बंगनामा: कॉनटाई के अलबेले किस्से

मिदनापुर ज़िले के कॉनटाई सबडिवीज़न के गांव में आज़ादी की लड़ाई के दौरान ब्रिटिश पुलिस के ख़िलाफ़ नागरिक इतनी दृढ़ता से खड़े हुए और 'पिछाबो नी' यानी 'पीछे नहीं हटेंगे' का नारा दिया कि गांव का नाम ही पीछाबोनी हो गया. बंगनामा की अठारहवीं क़िस्त.

बंगनामा: कलकत्ते में क्रिसमस

कलकत्ता में बड़े दिन के उत्सव की सबसे ख़ास बात यह है कि इसे जोश के साथ मनाने वाले सारे लोग ईसाई धर्म के अनुयायी नहीं हैं, ठीक उसी तरह जैसे दुर्गा पूजा के दौरान पूजा पंडालों में मां दुर्गा को नमन करने वाले सभी लोग हिंदू धर्म के अनुगामी नहीं होते. बंगनामा की सत्रहवीं क़िस्त.

बंगनामा: बंगाली पिकनिक मनाते नहीं, रचाते हैं

आप किसी बड़े कस्बे, या छोटे-बड़े शहर के रहने वाले हों या कलकत्ता के बाशिंदे, सर्दियों के आते ही उनका मन मचलने लगता. पश्चिम बंगाल में पंखों के बंद होते और बंदर टोपी के निकलते ही पिकनिक रचाने की इच्छा कुलाचें भरने लगती है. बंगनामा स्तंभ की सोलहवीं क़िस्त.

बंगनामा: बगैर ‘केमोन आचेन’ के ‘नमस्कार’ अधूरा

बंगालियों को अपनी बीमारी के बारे में बात करने तथा औरों से साझा करने में कोई झिझक नहीं होती. अपनी बीमारी को साझा करते हुए वह कुछ और भी बताते जाते हैं. मसलन, आप किसी व्यक्ति से तीसरी बार मिलें, और वह आपको अपने मर्ज़ और उनकी दवाएं गिनवा दे तो जानिए कि आपने उनका विश्वास अर्जित कर लिया है. बंगनामा स्तंभ की पंद्रहवीं क़िस्त.

बंगनामा: लकड़ी की सीढ़ी चढ़ता विकास

दुमंजिला पंचायत भवन के निर्माण में जब सरकारी राशि पूरी खर्च हो गई और छत पर बने कमरों तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनाने का पैसा नहीं बचा, तो लकड़ी की नसैनी टिका दी गई. बंगनामा स्तंभ की चौदहवीं क़िस्त.

बंगनामा: बंगाली विविधता के दो पहलू

घोटी और बांगाल समुदाय कई विषयों पर एकमत हो सकते हैं पर जिस बात पर सहमति लगभग असंभव है वह है फुटबॉल का मैदान. सबसे बड़ी टीम कौन-मोहन बागान या ईस्ट बंगाल? बंगनामा स्तंभ की तेरहवीं क़िस्त.

बंगनामा: गांव, घर और सपना

बतौर एक युवा अधिकारी मैं चाहता था कि सरकारी राशि से बनते ग्रामीण घरों का निर्माण नए नक्शों के अनुसार हो, लेकिन प्रत्येक सपना कहां सच हो पाता है. बंगनामा स्तंभ की बारहवीं क़िस्त.

बंगनामा: बंगाली विचार की वाहक लिटिल मैगज़ीन

बंगाल में लिटिल मैगज़ीन की शुरुआत पिछली शताब्दी के तीसरे दशक में 'कल्लोल' के साथ हुई. आरंभ से ही ये पत्रिकाएं लीक से हटकर पनपते प्रयोगात्मक तथा वैकल्पिक सोच की वाहन बनीं और बाद में वाम विचारधारा से भी प्रभावित हुईं. बंगनामा स्तंभ की ग्यारहवीं क़िस्त.

बंगनामा: कलकत्ते पर दस्तक देती फीकी दुर्गा पूजा

दुर्गा पूजा को अब तीन सप्ताह भी नहीं रह गए हैं लेकिन कलकत्ता के बाज़ार लगभग ख़ाली हैं. एक जूनियर डॉक्टर के सामूहिक बलात्कार और हत्या का जन आक्रोश रास्तों पर बह रहा है, चौराहों पर उमड़ रहा है. बंगनामा स्तंभ की दसवीं क़िस्त.

बंगनामा: हम्पी के प्रांगण में बंगाल के फूल

हम्पी जाते वक्त विजयनगर साम्राज्य की कलात्मक राजधानी की छवि मन में थी, लेकिन यह उम्मीद नहीं थी कि वहां पश्चिम बंगाल की झलक दिख जाएगी. बंगनामा स्तंभ की आठवीं क़िस्त.

बंगनामा: पाड़ा क्लबों का इतिहास और राजनीतिकरण

बंगाल के पाड़ा क्लबों की प्रेरणा ब्रिटिश राज के यूरोपियन क्लब थे. आज़ादी के उपरांत शहरी इलाक़ों में जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती गई, ये स्थानीय क्लब हरेक मुहल्ले में युवाओं की प्रिय जगह बन गए. बंगनामा स्तंभ की सातवीं क़िस्त.

बंगनामा: झाल मूढ़ी का तड़का और आर्थिकी

झाल मूढ़ी बंगाल की खाद्य संस्कृति का एक प्रतीक है. बीते दशकों में मूढ़ी के उत्पादन और खपत दोनों में बढ़ोत्तरी हुई. लेकिन क्या इसके उत्पादकों की तरक्की हुई है? बंगनामा स्तंभ की छठी क़िस्त.

बंगनामा: आधी चुस्की चाय का रहस्य

भारत का एक चौथाई चाय उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है. यहां चाय पीने का पुराना रिवाज भी है. लेकिन अगर बंगाल के निवासियों को यह पेय इतना पसंद है तो इतने छोटे बर्तन में चाय क्यों पीते हैं? बंगनामा स्तंभ की पांचवीं क़िस्त.

बंगनामा: बंगाल के घर और पोखर

पोखर बंगाल की जीवन शैली का अभिन्न अंग है. घर की महिलाएं पोखर के जल से रसोई के बर्तन साफ़ करतीं और कई बार उसके पानी से खाना भी पकाती थीं. परिवार के सदस्य उसके जल से सुबह मंजन करते और दोपहर में उसमें स्नान भी.
बंगनामा स्तंभ की चौथी क़िस्त.