अहमदाबाद पुलिस की क्राइम ब्रांच में दर्ज हुई एफआईआर में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ पर आरोप है कि उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ अन्य मंत्रियों, अफसरों और राज्य सरकार को बदनाम करने की साज़िश रची थी. बीते 30 जुलाई को हाईकोर्ट उन्हें ज़मानत देने से इनकार कर चुका है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र शरजील इमाम को दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्से में वर्ष 2020 में भड़के दंगे के कथित षड्यंत्र के मामले में जनवरी 2020 में गिरफ़्तार किया गया था. तब से वे जेल में हैं.
अरुणाचल प्रदेश के कोलोरियांग क्षेत्र से भाजपा विधायक लोकम टसर के ख़िलाफ़ पुलिस ने चार जुलाई को एक गर्भवती महिला से बलात्कार के आरोप का मामला दर्ज किया है. इस बीच पुलिस ने विधायक की गिरफ़्तारी के प्रयास तेज़ कर दिए हैं. मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा है कि अगर अदालत ने विधायक के ख़िलाफ़ आरोपों को सही पाया तो भाजपा उनके ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई करेगी.
फरवरी 2020 में हुए दंगों के कथित साज़िश से संबंधित मामले में यूएपीए के आरोपी मोहम्मद सलीम ख़ान ने इस आधार पर ज़मानत मांगी है कि उन्हें हिरासत में दो साल पूरे हो चुके हैं और इस मामले में उनकी भूमिका बहुत सीमित और वीडियो फुटेज पर आधारित है. साथ ही उन्होंने अदालत को बताया कि उन्हें एक अन्य मामले में ज़मानत मिल चुकी है, जो उसी वीडियो फुटेज पर आधारित है.
पुलिस ने दावा किया है कि सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों में शामिल उमर ख़ालिद एवं अन्य ने दिल्ली में दंगों का षड्यंत्र रचा, ताकि दुनिया में मोदी सरकार की छवि को खराब किया जा सके. यूएपीए के तहत अक्टूबर 2020 में जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद को गिरफ़्तार किया था.
एल्गार परिषद मामले में विचाराधीन क़ैदी के रूप में सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं. पिछले साल 13 नवंबर को गढ़चिरौली में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए 26 नक्सलियों में उनके भाई कथित नक्सली नेता मिलिंद भी शामिल थे. भाई की मौत के मद्देनज़र आनंद तेलतुम्बड़े ने मां से मिलने की अनुमति मांगी थी.
उमर ख़ालिद को दिल्ली दंगों संबंधित मामले में पेशी पर हथकड़ी लगाए जाने के ख़िलाफ़ उनके वकीलों की याचिका पर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने एक आदेश में कहा कि दिल्ली पुलिस कमिश्नर किसी ज़िम्मेदार वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की निगरानी में जांच के बाद रिपोर्ट दायर कर बताएं कि क्या उमर को हथकड़ी में पेश किया गया, यदि हां तो किस आधार पर.
लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े ने पिछले महीने सुरक्षाबलों के साथ एक मुठभेड़ में उनके भाई मिलिंद तेलतुम्बड़े की मौत के बाद अपनी 90 वर्षीय मां से मिलने के लिए ज़मानत दिए जाने का अनुरोध किया था.
दिल्ली दंगों से जुड़े कई आरोपों में गिरफ़्तार जेएनयू के पूर्व छात्र और कार्यकर्ता उमर ख़ालिद के वकील ने कहा कि जांच अधिकारी ने चार्जशीट में काल्पनिक कहानियां लिखीं. पुलिस इस मामले में सभी आरोपियों को ‘एक ही लाठी से हांकना’ चाहती है. उन्होंने पूछा कि क्या चक्काजाम का आयोजन आतंकवाद रोधी क़ानून- यूएपीए लगाने का आधार देता है.
दिल्ली दंगों को लेकर यूएपीए के तहत गिरफ़्तार जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद ने अपना बचाव करते हुए अदालत में कहा कि पुलिस के दावों में कई विरोधाभास हैं. उनके ख़िलाफ़ यूएपीए का मामला भाजपा नेता और आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय द्वारा ट्वीट किए गए उनके संक्षिप्त भाषण के संपादित वीडियो क्लिप पर आधारित है. आरोप-पत्र पूरी तरह से मनगढ़ंत है. उनके ख़िलाफ़ चुनिंदा गवाह लाए गए और उन्होंने हास्यस्पद बयान दिए गए हैं.
एल्गार परिषद मामले में गिरफ़्तार दिवंगत कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी के वकीलों ने जमशेदपुर जेसुइट प्रोविंस की ओर से बॉम्बे हाईकोर्ट को पत्र लिखकर कहा है कि संविधान का अनुच्छेद 21 मृत व्यक्तियों पर भी समान रूप से लागू होता है. जिस तरह अपीलकर्ता को जीवित रहते हुए अपना नाम बेदाग़ करने का अधिकार होता, यही समान हक़ उसके क़रीबियों का भी है.
यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किए गए जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद की ज़मानत याचिका का विरोध करते हुए पुलिस ने कहा कि अभियोजन पक्ष, मामले में दायर आरोप-पत्र के हवाले से अदालत में आरोपी के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला दिखाएगा. मामला एक बड़ी साज़िश का हिस्सा है और यह छह मार्च 2020 को दर्ज हुआ था. ख़ालिद को दंगे से संबंधित एक अन्य मामले में ज़मानत मिल चुकी है.
भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में यूएपीए के तहत पिछले साल आठ अक्टूबर को गिरफ़्तार किए गए 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का निधन पांच जुलाई को मेडिकल आधार पर ज़मानत का इंतज़ार करते हुए अस्पताल में हो गया था. मेडिकल आधार पर ज़मानत याचिका ख़ारिज किए जाने के विशेष अदालत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ स्वामी ने हाईकोर्ट में अपील की थी, जिसकी अदालत उनके मरणोपरांत सुनवाई कर रही है.