बीते दिनों ओडिशा के संबलपुर के गंगाधर मेहर विश्वविद्यालय में जेएनयू की प्रोफेसर निवेदिता मेनन को कथित तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्रों की नारेबाज़ी के बीच अपना लेक्चर अधूरा छोड़ना पड़ा था. जेएनयू शिक्षक संघ ने इसकी निंदा करते हुए इसे अकादमिक स्वतंत्रता पर गंभीर हमला बताया है.
लंदन के वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेमोक्रेसी की प्रमुख निताशा कौल को कर्नाटक सरकार ने बेंगलुरु में आयोजित एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था. कौल का कहना है कि जब वह 23 फरवरी को बेंगलुरु हवाई अड्डे पहुंचीं, तो उन्हें ‘होल्डिंग सेल’ में 24 घंटे रखने के बाद बिना कारण बताए लंदन भेज दिया गया.
23 सितंबर 2023 को हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष की शिकायत पर पुलिस ने ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी की प्रो. समीना दलवई के ख़िलाफ़ क्लास में एक डेटिंग ऐप पर छात्राओं की प्रोफाइल दिखाकर उनकी ‘गरिमा को ठेस पहुंचाने’ के आरोप में केस दर्ज किया था. शिक्षाविदों ने कहा है कि उन्हें उनकी मुस्लिम पहचान और उनकी राजनीतिक मान्यताओं के लिए निशाना बनाया गया है.
यूजीसी के 'सेल्फी पॉइंट' के आदेश समेत उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए जारी होते विभिन्न निर्देशों को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो लगता है कि ‘आज्ञापालक नागरिक’ तैयार करने का प्रयास ज़ोर-शोर से चल रहा है और इसके लिए विश्वविद्यालयों को प्रयोगशाला बनाया जा रहा है.
जेएनयूटीए ने एक नई रिपोर्ट में विश्वविद्यालय को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों को उठाया है. शिक्षक इस बिगड़ती स्थिति की वजह प्रशासनिक उदासीनता को मानते हैं.
वीडियो: क्या भारत के विश्वविद्यालयों के अंदर शैक्षणिक स्वतंत्रता नाम की कोई चीज़ बची है? यूनिवर्सिटी की परिभाषा विचारों के आदान-प्रदान की जगह की है, लेकिन क्या आज हिंदुस्तान में ऐसी कोई जगह बच पाई है? चर्चा कर रहे हैं द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और डीयू के प्रोफेसर अपूर्वानंद.
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क्या बुद्धिजीवी वर्ग को पालतू बनाए रखने की सरकार की कोशिश या विश्वविद्यालयों में इंटेलिजेंस ब्यूरो को भेजने की उनकी हिमाक़त उसकी बढ़ती बदहवासी का सबूत है, या उसे यह एहसास हो गया है कि भारत एक व्यापक जनांदोलन की दहलीज़ पर बैठा है.
यदि कोई विश्वविद्यालय अपने शिक्षक के अकादमिक कार्य के साथ खड़ा नहीं हो सकता तो वह कितना भी विश्वस्तरीय होने का दावा करे, वह व्यर्थ ही है.
हरियाणा की अशोका यूनिवर्सिटी के शिक्षक सब्यसाची दास ने एक रिसर्च पेपर में 2019 के लोकसभा चुनाव में ‘हेरफेर’ की संभावना ज़ाहिर की थी, जिस पर विवाद के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था. सोमवार को इंटेलिजेंस ब्यूरो के कर्मचारी उनसे बात करने के उद्देश्य से यूनिवर्सिटी पहुंचे थे.
सरकार जिस उमर ख़ालिद उनके मज़हब तक सीमित कर देना चाहती है, पर वो एक गंभीर शोधार्थी हैं, जिनकी पीएचडी का विषय सिंहभूम का आदिवासी समाज हैं. उनकी थीसिस में लिखा गया हर शब्द एक ऐसे शख़्स को हमारे सामने लाता है, जो बेहद गहराई से लोकतंत्र और इसके अभ्यासों के साथ जिरह कर रहा है.
दिल्ली की बीआर आंबेडकर यूनिवर्सिटी के फैकल्टी सदस्यों ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि यूनिवर्सिटी में आवेदन की संख्या लगातार गिरती जा रही है. साथ ही, काम के ख़राब माहौल समेत विभिन्न समस्याओं के चलते साल 2020 से 15 से अधिक फैकल्टी सदस्य इस्तीफ़ा दे चुके हैं.
बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान द्वारा ‘सांप्रदायिक सद्भाव और न्याय’ विषय पर नागरिक अधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की बातचीत को सभागार में अनुमति न दिए जाने के बाद उन्होंने परिसर की एक कैंटीन के बाहर छात्रों और फैकल्टी सदस्यों की सभा को संबोधित किया.
अशोका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के शिक्षक सब्यसाची दास ने एक रिसर्च पेपर में 2019 के लोकसभा चुनाव में ‘हेरफेर’ की संभावना ज़ाहिर की थी, जिस पर विवाद के बाद उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया. अब अर्थशास्त्र विभाग ने कहा है कि इस पेपर पर विश्वविद्यालय की गवर्निंग बॉडी की प्रतिक्रिया संस्थागत उत्पीड़न है.
हाल ही में हरियाणा स्थित निजी अशोका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. वह एक शोध-पत्र के लिए चर्चा में हैं, जिसमें उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में ‘हेरफेर’ की संभावना का आरोप लगाया था. यूनिवर्सिटी के सूत्रों ने कहा कि अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर पुलाप्रे बालाकृष्णन ने सब्यसाची के साथ ‘एकजुटता दिखाते हुए’ इस्तीफ़ा देने का फैसला किया है.