया के संपादकों ने सामूहिक रूप से एक-दूसरे से परामर्श करके और एक समान नैरेटिव पर सहमत होकर काम किया, मसलन किसी घटना की रिपोर्ट करने के लिए एक समान भाषा पर सहमति, भाषा के विशिष्ट तरह से इस्तेमाल या यहां तक कि किसी घटना की रिपोर्टिंग नहीं करना. गिल्ड की टीम को बताया गया कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वे पहले से ही अस्थिर स्थिति को और अधिक भड़काना नहीं चाहते थे.’
टीम ने राज्य में लगाए गए इंटरनेट शटडाउन की भी आलोचना की थी और कहा था कि इससे ‘हालात और खराब हुए’ और ‘मीडिया पर भी असर पड़ा, क्योंकि बिना किसी संचार लिंक के एकत्र की गई स्थानीय खबरें स्थिति के बारे में कोई संतुलित दृष्टिकोण देने के लिए पर्याप्त नहीं थीं.’
ज्ञात हो कि राज्य में भड़की हिंसा की मीडिया कवरेज पर रिपोर्ट के संबंध में ईजीआई अध्यक्ष सीमा मुस्तफा और फैक्ट-फाइंडिंग टीम के तीन सदस्यों- वरिष्ठ पत्रकार सीमा गुहा, भारत भूषण और संजय कपूर के खिलाफ पहले ही राज्य पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज की जा चुकी है और मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है.
इस महीने की शुरुआत में कोर्ट ने रिपोर्ट जारी होने के बाद ईजीआई और तीन सदस्यों को उनके खिलाफ मणिपुर में दर्ज दो आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की थी.
15 सितंबर की सुनवाई में सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने सदस्यों को दंडात्मक कार्रवाई से अंतरिम संरक्षण जारी रखने की बात कहते हुए जोड़ा था कि गिल्ड के ख़िलाफ़ केस अभिव्यक्ति की आज़ादी के ख़िलाफ़ है. गिल्ड मणिपुर हिंसा के ‘पक्षपातपूर्ण मीडिया कवरेज’ के बारे में अपनी रिपोर्ट में सही या गलत हो सकता है, लेकिन अपने विचार रखने के लिए उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है.