एनसीईआरटी की किताबों से नाम न हटाने को लेकर योगेंद्र यादव, सुहास पलशिकर ने मुक़दमे की चेतावनी दी

योगेंद्र यादव और सुहास पलशिकर ने एनसीईआरटी निदेशक को लिखे पत्र में कहा कि वे दोनों नहीं चाहते कि एनसीईआरटी 'उनके नामों के पीछे छिप जाए... और छात्रों को राजनीति विज्ञान की ऐसी किताबें दे जो उन्हें राजनीतिक रूप से पक्षपाती, अकादमिक रूप से अक्षम्य और शैक्षणिक रूप से अनुपयुक्त लगती हैं.'

सुहास पलशिकर और योगेंद्र यादव. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: शिक्षाविदों योगेंद्र यादव और सुहास पलशिकर ने सोमवार को कहा कि अगर एनसीईआरटी ने योगदानकर्ताओं की सूची से उनके नाम नहीं हटाए वो वे उन पर मुकदमा करेंगे.

ज्ञात हो कि यादव और पलशिकर ने पिछले साल भी इसी तरह का अनुरोध भेजा था, जिसके बाद 33 शिक्षाविदों ने भी एनसीईआरटी से स्कूली पाठ्यपुस्तकों में किए गए बदलावों के कारण अपने-अपने नाम हटाने के लिए कहा था.

डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, अब एनसीईआरटी निदेशक डीएस सकलानी को लिखे पत्र में शिक्षाविदों ने कहा कि उनके पिछले पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि उनके नाम पाठ्यपुस्तकों की सॉफ्ट कॉपी के साथ-साथ प्रिंट संस्करणों में भी इस्तेमाल न किए जाएं.

पत्र में कहा गया है, ‘इस मेल के बाद राजनीति विज्ञान में पाठ्यपुस्तक बनाने वाले अधिकांश स्कॉलर्स ने एक सामूहिक पत्र लिखकर यही अनुरोध किया था. एनसीईआरटी ने हमारे अनुरोध पर कार्रवाई नहीं की, न ही हमें वापस लिखने की ज़रूरत समझी.’

योगेंद्र यादव ने बताया कि उन्हें यह घटनाक्रम ‘अजीब’ लगा. यादव ने कहा, ‘कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपना नाम प्रकाशन में छपवाने के लिए लड़ते हैं, हम इसके बिल्कुल उलट मांग कर रहे हैं… वे हमें अपना नाम छपवाने के लिए कैसे मजबूर कर सकते हैं? जब हमने उनसे पिछली बार पूछा था, तो उन्होंने हमें कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि सार्वजनिक रूप से कहा कि वे हमें सिर्फ पहचान दे रहे हैं.’

शिक्षाविदों ने यह भी कहा कि पत्र के बावजूद एनसीईआरटी ने इन छह पाठ्यपुस्तकों के नए संस्करण को प्रकाशित और वितरित किया, लेकिन उनसे उनके नाम नहीं हटाए.

उन्होंने आगे लिखा, ‘हमें यह जानकर भी दुख हुआ कि एनसीईआरटी ने इन पाठ्यपुस्तकों को अंधाधुंध तरीके से विकृत करने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा दिया है. हम दोनों- मूल पाठ्यपुस्तकों के मुख्य सलाहकार के रूप में – पाठ्यपुस्तकों को विकृत करने की इस अनैतिक, गैर-शैक्षणिक और अवैध प्रथा के प्रति अपनी कड़ी असहमति दर्ज करा चुके हैं, जो लेखकों के बौद्धिक संपदा के अधिकार और छात्रों के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अधिकार दोनों का उल्लंघन करती है.’

पत्र में उन्होंने यह भी कहा कि वे दोनों नहीं चाहते कि एनसीईआरटी ‘हमारे नामों के पीछे छिप जाए’… छात्रों को राजनीति विज्ञान की ऐसी पाठ्यपुस्तकें सौंपना जो हमें राजनीतिक रूप से पक्षपाती, अकादमिक रूप से अक्षम्य और शैक्षणिक रूप से अनुपयुक्त लगती हैं.’

