मंदसौर गोलीकांड की पहली बरसी पर आयोजित 'किसान समृद्धि संकल्प' रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, ‘पूरे देश में आज किसान अपना हक़ मांग रहा है, आत्महत्या कर रहा है.’
जन गण मन की बात की 254वीं कड़ी में विनोद दुआ विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर देश में बढ़ते प्रदूषण और विभिन्न मांगों को लेकर गांवबंद आंदोलन कर रहे किसानों पर चर्चा कर रहे हैं.
केंद्रीय मंत्री हरसिमरत बादल ने किसानों की दुर्दशा के लिए कांग्रेस के ‘कुशासन’ को जिम्मेदार ठहराया, शरद पवार ने किसानों के आंदोलन का समर्थन किया, सरकार को आड़े हाथ लिया.
किसान संगठनों ने जब ‘गांव बंद’ आंदोलन शुरू किया तो उन्हें उम्मीद थी कि चुनावी साल होने के कारण आमतौर पर ऊंचा सुनने वाली दिल्ली उन्हें सुनेगी लेकिन वे गलत सिद्ध हुए. सरकार उनका मज़ाक उड़ाने पर उतर आई है.
मध्य प्रदेश समेत देश के दूसरे हिस्सों में किसानों का शांतिपूर्ण प्रदर्शन जारी, छह जून को पंजाब में आंदोलन ख़त्म होने की ख़बर. कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज.
ऑल इंडिया किसान सभा ने कहा कि तेज़ होगा आंदोलन. पंजाब और हरियाणा के विभिन्न शहरों में आपूर्ति बाधित होने से सब्ज़ियों के दाम बढ़े. जींद में दूध और सब्ज़ियों को सड़क पर फेंक जताया रोष. नासिक में आपूर्ति बाधित.
देश में पिछले चार वर्षों में कृषि विकास दर का औसत 1.9 प्रतिशत रहा. किसानों के लिए समर्थन मूल्य से लेकर, फसल बीमा योजना, कृषि जिंसों का निर्यात, गन्ने का बकाया भुगतान और कृषि ऋण जैसे बिंदुओं पर केंद्र सरकार पूर्णतया विफल हो गई है.
कैराना लोकसभा उपचुनाव से ठीक एक दिन पहले 27 मई को बागपत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली है. लेकिन इससे पहले पांच दिन से धरने पर बैठे एक किसान की मौत हो गई है.
राष्ट्रीय किसान महासंघ ने देश भर में एक जून से दस दिनों तक सब्जियों, अनाजों और दूध जैसे कृषि उत्पादों की आपूर्ति नहीं करने की घोषणा की है.
सरकार ने महंगाई दर कम करने और आंकड़ों की कलाबाज़ी करने के लिए जो नीति बनाई उसमें वह सफल रही है क्योंकि किसान की फसल के दाम कम हो गए और बाकि सभी चीज़ें महंगी हो गईं.
स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशें लागू करने और कुछ अन्य मांगों को लेकर किसानों ने अपना आंदोलन वापस तो ले लिया है, लेकिन यह कभी भी राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार के गले की फांस बन सकता है.
खेती-किसानी पर कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा से द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु की बातचीत.
बजट में न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर केंद्र की मोदी सरकार की ओर से किए गए प्रावधानों पर कृषि विशेषज्ञों को संदेह है. उनके अनुसार, न्यूनतम समर्थन मूल्य में इज़ाफ़ा काफ़ी नहीं, यह भी देखा जाना ज़रूरी है कि बहुत थोड़े किसानों की पहुंच एमएसपी तक है.
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रावधान तभी लाभकारी होगा जब किसान अपनी उपज उपयुक्त माध्यम से बेचे. देश में अधिक खाद्य उत्पादन के बावजूद किसानों को उनकी मेहनत का फल नहीं मिल रहा.
बजट में न्यूनतम समर्थन मूल्य फसल उत्पादन लागत का डेढ़ गुना तक बढ़ाने के प्रस्ताव में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों की अनदेखी के चलते किसान संगठनों ने सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी.