जो लोग विपक्ष पर राजनीति करने की तोहमत मढ़ रहे हैं, वे भी एक ख़ास तरह की राजनीति ही कर रहे हैं. जब वे किसी भी तरह अप्रिय सवालों को टालने की हालत में नहीं होते, तो चाहते हैं कि वे पूछे ही न जाएं!
मोदी सरकार ने किसानों से वार्ताओं के कई दौर चलाए, लेकिन इस शर्त के साथ कि ‘संसद द्वारा पारित’ कृषि क़ानूनों को कतई वापस नहीं लिया जाएगा, क्योंकि इससे संसद की सर्वोच्चता की हेठी हो जाएगी. जैसे कि अब तक जनाक्रोश भड़कने अथवा अनुपयोगी हो जाने पर जिन क़ानूनों को वापस लिया या निरस्त किया जाता रहा है, वे संसद के बजाय प्रधानमंत्री कार्यालय में पारित किए गए थे!
उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार मंत्रिमंडल विस्तार में पिछड़ी मानी जाने वाली जातियों के नेताओं को जगह देकर उनकी शुभचिंतक होने का डंका पीट रही है. हालांकि जानकारों का सवाल है कि यदि ऐसा ही है तो प्रदेश के यादवों, जाटवों और राजभरों पर उसकी यह कृपा क्यों नहीं बरसी?
राज्य में साढ़े चार साल का कार्यकाल पूरा कर लेने के बाद दोबारा जनादेश पाने की आकांक्षा में योगी आदित्यनाथ का बात-बात पर पूर्ववर्ती सरकारों पर बरसना सर्वथा अवांछनीय है क्योंकि जनता उनके किए का फल उन्हें पहले ही दे चुकी है.
पिछले दशकों में गुजरात भाजपा का सबसे सुरक्षित गढ़ रहा है और आज की तारीख़ में वह प्रधानमंत्री व गृहमंत्री दोनों का गृह प्रदेश है. अगर उसमें भी भाजपा को हार का डर सता रहा है तो ज़ाहिर है कि उसने अपनी अजेयता का जो मिथक पिछले सालों में बड़े जतन से रचा था, वह दरक रहा है.
किसान आंदोलन के अराजनीतिक होने को उसकी अतिरिक्त शक्ति के रूप में देखें, तो कह सकते हैं कि हिंदू-मुस्लिम सद्भाव की यह मुहिम राजनीतिक हानि-लाभ से जुड़ी न होने के कारण अधिक विश्वसनीय है और ज़्यादा उम्मीदें जगाती है.
अयोध्या में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अपने संबोधन में न अवध की ‘जो रब है वही राम है’ की गंगा-जमुनी संस्कृति की याद आई, न ही अपने गृहनगर कानपुर के उस रिक्शेवाले की, जिसे बीते दिनों बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने मुस्लिम होने के चलते पीटा और जबरन ‘जय श्रीराम’ बुलवाकर अपनी ‘श्रेष्ठताग्रंथि’ को तुष्ट किया था.
तिरंगे में लिपटे एक पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यपाल के पार्थिव शरीर के आधे हिस्से पर अपना झंडा प्रदर्शित करके भाजपा ने पूरी तरह साफ कर दिया कि राष्ट्रीय प्रतीकों के सम्मान के मामले में वह अब भी ‘ख़ुद मियां फजीहत दीगरे नसीहत' की अपनी नियति से पीछा नहीं छुड़ा पाई है.
ऐसी परंपरा-सी हो गई है कि पांच साल की कार्यावधि के चार साढ़े चार साल सोते हुई गुज़ार देने वाली सरकारें चुनाव वर्ष आते ही अचानक जागती हैं और तमाम ऐलान व वादे करती हुई मतदाताओं को लुभाने में लग जाती हैं. बीते दिनों विधानसभा में योगी आदित्यनाथ द्वारा की गई लोक-लुभावन घोषणाएं इसी की बानगी हैं.
75वें स्वतंत्रता दिवस पर नरेंद्र मोदी ने सौ लाख करोड़ रुपये वाली महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना का ऐलान कर विकास और रोजगार के संकट के समाधान का सब्ज़बाग दिखाया, तो भूल गए कि वे देश के सालाना बजट से भी बड़ी ऐसी ही योजना इससे पहले के स्वतंत्रता दिवस संदेशों में भी घोषित कर चुके हैं.
जब भी धर्मनिरपेक्षता को चुनाव मैदान से बाहर का रास्ता दिखाकर मुकाबले को असली-नकली, सच्चे-झूठे, सॉफ्ट या हार्ड हिंदुत्व के बीच सीमित किया जाता है, उसका कट्टर स्वरूप ही जीतता है. उत्तर प्रदेश में बसपा को इस एजेंडा पर आगे बढ़ने से पहले पिछले उदाहरणों को देखना चाहिए.
बीते 20 जुलाई को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से राज्यसभा में कहा गया कि कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की अप्रत्याशित मांग के बावजूद किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में इसके अभाव में किसी व्यक्ति के मरने की उसे जानकारी नहीं है. उसके पास इस बात की जानकारी भी नहीं है कि दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलित किसानों में से अब तक कितने अपनी जान गंवा चुके हैं.
विधानसभा चुनाव से कुछ ही महीनों पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रस्तावित जनसंख्या क़ानून को ज़रूरी बताते हुए कहा कि बढ़ती आबादी प्रदेश के विकास में बाधा बनी हुई है. पर क्या यह बाधा अचानक आ खड़ी हुई? अगर नहीं, तो इसे लेकर तब उपयुक्त कदम क्यों नहीं उठाए गए, जब उनकी सरकार के पास उसे आगे बढ़ाने का समय था?
ज़िला पंचायत चुनाव में मिली विजय पर फूली न समा रही भाजपा भूल रही है कि ज़िला पंचायत अध्यक्षों के अप्रत्यक्ष चुनाव में जीत किसी भी अन्य अप्रत्यक्ष चुनावों की तरह किसी पार्टी की ज़मीनी पकड़ या लोकप्रियता का पैमाना नहीं होती. कई बार तो संबंधित पार्टी को इससे मनोवैज्ञानिक बढ़त तक नहीं मिल पाती.
उत्तर प्रदेश की तीन दिन की यात्रा के दौरान बीते 25 जून को कानपुर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की विशेष ट्रेन के गुज़रने के दौरान रोके गए ट्रैफिक से लगे जाम में फंसकर इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के कानपुर चैप्टर की अध्यक्ष वंदना मिश्रा की जान चली गई थी. इसी दिन राष्ट्रपति की सुरक्षा व्यवस्था के लिए जा रहे सीआरपीएफ के तेज़ रफ़्तार वाहन ने एक बाइक को टक्कर मार दी थी, जिससे एक तीन साल की मासूम की मौत हो