भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार चाहती है कि आंदोलन का केंद्रबिंदु दिल्ली की सीमाओं से हरियाणा में स्थानांतरित किया जाए, लेकिन हम दिल्ली की सीमा को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे. उन्होंने कहा कि जब तक किसानों की मांगें पूरी नहीं हो जातीं, आंदोलन जारी रहेगा.
कोविड महामारी की दूसरी लहर का कृषि उत्पादन पर असर पड़ने के अलावा सप्लाई चेन भी महामारी की चपेट में आने लगी है, जिससे उत्पादन और वितरण दोनों पर प्रभाव पड़ने वाला है. आमदनी घटने और ख़र्च बढ़ने जैसे कई कारणों के चलते सरकार का नए कृषि क़ानूनों को वापस लेना ज़रूरी है.
केंद्र सरकार के विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते साल 26 नवंबर से दिल्ली चलो मार्च के तहत किसानों ने अपना प्रदर्शन शुरू किया था. पंजाब और हरियाणा में दो दिनों के संघर्ष के बाद किसानों को दिल्ली की सीमा में प्रवेश की मंजूरी मिल गई थी. इसके बाद दिल्ली की तीनों सीमाओं- सिंघू, टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों ने प्रदर्शन शुरू किया था, जो आज भी जारी है.
वीडियो: किसान नेता डॉ. दर्शन पाल कहते हैं कि वे महामारी से अवगत हैं और जोखिमों को समझते हैं, लेकिन अगर किसान आंदोलन और उनकी मांग से पीछे हटते हैं तो और भी अधिक भारतीय अपनी आजीविका खो देंगे. किसान इस आंदोलन के तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं.
कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहीं 40 यूनियनों के प्रधान संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 मई को प्रदर्शन के छह महीने पूरे होने के मौके पर ‘काला दिवस’ मनाने की घोषणा की है. देश के 12 प्रमुख विपक्षी दलों ने किसानों का समर्थन देते हुए कहा है कि केंद्र को अहंकार छोड़कर तत्काल किसानों से बातचीज शुरू करनी चाहिए.
कनाडा, अमेरिका एवं अन्य जगहों के 200 से अधिक शिक्षाविदों, ट्रेड यूनियन नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पत्र लिखकर किसानों की मांगों को समर्थन करते हुए कहा है कि कृषि क़ानून रद्द करने के साथ-साथ सभी राजनीतिक बंदियों को भी रिहा किया जाए.
किसानों ने पत्र में चेतावनी देते हुए कहा कि यदि सरकार 25 मई तक बातचीत नहीं शुरू करती है तो आंदोलन को और तेज़ किया जाएगा. 26 मई को आंदोलन के छह महीने पूरे होने पर किसानों ने ‘काला दिवस’ मनाने की घोषणा की है. किसानों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है. 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसा के बाद से यह बातचीत बंद है.
अधिकारियों ने बताया कि पटियाला निवासी बलबीर सिंह और लुधियाना निवासी महिंदर सिंह की बीते 18 मई को मौत हो गई. वे सिंघू बॉर्डर के निकट विरोध प्रदर्शन कर रहे समूह में शामिल थे. केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते छह महीनों से किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते छह महीनों से किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि किसान आंदोलन में 470 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है. कई आंदोलनकारियों को अपनी नौकरियां, पढ़ाई एवं दूसरे काम छोड़ने पड़े. सरकार अपने नागरिकों, अन्नदाताओं के प्रति कितना अमानवीय एवं लापरवाह रुख़ दिखा रही है.
भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी की ओर से जारी बयान में राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार के साथ बातचीत वहीं से बहाल होगी, जहां 22 जनवरी को ख़त्म हुई थी. मांग भी वहीं हैं कि तीनों काले क़ानूनों को निरस्त किया जाए और न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए नया क़ानून बनाया जाए.
तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली के सिंघू, गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर पर जारी प्रदर्शन के चार महीने पूरे होने पर सुबह छह बजे से लेकर शाम छह बजे तक बंद का आह्वान किया था.
वीडियो: किसान आंदोलन में बढ़-चढ़कर महिलाओं ने आंदोलन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. इन किसान महिलाओं से आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के सिकंदरपुर में हुई किसान-मज़दूर महापंचायत को संबोधित करते हुए कहा कि 2021 आंदोलन का वर्ष होगा. किसान पूरी ताक़त से लंबी लड़ाई लड़ने को तैयार है.
ब्रिटिश सांसदों ने किसान आंदोलन- शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार संबंधी चर्चा की, भारत ने नाराज़गी जताई
भारत में तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आंदोलन के बीच ब्रिटिश सांसदों ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के अधिकार और प्रेस की आज़ादी को लेकर एक लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर वाली ‘ई-याचिका’ पर चर्चा की. भारत ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि इस ‘एकतरफा चर्चा में झूठे दावे’ किए गए.
साक्षात्कार: कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आंदोलन को सौ दिन पूरे हो चुके हैं. 22 जनवरी को केंद्र से आख़िरी बार हुई बातचीत के बाद से जहां किसान नेता आंदोलन को देशव्यापी बनाने के प्रयास में हैं, वहीं सरकार भी अपने पक्ष में समर्थन जुटाने में लगी है. आंदोलन को लेकर भाकियू नेता राकेश टिकैत से बातचीत.