प्रधानमंत्री की कई अनैतिक चुप्पियों पर राम नाम का पर्दा डाला जा रहा है, बिलक़ीस ने उसे हटा दिया

बिलक़ीस बानो की जीत भारत की उन महिलाओं और मर्दों को शर्मिंदा करती है जो इस केस पर इसलिए चुप हो गए क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी से सवाल करना पड़ता, उन्हें भाजपा से सवाल करना पड़ता.

राष्ट्रीय चेतना के पर्याय थे स्वामी अभयानंद

भारतीय स्वाधीनता संग्राम में कई विचारधाराओं के लोगों ने अपने-अपने तरीकों से मोर्चा लिया था. इनमें कई गुमनाम बने रहे, पर जिनके बारे में कुछ जानकारियां भीं थीं, उन पर भी बहुत कुछ नहीं लिखा जा सका. स्वामी अभयानंद भी उन्हीं में से एक थे.

22 जनवरी, 2024 एक तरह से राजनीति के सत की परीक्षा है

चार शंकराचार्यों ने राम मंदिर के आयोजन में शामिल होने से इनकार कर दिया है. उन्होंने ठीक ही कहा है कि यह धार्मिक आयोजन नहीं है, यह भाजपा का राजनीतिक आयोजन है. फिर यह सीधी-सी बात कांग्रेस या दूसरी पार्टियां क्यों नहीं कह सकतीं?

इस भयावह समय में फ़िलिस्तीनी कविता सारी मनुष्यता का शायद सबसे मार्मिक और प्रश्नवाचक रूपक है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: फ़िलिस्तीनी कविता में गवाही, हिस्सेदारी और ज़िम्मेदारी एक साथ है. यह कविता मातृभूमि को भूगोल भर में नहीं, कविता में बचाने की कोशिश और संघर्ष है. दुखद अर्थ में यह कविता मानो फ़िलिस्तीनियों की मातृभूमि ही होती जा रही है- वह ज़मीन जिस पर कब्ज़ा नहीं किया जा सकेगा.

अडानी-हिंडनबर्ग केस में कोर्ट का फ़ैसला न्याय है या कॉरपोरेट-राजनीति के गठजोड़ को मिली दोषमुक्ति?

हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडानी समूह पर लगे आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सेबी को बेदाग़ बताया गया है, जबकि समूह पर लगे आरोपों को लेकर सवाल सेबी के नियामक के बतौर कामकाज पर भी हैं. 

वाक्पटु होने का अर्थ ईमानदार होना नहीं है

सीजेआई का इंटरव्यू याद दिलाता है कि वाक्चातुर्य कला है और कोई उसका माहिर हो सकता है लेकिन क्या वह ईमानदारी से बोल रहा है? चतुर वक्ता पक्ष चुनते हैं या दिए हुए पक्ष के लिए तर्क जुटाते हैं. वे यह कहकर अपने कहे की ज़िम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते कि पक्ष उनका नहीं. हम जानते हैं कि उन्होंने अपना पक्ष चुना है.

क्या सपा का धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में मज़बूती से खड़े रहने का साहस जवाब दे गया है?

जो समाजवादी पार्टी 1993 के दौर से भी पहले से धर्म और राजनीति के घालमेल के पूरी तरह ख़िलाफ़ रही और धर्म की राजनीति के मुखर विरोध का कोई भी मौका छोड़ना गवारा नहीं करती रही है, अब उसके लिए धर्म अनालोच्य हो गया है.

प्रधानमंत्री की अयोध्या यात्रा और यहां की चमक-धमक से वंचित आचार्य नरेंद्र देव नगर रेलवे स्टेशन

प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटित अयोध्या धाम जंक्शन रेलवे स्टेशन से महज़ पांच किलोमीटर दूर स्थित इसी शहर में आने वाला आचार्य नरेंद्र देव नगर रेलवे स्टेशन बदहाल है. राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पहले जगमग कर रही अयोध्या की चमक इस स्टेशन तक नहीं पहुंच पाई है, जो सामान्य यात्री सुविधाओं, साफ-सफाई और रंग-रोगन से भी वंचित है.

उदय शंकर भारतीय नृत्य के पारंपरिक रूपाकारों के साथ साहसिक शास्त्रीयता विकसित करना चाहते थे

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: उदय शंकर का नृत्य कम से कम तीन विश्वासों से प्रेरित नृत्य था: शास्त्रीयता में विश्वास, आधुनिकता में विश्वास और आत्मविश्वास. जिन कलाकारों ने भारतीय नृत्य में पश्चिमी रुचि जगाई उनमें उदय शंकर का नाम पहली पंक्ति में आता है.

कांग्रेस की भीरुता के बिना राम मंदिर नहीं बन सकता था…

कांग्रेस के लोग यह सही कहते हैं कि उनके बिना राम मंदिर नहीं बन पाता. लेकिन यह गर्व की नहीं, लज्जा की बात होनी चाहिए. कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि 1949 में बाबरी मस्जिद में सेंधमारी नहीं हुई थी, सेंधमारी धर्मनिरपेक्ष भारतीय गणतंत्र में हुई थी.

हम अधकचरी परंपरा और अधकचरी आधुनिकता के बीच फंसा भारत होते जा रहे हैं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: नेहरू युग में संस्कृति और राजनीति, सारे तनावों और मोहभंग के बावजूद, सहचर थे जबकि आज संस्कृति को राजनीति रौंदने, अपदस्थ करने में व्यस्त है. बहुलता, असहमति आदि के बारे में सांस्कृतिक निरक्षरता का प्रसार हो रहा है. व्यंग्य-विनोद-कटूक्ति-कॉमेडी पर लगातार आपत्ति की जा रही है.

उपराष्ट्रपति जी! आप किसानों के आंदोलन और पहलवानों के प्रदर्शन के वक़्त भी जाट ही थे…

मिमिक्री की घटना को लेकर अपनी जाट पहचान का हवाला देने वाले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ जाट समुदाय की भागीदारी वाले दो हालिया आंदोलनों- किसानों के कृषि क़ानूनों के विरोध और पहलवानों के प्रदर्शन के दौरान ख़ामोश थे. अपने समुदाय का ज़िक्र उन्होंने वहीं किया है, जहां यह सत्तारूढ़ दल के लिए सुविधाजनक है.

ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का हालिया फैसला क्या न्यायसंगत कहा जा सकता है?

ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष की याचिकाएं ख़ारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू पक्ष की मस्जिद परिसर में मंदिर बहाली की याचिकाएं उपासना स्थल क़ानून के आधार पर ख़ारिज नहीं की जा सकतीं. हालांकि, एक सच यह है कि उपासना स्थल अधिनियम इसी तरह के मामलों से बचने के लिए लाया गया था.

क्यों अलग है उत्तर और दक्षिण भारत का राजनीतिक मिजाज़?

बीते दिनों आए विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोगों और उनके प्रतिनिधि चुनने की प्राथमिकताओं पर लंबी बहस चली, तमाम सवाल उठाए गए. क्या वजह है कि इन क्षेत्रों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मिजाज़ में इतना अंतर है?

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