महात्मा गांधी मानते थे कि जब तक मुट्ठी भर धनवानों और करोड़ों भूखे रहने वालों के बीच बेहद अंतर बना रहेगा, तब तक अहिंसा की बुनियाद पर चलने वाली राज्य व्यवस्था कायम नहीं हो सकती. उन्होंने स्वराज्य को लेकर यह सपना तक देखा कि दोनों (पूंजीपति और गरीब) ही अंत में हिस्सेदार बनें, क्योंकि दोष पूंजी में नहीं, उसके दुरुपयोग में है.
गांधी को लिखे पत्र में हरिशंकर परसाई कहते हैं, 'गोडसे की जय-जयकार होगी, तब यह तो बताना ही पड़ेगा कि उसने कौन-सा महान कर्म किया था. बताया जाएगा कि उस वीर ने गांधी को मार डाला था. तो आप गोडसे के बहाने याद किए जाएंगे. अभी तक गोडसे को आपके बहाने याद किया जाता था. एक महान पुरुष के हाथों मरने का कितना फायदा मिलेगा आपको.'
'यह कितना बड़ा झूठ है कि कोई राज्य दंगे के कारण अंतरराष्ट्रीय ख्याति पाए, लेकिन झांकी सजाए लघु उद्योगों की. दंगे से अच्छा गृह-उद्योग तो इस देश में दूसरा है नहीं.' गणतंत्र दिवस पर पढ़िए हरिशंकर परसाई को.
ग्लासगो में होने वाले 2026 के राष्ट्रमंडल खेलों से बैडमिंटन, क्रिकेट, हॉकी, स्क्वैश, टेबल टेनिस और कुश्ती को हटा दिया गया है. इससे पहले बर्मिंघम में हुए 2022 के खेलों से निशानेबाजी और तीरंदाजी को बाहर किया गया था. इन खेलों में भारत का दबदबा रहा है.
भगत सिंह ने अंतिम दिनों में अपने साथी शहीद सुखदेव को लिखे पत्र में जताया था कि प्रेम में अनुरक्ति न किसी महान उद्देश्य के लिए जान देने से रोकती है, न कायर बनाती है. इसके उलट वह जान देने की तमीज़ सिखाती है.
लांसेट के अध्ययन में पाया गया है कि सार्वजनिक से निजी में बदले जाने के बाद अस्पतालों के मुनाफ़े में बढ़ोतरी होती है, मुख्य रूप से यह वृद्धि अस्पताल के कर्मचारियों की संख्या में कटौती करके तथा चुनिंदा तरीके से मरीज़ों को भर्ती करने से होती है.
प्रासंगिक: अपनी किताब ‘वेटिंग फॉर अ वीज़ा’ में भीमराव आंबेडकर ने 1901 में कोरेगांव यात्रा के दौरान हुए छुआछूत के कटु अनुभव पर विस्तार से चर्चा की है.
14 अक्टूबर 1956 को आंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था. वे देवताओं के संजाल को तोड़कर एक ऐसे मुक्त मनुष्य की कल्पना कर रहे थे जो धार्मिक तो हो लेकिन ग़ैर-बराबरी को जीवन मूल्य न माने.
भेदभाव का मूल हिंदुओं के हृदयों में बसे हुए उस भय में निहित है कि मुक्त समाज में अस्पृश्य अपनी निर्दिष्ट स्थिति से ऊपर उठ जाएंगे और हिंदू सामाजिक व्यवस्था के लिए ख़तरा बन जाएंगे.
नवंबर, 1930 में भगत सिंह ने मुल्तान जेल में बंद अपने साथी बटुकेश्वर दत्त को लिखा था कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए मर ही नहीं सकते, बल्कि जीवित रहकर हर मुसीबत का मुक़ाबला भी कर सकते हैं.
पुण्यतिथि विशेष: नामवर सिंह आधुनिक कविता और नई कहानी के अब तक के सबसे महत्वपूर्ण व्याख्याकार हैं. ऐसे व्याख्याकार, जिसने कविता के नए प्रतिमानों की खोज की तो तात्कालिकता के महत्व को भी रेखांकित किया. उनके व्याख्यानों की लंबी श्रृंखला ऐलान करती है कि उन्होंने हिंदी की वाचिक परंपरा को न केवल समृद्ध किया, बल्कि नई पहचान भी दी.
जन्मदिवस विशेष: साहित्य में स्त्री की उपस्थिति एक विचारणीय बात है. जिस प्रकार से कला-संस्कृति-समाज सब पुरुषों द्वारा परिभाषित और व्याख्यायित रहे हैं, ऐसे में स्त्री और उसकी भूमिका को भी प्राय: पुरुषों ने परिभाषित किया है. इसीलिए जब स्त्री और उसके इर्द-गिर्द निर्मित संसार को एक स्त्री अभिव्यक्त करती है तो एक अलग दृष्टि-एक अलग पाठ की निर्मिति होती है.
दयानंद सरस्वती कहते थे कि एक तो मूर्तिपूजा अधर्म है और दूसरा यह देश की एकता के लिए ख़तरनाक़ है.
स्मृति शेष: हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत घरानों का रिवाज़ है और गायक अपने घराने की विशिष्टता को अभिव्यक्त करते हैं, ऐसे में उस्ताद राशिद ख़ान की गायकी न केवल उनके अपने घराने की प्रतिनिधि थी, बल्कि उस पर अन्य घरानों और तहज़ीबों का भी प्रभाव था.
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में कई विचारधाराओं के लोगों ने अपने-अपने तरीकों से मोर्चा लिया था. इनमें कई गुमनाम बने रहे, पर जिनके बारे में कुछ जानकारियां भीं थीं, उन पर भी बहुत कुछ नहीं लिखा जा सका. स्वामी अभयानंद भी उन्हीं में से एक थे.