स्वतंत्रता एक बार मिल गई स्थिति नहीं है; उसे लगातार समृद्ध करना और बचाना होता है

कभी कभार | अशोक वाजपेयी: स्वतंत्रता के अर्थ में बदलते परिवेश और समय के अनुसार कई और अर्थ जुड़ते रहे. अगर आज विचार करें तो लगेगा कि इस समय का अर्थ प्रमुख रूप से यह है कि हम झूठ-नफ़रत-हिंसा की मानसिकता और राजनीति की ग़ुलामी करने से मुक्त रहें.

दलित आरक्षण: वर्गीकरण का विरोध जातिगत हित साधने की कवायद है

कुछ मेहरबान तर्क दे रहे हैं कि वर्गीकरण से दलित एकता कमज़ोर होगी. दलितों में फूट पड़ जाएगी. इसका मतलब यह हुआ कि महादलित वाल्मीकि/मज़हबी, मुसहर, मादिगा जैसे दलित समुदाय एकता के नाम पर कभी यह सवाल न करें कि वे आगे की पंक्ति में क्यों नहीं हैं.

शेख़ हसीना ने जो चुनावी बूथ पर नहीं होने दिया, वह सड़क पर होकर रहा

शेख़ हसीना के ख़िलाफ़ हुआ विद्रोह अपनी तार्किक परिणति पर तब तभी पहुंच सकता है जब वह छात्रों को सुनेगा: यह आंदोलन एक ऐसा समाज बनाने का आंदोलन है जिसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव न होगा.

‘मैं यहां नौकरी करने नहीं आया’… योगी आदित्यनाथ किससे और क्या कहना क्या चाहते हैं?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बीते हफ्ते विधानसभा में कहते नज़र आए कि 'मैं यहां नौकरी करने नहीं आया हूं... मुझे इससे ज्यादा प्रतिष्ठा अपने मठ में मिल जाती है.' सवाल उठता है कि क्या उनकी निगाह में मुख्यमंत्री पद गोरक्षपीठाधीश्वर के पद से कम प्रतिष्ठित है?

कश्मीर के होंठ सिल दिए गए हैं और उसकी छाती पर भारतीय राज्य का बूट है

5 अगस्त, 2019 के बाद का कश्मीर भारत के लिए आईना है. उसके बाद भारत का तेज़ गति से कश्मीरीकरण हुआ है. नागरिकों के अधिकारों का अपहरण, राज्यपालों का उपद्रव, संघीय सरकार की मनमानी.

कश्मीर की तलाश में: पहली क़िस्त

कश्मीर पर हो रही बहस से कश्मीरवासी अनुपस्थित है. उसके बग़ैर उसकी भूमि की नियति निर्धारित हो रही है. इस विडंबना के सहारे आप झेलम के पानी में उतर सकते हैं- यह नदी दोनों समुदायों की गर्भनाल से बंधी स्मृतियों और कसमसाती डोर में बंधी पीड़ाओं को लिए बहती है.

लोकसभा चुनाव के बाद सुर्ख़ियों से नदारद हुए अयोध्या में अब क्या हो रहा है?

मीडिया के एक बड़े हिस्से द्वारा लोकसभा चुनाव के बाद अयोध्या को अपनी ख़बरों व चर्चाओं से बाहर का रास्ता दिखा देने के बीच बीते दिनों अवध विश्वविद्यालय की कुलपति फेसबुक पर मुहर्रम की 'मुबारकबाद' देती नज़र आईं, तो शहर के नामचीन साकेत डिग्री कॉलेज के गेट पर सेना का टैंक स्थापित कर दिया गया.

इतिहास की बावरी स्त्रियां

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अरुंधति सुब्रमण्यम की किताब ‘वाइल्ड वीमेन’ के परिप्रेक्ष्य में यह जानना बहुत आश्वस्तिकर है कि भारत में पहले भी स्त्री बोलती रही है, आवेग, समझ, निर्भीकता और साहस से.

अरुणा रॉय का संस्मरण सिर्फ उनका नहीं, एक पूरे सामुदायिक आंदोलन का संस्मरण है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: अरुणा रॉय अथक स्वप्नदर्शी कर्मशील हैं. उन्होंने मौलिक नवाचार किया है पर वे जड़ों पर भी जमी रही हैं. उनके संस्मरण में ‘मैं’ बहुत सहजता से ‘हम’ में बदलता रहता है.

उत्तर प्रदेश: ‘बुलडोजर राज’ ने घरों को घर ही कहां रहने दिया है

योगी आदित्यनाथ सरकार ने कुकरैल नदी पुनर्जीवन परियोजना के तहत लखनऊ में ध्वस्तीकरण के लिए चिह्नित घरों पर बुलडोजर की कार्रवाई रोक दी है. ऐसा मानना है कि इस नरमी का एक सिरा लोकसभा चुनाव में पराजय के बाद भाजपा की अंदरूनी राजनीति में जारी उस उठापटक तक भी जाता है, जिससे मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी असुरक्षित महसूस करने लगे हैं.

धर्म के नाम पर हिंसा करना लोकप्रिय हो गया है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करने का ठेका न तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को, न भाजपा को, न किसी राजनेता को मिला हुआ है. ये सभी स्वनियुक्त ठेकेदार हैं, जिनका सामाजिक आचरण हिंदू धर्म के बुनियादी सिद्धांतों से मेल नहीं खाता.

क्या सावन में या कांवड़ यात्रा के दौरान मुसलमानों का छुआ भोजन हिंदुओं के लिए निषिद्ध होगा?

पुलिस कहती है कि कुछ लोगों ने जानबूझकर दुकानों के ऐसे नाम रखे जिनसे कांवड़ियों को भ्रम हो गया. क्या पुलिस को ऐसा कोई मामला मिला जिसमें कांवड़ियों को मुसलमानों ने मोमो में बंदगोभी की जगह कीमा खिला दिया? क्या कांवड़िए शाकाहार मांग रहे थे और उन्हें मांस की कोई वस्तु बेच दी गई?

शहर कब अपने लेखक को याद करना सीखेंगे

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: साहित्य के अपने समाज के अलावा व्यापक हिंदी समाज में कौन इलाहाबाद को निराला-महादेवी के शहर, बनारस को प्रसाद-रामचंद्र शुक्ल के शहर, पटना को दिनकर-नागार्जुन-रेणु के शहर की तरह जानता-पहचानता है?

राहुल गांधी का राम मंदिर आंदोलन को हराने की बात कहना यथार्थ से अधिक इरादे का बयान है

राहुल गांधी का यह कहना कि 'हमने राम मंदिर आंदोलन को हरा दिया है, वही लाल कृष्ण आडवाणी ने जिसका नेतृत्व किया था,' विचारधारात्मक चेतावनी है. असल लड़ाई उस विचारधारा से है जिसने राम जन्मभूमि आंदोलन को जन्म दिया. यानी संघर्ष आरएसएस के हिंदू राष्ट्र के विचार से है.

नरेंद्र मोदी अनुप्रास गढ़-गढ़कर कब तक ज़मीनी हक़ीक़त को झुठला सकते हैं?

नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में अनुप्रासों की झड़ी लगाते रहे हैं- कभी चमत्कार पैदा करने, तो कभी अपनी ‘बौद्धिकता’ का लोहा मनवाने के लिए. हालांकि आगामी 23 जुलाई को उनकी तीसरी सरकार का पहला बजट आएगा तो इस ‘संकट’ से रूबरू होंगे कि ऐसा कौन-सा नया अनुप्रास गढ़ें और कैसे?

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