विद्यार्थियों का मुख्य काम पढ़ाई करना है, लेकिन क्या देश की परिस्थितियों का ज्ञान और उनके सुधार सोचने की योग्यता पैदा करना उस शिक्षा में शामिल नहीं?
हिंदू युवा वाहिनी के संस्थापक से उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने तक का सफर.
धर्म व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है इसमें दूसरे का कोई दख़ल नहीं. न ही इसे राजनीति में घुसाना चाहिए क्योंकि यह सबको मिलकर एक जगह काम नहीं करने देता.
जम्मू कश्मीर में पिछले 15 वर्षों के दौरान तकरीबन तीन लाख 70 हजार हथियारों के लाइसेंस बांटे गए. जनसंख्या घनत्व के लिहाज़ से ये आंकड़ा देश में सबसे ज़्यादा है.
जन की बात की 21वीं कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद को दोनों पक्षों के आपस में सुलझा लेने पर की गई सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और हैपीनेस इंडेक्स में भारत की स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं.
दिल्ली चुनाव आयोग ने केजरीवाल सरकार को आम आदमी मोहल्ला क्लीनिक आदि सरकारी योजनाओं के विज्ञापनों से आम शब्द हटाने को कहा है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद से द वायर के कार्यकारी संपादक बृजेश सिंह की बातचीत.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने यूपी में पशु वधशालाएं बंद करने के चुनावी वादे पर बढ़ाया क़दम. पुलिस अफसरों को कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिया.
जन की बात की 20वीं कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ तमिलनाडु के सूखा पीड़ित किसान और देशभक्ति की आड़ में मुद्दों को भटकाने की राजनीति पर चर्चा कर रहे हैं.
बरेली कॉलेज में हिंदी विभाग की ओर आयोजित सेमिनार में बीएचयू के रिटायर्ड प्रोफेसर चौथीराम यादव पर गंभीर आरोप लगाते हुए एबीवीपी ने कहा था कि उन्होंने 'आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और गोलवलकर की तुलना आतंकी से की है.'
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा इस मामले पर जल्दी फैसला देने की मांग के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने इसे अदालत से बाहर सुलझाने की सलाह दी है.
सुप्रीम कोर्ट के नोटिस पर अपना पक्ष रखते हुए भारत निर्वाचन आयोग ने आपराधिक छवि वाले नेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध का समर्थन किया है.
मध्य प्रदेश के बहुचर्चित व्यापमं मामले के ह्विसिल ब्लोअर आशीष चतुर्वेदी से द वायर के कार्यकारी संपादक बृजेश सिंह की बातचीत.
एक स्पष्ट और निर्णायक हिंदुत्व को आर्थिक विकास की व्यापक परियोजना का अभिन्न अंग बना दिया गया है. आने वाले समय में इसके कई और आयाम हमारे सामने धीरे-धीरे प्रकट होंगे.
जब तक इरोम अनशन कर रही थीं, वे मणिपुरी जनता के लिए ‘आइकॉन’ थीं, संघर्ष का प्रतीक थीं, मणिपुर क्या, देश भर के लोग उन्हें ‘हीरो’ मानते थे, पर नायक तो वोट नहीं मांगते! ये कुछ उस तरह था कि भगवान ज़मीन पर आ जाएं, शादी करके आम ज़िंदगी बिताना चाहें या अपने लिए चुनाव में वोट मांगें. उनके ऐसा करते ही उनके भक्त घबरा जाते हैं.