पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि चारों शंकराचार्य अपनी गरिमा बनाकर रखते हैं. यह अहंकार का मामला नहीं है. क्या हमसे उम्मीद की जाती है कि जब प्रधानमंत्री रामलला की मूर्ति स्थापित करेंगे तो हम बाहर बैठेंगे और तालियां बजाएंगे? चारों शंकराचार्य राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से इनकार कर चुके हैं.
नई दिल्ली: पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने स्पष्ट किया है कि अयोध्या में राम मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह में भाग न लेने का निर्णय राम मूर्ति की स्थापना के दौरान स्थापित परंपराओं का पालन न करना है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा, ‘(चारों) शंकराचार्य अपनी गरिमा बनाकर रखते हैं. यह अहंकार का मामला नहीं है. क्या हमसे उम्मीद की जाती है कि जब प्रधानमंत्री रामलला की मूर्ति स्थापित करेंगे तो हम बाहर बैठेंगे और तालियां बजाएंगे? एक ‘धर्मनिरपेक्ष’ सरकार की मौजूदगी का मतलब परंपरा का विनाश नहीं है.’
मालूम हो कि चारों शंकराचार्यों ने 22 जनवरी को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होने का फैसला किया है.
बीते 13 जनवरी को शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने इस समारोह में भाग नहीं लेने के अपने रुख को दोहराते हुए कहा था कि धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में राजनीतिक हस्तक्षेप उचित नहीं है और यहां तक कि संविधान भी इसकी अनुमति नहीं देता है.
बीते 12 जनवरी को गुजरात के द्वारका स्थित शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने कहा था कि वह विवादों और ‘धर्म विरोधी ताकतों’ के जुड़े होने के कारण अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होंगे.
इससे पहले पुरी के गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती और ज्योतिष्पीठ (उत्तराखंड) के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा था कि वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे, क्योंकि एक अधूरे मंदिर के अभिषेक ने शास्त्रों का उल्लंघन किया है.
कार्यक्रम में ‘मुख्य अतिथि’ के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी ने प्रस्तावित प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को लेकर वरिष्ठ संतों के बीच चिंताएं पैदा कर दी हैं.
इस बीच कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने दावा किया है कि अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर आपत्ति जताने के बाद शंकराचार्यों ने 22 जनवरी के कार्यक्रम में शामिल न होने का फैसला किया है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के निमंत्रण को ठुकराते हुए राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने कहा कि चूंकि शंकराचार्य (धार्मिक गुरु) भी राम मंदिर कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे, इससे पता चलता है कि इसमें शामिल नहीं होने का कारण महत्वपूर्ण है.
गहलोत ने कहा, ‘जब उन्होंने इस आयोजन का राजनीतिकरण किया और निर्णय लिया, तो हमारे शंकराचार्य, जो सनातन धर्म के शीर्ष पर हैं और हमारा मार्गदर्शन करते हैं, ने कहा कि वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे. यह एक ऐसा मुद्दा बन गया है कि सभी शंकराचार्य कह रहे हैं कि वे इसका बहिष्कार करेंगे. अगर शंकराचार्य ऐसा कह रहे हैं, तो इसका अपना महत्व है.’
उन्होंने कहा, ‘प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए एक प्रणाली और अनुष्ठानों का सेट है. यदि यह आयोजन धार्मिक है, तो क्या यह चार पीठों के शंकराचार्यों के मार्गदर्शन में हो रहा है? चारों शंकराचार्यों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि एक अधूरे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जा सकती. अगर ये आयोजन धार्मिक नहीं है तो राजनीतिक है.’
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री और आम आदमी पार्टी नेता सौरभ भारद्वाज ने आरोप लगाया कि भाजपा राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पर राजनीतिक ठप्पा लगाकर देश की दो तिहाई आबादी को भगवान राम से अलग करने की कोशिश कर रही है.
उन्होंने कहा, ‘प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए एक प्रणाली और अनुष्ठानों के कई चरण होते हैं. अगर यह आयोजन धार्मिक है, तो क्या यह चार पीठों के शंकराचार्यों के मार्गदर्शन में हो रहा है? चारों शंकराचार्यों ने स्पष्ट कहा है कि अधूरे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जा सकती. अगर ये आयोजन धार्मिक नहीं है तो ये राजनीतिक है.’
मालूम हो कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेने से इनकार कर दिया है.
इन दलों का कहना है कि यह एक सरकार-प्रायोजित राजनीतिक कार्यक्रम है, जो लोकसभा चुनावों से पहले चुनावी विचारों के लिए भाजपा और आरएसएस गठबंधन द्वारा आयोजित किया जा रहा है.
दलों का आरोप है कि भाजपा और आरएसएस ने मिलकर इसे अपने चुनावी लाभ के लिए एक राजनीतिक कार्यक्रम बना दिया है.