मालूम हो कि बीते दिनों ही एनसीईआरटी की नई किताबें कई संशोधनों के साथ बाजार में आई हैं और उन पर आपत्ति जाहिर की जा रही है.

एनसीईआरटी की कक्षा 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की किताब में बाबरी मस्जिद को ‘तीन गुंबद वाली संरचना’ बताया गया है. पहले इस किताब में अयोध्या खंड चार पृष्ठ में था, जिसे घटाकर अब दो पृष्ठ में समेट दिया गया है. नए संस्करण से कई अन्य महत्वपूर्ण विवरण भी हटाए गए हैं.

वहीं, कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में कहा गया है कि वोट बैंक की राजनीति ‘अल्पसंख्यक तुष्टिकरण’ से जुड़ी है और इसका अर्थ यह है कि राजनीतिक पार्टियां ‘नागरिकों की समानता के सिद्धांतों की अवहेलना कर अल्पसंख्यक समूह के हितों को प्राथमिकता देती हैं.

गौरतलब है कि 2014 के बाद से एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों में ये चौथी बार संशोधन हुआ है. इससे पहले 2017 में एनसीईआरटी ने ‘हाल की घटनाओं को प्रतिबिंबित करने की जरूरत’ का हवाला देते हुए पाठ्यक्रम संशोधित किया था.

2018 में संस्था ने ‘पाठ्यक्रम के बोझ’ को कम करने के लिए संशोधन शुरू किया था और फिर तीन साल से भी कम समय के बाद छात्रों को कोविड-19 के कारण सीखने में आई रुकावटों से उबरने में मदद करने का हवाला देते हुए पाठ्यक्रम में बदलाव किए गए थे.

एनसीईआरटी ने पिछले साल मई महीने में कक्षा 12 के राजनीति विज्ञान की किताब से ‘एक अलग सिख राष्ट्र’ और ‘खालिस्तान’ के संदर्भों को हटाने की घोषणा की थी. इससे पहले एनसीईआरटी ने पाठ्यपुस्तकों से कुछ हिस्सों को हटाने को लेकर विवाद के बीच भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के लोकप्रिय किसान आंदोलन से संबंधित हिस्से को भी हटा दिया था.

आंदोलन का उल्लेख कक्षा 12वीं की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में ‘राइज़ ऑफ़ पॉपुलर मूवमेंट्स’ नामक अध्याय में किया गया था.  हटाए गए हिस्से में बताया गया था कि यूनियन 80 के दशक के किसान आंदोलन में अग्रणी संगठनों में से एक था.

इसी तरह एनसीईआरटी की कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक ‘इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन ऐट वर्क’ के पहले अध्याय से देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के संदर्भ और उसी पाठ्यपुस्तक के अध्याय 10 में उल्लिखित जम्मू कश्मीर के भारत में विलय से जुड़ी वह शर्त हटा दी गई है, जिसमें इसे संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्त बनाए रखने की बात कही गई थी.

इस कड़ी में 12वीं कक्षा की इतिहास की किताबों से मुगलों और 2002 के गुजरात दंगों पर सामग्री को हटाना और महात्मा गांधी पर कुछ अंश हटाया जाना शामिल है.

2022 में एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम से पर्यावरण संबंधी अध्याय हटा दिए थे, जिस पर शिक्षकों ने विरोध जताया था.

इससे पहले कोविड के समय एनसीईआरटी ने समाजशास्त्र की किताब से जातिगत भेदभाव से संबंधित सामग्री हटाई थी. इससे पहले कक्षा 12 की एनसीईआरटी की राजनीतिक विज्ञान की किताब में जम्मू कश्मीर संबंधी पाठ में बदलाव किया था.

वहीं, कक्षा 10वीं की इतिहास की किताब से राष्ट्रवाद समेत तीन अध्याय हटाए थे. उसके पहले 9वीं कक्षा की किताबों से त्रावणकोर की महिलाओं के जातीय संघर्ष समेत तीन अध्याय हटाए गए थे.